वाराणसी से सुरभी चतुर्वेदी की रिपोर्ट
राज्यपाल ने संस्कृत भाषा को दुर्लभ ज्ञान-विज्ञान की जानकारी का स्रोत बताया
आम जनता को भी संस्कृत भाषा का जानकार बनाने का प्रयास होना चाहिए-आंनदीबेन पटेल
‘’हर घर तिरंगा अभियान‘‘ में जनता के देश प्रेम ने विश्व को विस्मित किया-राज्यपाल, आनंदीबेन पटेल
भारत में जी-20 देशों की बैठक मानवता के कल्याण के लिए ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम‘‘ की थीम पर आधारित हैं-राज्यपाल, उ0प्र0
संस्कृत मात्र एक भाषा नहीं अपितु संस्कृति है, समस्त भारतीयों के लिए एक ऊर्जा का श्रोत है- शरद अरविंद बोबड़े
संस्कृत के बिना भारत का ज्ञान नहीं हो सकता- पूर्व मुख्य न्यायाधीश वाराणसी। उत्तर प्रदेश की राज्यपाल एवं कुलाधिपति श्रीमती आंनदीबेन पटेल की अध्यक्षता में शनिवार को सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय का 40वां दीक्षान्त समारोह सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर राज्यपाल ने उपाधि प्राप्त करने वाले सभी विद्यार्थियों को उज्ज्वल भविष्य की बधाई देते हुए सभी को आगामी नववर्ष-2023 की शुभकामनाएं दी। राज्यपाल आंनदीबेन पटेल ने कहा कि पूर्व मुख्य न्यायाधीश को मानद उपाधि के लिए बधाई देते हुए कोरोना काल में ऑनलाइन कोर्ट चलाने के लिए उन्हें बधाई दी। उन्होंने कहा कि भारत के अकेले न्यायाधीश अरविंद बोबड़े हैं, जिन्हें संयुक्त राष्ट्र में भाषण के लिए आमंत्रित किया गया था।संस्कृत को जन-जन की भाषा बनाने के तरफ मजबूत प्रयास होना चाहिये। राज्यपाल ने संस्कृत भाषा को दुर्लभ ज्ञान-विज्ञान की जानकारी का स्रोत बताया। उन्होंने कहा कि आम जनता को भी संस्कृत भाषा का जानकार बनाने का प्रयास होना चाहिए। उन्होंने नई शिक्षा नीति में संस्कृत की प्रासंगिकता बढ़ने का उल्लेख करते हुए विश्वास व्यक्त किया कि इससे युवा पीढ़ी को संस्कृत अध्ययन-अध्यापन में लाभ होगा। उन्होंने विश्वस्तर पर भारत के प्रेरणादायी आयोजनों और उपलब्धियों की चर्चा भी की। उन्होंने कहा कि इस वर्ष भारत में चले ‘‘हर घर तिरंगा अभियान‘‘ में जनता के देश प्रेम ने विश्व को विस्मित किया। उन्होंने कहा कि खुले में शौच से मुक्ति, टी0बी0, कुपोषण, पोलियों के विरूद्ध अभियान चलाकर इन समस्याओं से उबरते भारत ने दुनिया भर को प्रभावित किया। उन्होंने ग्लोबल वार्मिंग के खिलाफ भारत का इंटरनेशलन सोलर एलायंस, अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस, भारत निर्मित दवाओं के विश्वस्तर पर उपयोग का विशेष जिक्र भी किया। देश की संस्कृति की चर्चा करते हुए राज्यपाल ने वाराणसी में ‘‘एक भारत श्रेष्ठ भारत‘‘ की अवधारणा पर आयोजित ‘‘काशी-तमिल संगमम्‘‘ के आयोजन को संबधों को पुनर्स्थापित करने की पहल बताया। चर्चा के क्रम में राज्यपाल जी ने भूजल-सम्वर्द्धन और जल संरक्षण पर विश्वविद्यालयों से प्रभावी प्रयास और उपाय करने को कहा। उन्होंने गंगा नदी के प्रदूषण की ओर भी ध्यानार्षित किया और इस दिशा में केन्द्र सरकार द्वारा ‘‘नमामि गंगे परियोजना‘‘ के माध्यम से किए गए प्रयासों का विशेष जिक्र किया। उन्होंने कहा कि भारत की इस पहल को दुनिया भर में सराहना मिल रही है और इसेे दुनिया की शीर्ष दस पहलों में शामिल किया गया है। राज्यपाल ने देश में मोटे अनाज के घटते उत्पादन और प्रयोग पर चिन्ता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि स्वास्थय की दृष्टि से इनके लाभकारी होने के कारण आज दुनियाभर में इसकी मांग बढ़ी है। उन्होंने विश्वविद्यालय स्तर पर इसके प्रयोग के लाभ और व्यंजनों के प्रचार-प्रसार कराने को कहा।
