जीवन मंत्र । जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से रविवार व्रत महात्मय, व्रत और उद्यापन विधि और लाभ
रविवार व्रत महात्मय, व्रत और उद्यापन विधि और लाभ
भगवान सूर्यदेव की पूजा रविवार के दिन की जा सकती है।अगर कोई व्यक्ति ऐसा करता है तो वह अपने समस्त कष्टों से मुक्ति पा सकता है और असीम सुखों को पा सकता है। इसका उल्लेख नारद पुराण में भी है की रविवार के दिन पूजा करना काफी आरोग्यदायक और शुभ होता है। रविवार व्रत रखने से सूर्य देव की कृपादृष्टि जातक पर बनी रहती है। सूर्य को नवग्रहों का राजा कहा जाता है और नवग्रह शांति विधान के अनुसार भी सूर्योपासन करने मात्रा से समस्त ग्रहों की शांति हो जाती है हर व्यक्ति को रविवार का व्रत रखना चाहिए, उस दिन प्रातःकाल में सूर्यदेव की पूजा करके सूर्यनमस्कार भी करना चाहिए। इस विधि से पूरा जीवन सुखों से भर जाता है।
रविवार व्रत के लाभ
रविवार क्योंकि सूर्य देवता की पूजा का दिन है। इस दिन सूर्य देव की पूजा करने से सुख -समृ्द्धि, धन- संपति और शत्रुओं से सुरक्षा के लिये इस व्रत का महत्व कहा गया है। रविवार का व्रत करने व कथा सुनने से व्यक्ति कि सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। इस उपवास करने वाले व्यक्ति को मान-सम्मान, धन, यश और साथ ही उतम स्वास्थय भी प्राप होता है। रविवार के व्रत को करने से सभी पापों का नाश होता है। तथा स्त्रियों के द्वारा इस व्रत को करने से उनका बांझपन भी दूर करता है। इसके अतिरित्क यह व्रत उपवासक को मोक्ष देने वाला होता है।
रविवार व्रत रखने से चर्म रोग, नेत्र रोग और कुष्ठ रोग से बचा जा सकता है और इसके साथ ही जातक दीर्घायु, सौभाग्यशाली और आरोग्यवान बनता है।
यह व्रत सूर्य के अशुभ प्रभाव को कम करता है और उसे शक्तिशाली बनाता है। रविवार का व्रत करने से जातक की आयु में भी वृद्धि होती है।
रविवार व्रत विधि
रविवार का व्रत किसी भी माह के शुक्ल पक्ष के पहले रविवार से प्रारंभ किया जा सकता है। व्रत कम से कम एक वर्ष या पांच वर्ष या अधिकतम बारह वर्षों तक करना चाहिए।
रविवार के व्रत के दिन सबसे पहले जातक को पूजा के लिए आवश्यक सामग्री एकत्रित कर लेनी चाहिए जैसे की लाल चन्दन, लाल वस्त्र, गुड़, गुलाल, कंडेल का फूल इत्यादि।
जातक को सूर्यदेव की पूजा सूर्यास्त से पहले कर लेनी चाहिए और भोजन मात्र एक ही समय करना चाहिए।
रविवार के दिन सबसे पहले प्रातःकाल में स्नान इत्यादि से निवृत हो कर लाल वस्त्र पहन लेने चाहिए और अपने मस्तक पर लाल चन्दन से एक तिलक कर लेना चाहिए।
तत्पश्चात, एक ताम्बे का कलश में जल लेकर उसमे अक्षत, लाल रंग के पुष्प और रोली इत्यादि डाल कर सूर्य भगवान को श्रद्धापूर्वक नमन करके अर्ध्य प्रदान करना चाहिए। इसके साथ ही “ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय नम:” मंत्र का ज्यादा से ज्यादा जाप करना चाहिए।
