जीवन मंत्र । जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से पंचमी तिथि का आध्यात्मिक एवं ज्योतिषीय महत्त्व
पंचमी तिथि का आध्यात्मिक एवं ज्योतिषीय महत्त्व
हिंदू पंचाग की पांचवी तिथि पंचमी है। इस तिथि को श्रीमती और पूर्णा तिथि के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इस तिथि में शुरू किए गए कार्य का विशेष फल प्राप्त होता है। हिंदू धर्म में पंचमी तिथि को सबसे महत्वपूर्ण तिथि माना जाता है। पंचमी तिथि का निर्माण शुक्ल पक्ष में तब होता है जब सूर्य और चंद्रमा का अंतर 49 डिग्री से 60 डिग्री अंश तक होता है। यह तिथि चंद्रमा की पांचवी कला है, इस कला में अमृत का पान वषटरकार करते हैं। वहीं कृष्ण पक्ष में पंचमी तिथि का निर्माण सूर्य और चंद्रमा का अंतर 229 से 240डिग्री अंश तक होता है। पंचमी तिथि के स्वामी नाग देवता माने गए हैं। जीवन में संकटों को दूर करने के लिए इस तिथि में जन्मे जातकों को नाग देवता और भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए।
पंचमी तिथि का ज्योतिष में महत्त्व
यदि पंचमी तिथि शनिवार को पड़ती है तो मृत्युदा योग बनाती है। इस योग में शुभ कार्य करना वर्जित है। इसके अलावा पंचमी तिथि गुरुवार को होती है तो सिद्धा कहलाती है। ऐसे समय कार्य सिद्धि की प्राप्ति होती है। वहीं पौष माह के दोनों पक्षों की पंचमी तिथि शून्य फल देती है। वहीं शुक्ल पक्ष की पंचमी में भगवान शिव का वास कैलाश पर होता है और कृष्ण पक्ष की पंचमी में शिव का वास वृषभ पर होता है इसलिए दोनों पक्षों में शिव का पूजन करने से शुभ फल प्राप्त होता है।
पंचमी तिथि में जन्मे जातक व्यवहारकुशल और ज्ञानी होते हैं। ये लोग मातृपितृ भक्त होते हैं। इन्हें दान और धार्मिक कार्यों में रुचि होती है। ये जातक हमेशा न्याय के मार्ग पर चलते हैं। इस तिथि में जन्मे लोग कार्यों के प्रति निष्ठावान और सजग होते हैं। इन लोगों को उच्च शिक्षा प्राप्त होती है और विदेश यात्रा भी करते हैं। ये अपने गुणों की वजह से समाज में मान-सम्मान भी प्राप्त करते हैं।
पंचमी तिथि में किये जाने वाले शुभ कार्य
कृष्ण पक्ष पंचमी तिथि में में यात्रा, विवाह, संगीत, विद्या व शिल्प आदि कार्य करना लाभप्रद रहता है।
वैसे तो पंचमी तिथि सभी प्रवृतियों के लिए यह तिथि उपयुक्त मानी गई है लेकिन इस तिथि में किसी को ऋण देना वर्जित माना गया है और शुक्ल पक्ष की पंचमी में आप शुभ कार्य नहीं कर सकते हैं। इसके अलावा किसी भी पक्ष की पंचमी तिथि में कटहल, बेला और खटाई का सेवन नहीं करना चाहिए।
पंचमी तिथि के प्रमुख हिन्दू त्यौहार एवं व्रत व उपवास
ऋषि पंचमी भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी को ऋषि पंचमी का व्रत किया जाता है। इस दिन सप्तऋषियों की पूजा अर्चना करने का विधान है। मान्यता है कि यदि कोई भी स्त्री शुद्ध मन से इस व्रत को करें तो उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और अगले जन्म में उसे सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
रंग पंचमी महाराष्ट्र में खासतौर पर मनाया जाने वाला पर्व रंगपंचमी चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। कहा जाता है कि इस दिन देवी-देवताओं की होली होती है। रंगपंचमी अनिष्टकारी शक्तियों पर विजय प्राप्ति का उत्सव भी है।
नाग पंचमी श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नाग पंचमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन नाग देवता की पूजा अर्चना की जाती है। कहा जाता है कि इस दिन पूजा करने से कुंडली में स्थित कालसर्प दोष समाप्त हो जाता है|
विवाह पंचमी मार्गशीर्ष महीने की शुक्ल पक्ष की पंचमी को विवाह पंचमी का पर्व मनाते हैं। इस तिथि में भगवान राम और माता सीता का विवाह हुआ था। इस पावन दिन सभी को राम-सीता की आराधना करते हुए अपने सुखी दाम्पत्य जीवन के लिए प्रभु से आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए।
बसंत पंचमी माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी को बसंत पंचमी कहा जाता है। इस दिन बुद्धि की देवी मां सरस्वती का प्रादुर्भाव हुआ था। इसलिए इस दिन मां सरस्वती के पूजन का विधान है। गृह प्रवेश से लेकर नए कार्यों की शुरुआत के लिए भी इस तिथि को शुभ माना जाता है।
सौभाग्य पंचमी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को सौभाग्य पंचमी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन धन की देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है। यह दिन व्यापारियों के लिए बेहद शुभ होता है।
लक्ष्मी पंचमी चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को लक्ष्मी पंचमी कहते हैं। इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। इस तिथि को व्रत रखने से घर में सुख-समृद्धि और धन-धान्य से भरापूरा रहता है।