उन्होंने भारत में जी-20 देशों की बैठकों की जानकारी देते हुए बताया कि ये बैठकें मानवता के कल्याण के लिए ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम‘‘ की थीम पर आधारित हैं। उत्तर प्रदेश के चार शहरों आगरा, वाराणसी, लखनऊ, ग्रेटर नोयडा में भी 01 दिसम्बर, 2022 से 30 नवम्बर, 2023 तक इसकी बैठकें आयोजित हो रही हैं। उन्होंने विश्वविद्यालय को इस इवेंट में उत्साह के साथ प्रतिभागिता के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय ऐसे मेधावी विद्यार्थियों का चयन करें, जो विदेशी भाषा के जानकार हों। ये छात्र जी-20 देशो के प्रतिनिधियों से संवाद करके जानकारियों के प्रचार-प्रसार, विश्वविद्यालय के नवाचारों, स्टार्टअप तथा अन्य गतिविधियों के डिजिटल प्रचार तथा प्रदर्शनी के अयोजन आदि से हिस्सेदारी कर सकते हैं। राज्यपाल ने विश्व में कोरोना के पुनः बढ़ते प्रसार को देखते हुए सभी से कोरोना सम्बन्धी सावधानियाँ और ऐहतियात रखने को कहा। उन्होंने भारत की स्वदेशी वैक्सीन कोविशील्ड और को-वेक्सीन की चर्चा करते हुए कोरोना के रोकथाम के लिए नवविकसित स्वदेशी नेजल वैक्सीन इनकोवैक के बारे में भी बताया। उन्होंने बताया कि भारत सरकार ने नेजल वैक्सीन को बूस्टर डोज के तौर पर अपने कोविड-19 वैक्सीनेशन प्रोग्राम में शामिल कर लिया है।
समारोह में मुख्य अतिथि एवं सर्वोच्च न्यायालय, नई दिल्ली के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति शरद अरविन्द बोवड़ ने अनुभव विद्यार्थियों से साझा किये और उनको आगामी जीवन में सफलता के लिए शुभकामनाएं दी। उन्होंने कहा गया कि यहां 232 वर्षों से यहां सारस्वत साधना में भारतीय मनीषियों के साथ कई विदेशी विद्वान भी लगे हुए हैं। उन्होंने अपने पुराने स्मरण सुनाते हुए कहा कि जब वो महाराष्ट्र नैशनल ला कॉलेज के कुलपति थे तब उन्होंने न्याय शास्त्र और मीमांसा में नये कोर्स चलाये थे। उन्होंने 1949 के संविधान सभा का एक पत्र का भी जिक्र किया जो उनको मिला जिसमें डॉ अम्बेडकर के साथ कई सदस्यों ने संस्कृत को आधिकारिक भाषा बनाने की बात उठाई थी। संस्कृत बहुत ही विस्तृतता समेटे हुए है जिसमें किसी भी विचार, साहित्य तथा विज्ञान को प्रस्तुत करने की जबरदस्त योग्यता है।
विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 हरेराम त्रिपाठी ने समारोह में विश्वविद्यालय की प्रगति आख्या प्रस्तुत की। दीक्षान्त समारोह में कुल 14702 डिग्रियों का वितरण विद्यार्थियों के बीच होगा। सर्वाधिक 9 मेडल नव्य व्याकरण से आचार्य करने वाले अभिषेक शुक्ल को दिया गया। जिसमें 8 स्वर्ण तथा 1 रजत पदक शामिल है। सामवेद के शास्वत निर्भय को 4 स्वर्ण पदक, धर्म शास्त्र के शिवशंकर उपाध्याय को 3 स्वर्ण पदक तथा शिवम शुक्ला, स्मिता, रामप्रवेश त्रिपाठी, ज्ञानेन्द्र मिश्र, आराधना पाण्डेय अरुण महतो, मयंक जैन, रविशंकर पांडेय, प्रिंस कुमार यादव, अर्चना उपाध्याय, वैष्णवी सहित कुल 31 विद्यार्थियों को कुलाधिपति द्वारा स्वर्ण पदक प्रदान किया गया।