रविवार के व्रत वाले दिन भोजन सिर्फ एक समय ही और सूर्यास्त से पहले कर लेना चाहिए| भोजन बिलकुल सामान्य होना चाहिए, जातक को गरिष्ठ, तला हुआ, मिर्च मसालेदार या और कोई पकवान नहीं खाना चाहिये।
बहुत अच्छा रहेगा अगर बिना नमक के गेंहूं की रोटी या गेंहूं के दलिया बने जाये और भोजन करने से पहले कुछ भाग बालिका या बालक को खिला कर या मंदिर में दान करके फिर ही खाना चाहिये।
व्रत के दिन सभी तरह के फल, औषधि, जल, दूध या दूध से बने हुए भोज्य पदार्थों का सेवन करने से रविवार का व्रत नष्ट नहीं होता है।
यदि बिना भोजन किये अगर सूर्य अस्त हो जाता है तो अगले दिन सूर्यास्त के पश्चात सूर्य को अर्ध्य प्रदान करने के बाद ही भोजन करना चाहिए। भोजन में गुड़ का हलवा भी बनाया जा सकता है।
सबसे अंतिम रविवार को जातक को उद्यापन करना चाहिये और एक योग्य ब्राह्मण को बुलाकर हवन करवाना चाहिये।
रविवार व्रत रखने के समय सम्भोग नहीं करना चाहिए और ब्रम्हचर्य का पालन करना चाहिए। व्रत के समय पान खाना वर्जित है और दिन में सोना नहीं चाहिए।
इस क्रिया के पश्चात एक अच्छे और योग्य दंपत्ति को भोजन करवाना चाहिये और उनको यथाचित दक्षिणा एवं लाल वस्त्र प्रदान करने चाहिये। इन सब क्रियाओं के बाद रविवार के व्रत को सम्पूर्ण माना जाता है।
रविवार व्रत एवं उद्यापन के लिए पूजा सामग्री
सूर्य भगवान् की प्रतिमा, चांदी का रथ, द्वादश दल का कमल का फूल, पात्र, कलश, चावल/अक्षत, धूप, दीप, गंगाजल, पूजन में कंडेल का फूल, लाल चंदन, गुड़, लाल वस्त्र, यज्ञोपवीत, रोली, गुलाल, नैवेद्य, जल पात्र, पंचामृत ( कच्चा दूध,दही, घी, मधु तथा शक्कर मिलाकर बनाएं), पान, सुपारी, लौंग, इलायची, नैवेद्य, नारियल, ऋतुफल, कपूर, आरती के लिए पात्र, हवन की सामग्री, घी, हवन कुण्ड, आम की लकड़ी, गाय के दूध से बनी खीर।
उद्यापन क्रम वैदिक रीति से
रविवार के व्रत करने वाले साधको के लिये यहाँ हम वैदिक मंत्रों द्वारा उद्यापन एवं रविवार पूजन विधि सांझा कर रहे है। वैदिक मंत्र की जानकारी न होने की अवस्था मे आप किसी ब्राह्मण द्वारा यह विधि करा सकते है अगर यह कराने में भी असमर्थ है तो नीचे दी हुई विधि द्वारा सामग्री चढ़ाते हुए सामान्य पूजन कर सकते है ध्यान रखें देव पूजन में भाव का महत्त्व सर्वप्रथम है लौकिक पूजन की अपेक्षा मानसिक पूजन का फल अधिक बताया गया है इसलिये प्रत्येक वस्तु चाहिए वह उपलब्ध हो या ना हो उसे उपलब्ध होने पर चढ़ा कर उपलब्ध ना होने पर मानसिक रूप से चढ़ाकर वही भाव दर्शाने से पूजा सामग्री भगवान अवश्य स्वीकार करते है एवं पूजा सफल मानी जाती है।
व्रती को रविवार के दिन प्रात:काल उठकर नित क्रम कर स्नान कर । लाल अथवा पीला वस्त्र धारण करें। पूजा गृह को स्वच्छ कर शुद्ध कर लें। सभी सामग्री एकत्रित कर लें। लकड़ी के चौकी पर हरा वस्त्र बिछायें । कांस्य का पात्र रखें । पात्र के ऊपर सूर्यनारायण की सात घोड़ो सहित प्रतिमा श्रीगणेश के साथ स्थापित करें । सामने आसन पर बैठ जायें। सभी पूजन सामग्री एकत्रित कर बैठ जायें।
पवित्रीकरण
सर्वप्रथम हाथ में जल लेकर मंत्र के द्वारा अपने ऊपर जल छिड़कें:-
ॐ पवित्रः अपवित्रो वा सर्वावस्थांगतोऽपिवा।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स वाह्यभ्यन्तर शुचिः॥
इसके पश्चात् पूजा कि सामग्री और आसन को भी मंत्र उच्चारण के साथ जल छिड़क कर शुद्ध कर लें:-
पृथ्विति मंत्रस्य मेरुपृष्ठः ग षिः सुतलं छन्दः कूर्मोदेवता आसने विनियोगः॥
अब आचमन करें
पुष्प से एक –एक करके तीन बूंद पानी अपने मुंह में छोड़िए और बोलिए-
ॐ केशवाय नमः
ॐ नारायणाय नमः
ॐ वासुदेवाय नमः
फिर ॐ हृषिकेशाय नमः कहते हुए हाथों को खोलें और अंगूठे के मूल से होंठों को पोंछकर हाथों को धो लें।
गणेश पूजन
इसके बाद सबसे पहले गणेश जी का पूजन पंचोपचार विधि (धूप, दीप, पूष्प, गंध, एवं नैवेद्य) से करें। चौकी के पास हीं किसी पात्र में गणेश जी के विग्रह को रखकर पूजन करें। यदि गणेश जी की मूर्ति उपलब्ध न हो तो सुपारी पर मौली लपेट कर गणेश जी बनायें।
संकल्प :-
हाथ में जल, अक्षत, पान का पत्ता, सुपारी और कुछ सिक्के लेकर निम्न मंत्र के साथ उद्यापन का संकल्प करें: –
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः। श्री मद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्याद्य श्रीब्रह्मणो द्वितीयपरार्द्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरेऽष्टाविंशतितमे कलियुगे प्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गतब्रह्मावर्तैकदेशे पुण्यप्रदेशे बौद्धावतारे वर्तमाने यथानामसंवत्सरे अमुकामने महामांगल्यप्रदे मासानाम् उत्तमे अमुकमासे (जिस माह में उद्यापन कर रहे हों, उसका नाम) अमुकपक्षे (जिस पक्ष में उद्यापन कर रहे हों, उसका नाम) अमुकतिथौ (जिस तिथि में उद्यापन कर रहे हों, उसका नाम) रविवासरान्वितायाम् अमुकनक्षत्रे (उद्यापन के दिन, जिस नक्षत्र में सुर्य हो उसका नाम) अमुकराशिस्थिते सूर्ये (उद्यापन के दिन, जिस राशिमें सुर्य हो उसका नाम) अमुकामुकराशिस्थितेषु (उद्यापन के दिन, जिस –जिस राशि में चंद्र, मंगल,बुध, गुरु शुक, शनि हो उसका नाम) चन्द्रभौमबुधगुरुशुक्रशनिषु सत्सु शुभे योगे शुभकरणे एवं गुणविशेषणविशिष्टायां शुभ पुण्यतिथौ सकलशास्त्र श्रुति स्मृति पुराणोक्त फलप्राप्तिकामः अमुकगोत्रोत्पन्नः (अपने गोत्र का नाम) अमुक नाम (अपना नाम) अहं रविवार व्रत अथवा उद्यापन अहं करिष्ये ।
सभी वस्तुएँ चौकी के पास छोड़ दें।
ध्यान:-
दोनों हाथ जोड़ सूर्य नारायण का ध्यान करें:-
मंत्र
ध्येय: सदा सवितृमंडलमध्यवर्त
नारायण: सरसिजासनसंनिविष्ट:।।
केयूरवान मकरकुंडलवान किरीटी
हारी हिरण्मयवपुर्धृतशंक चक्र:।।
फिर निम्नलिखित नाम मंत्रों से सूर्य को प्रणाम करें:
ॐ मित्राय नम:,
ॐ रवये नम:,
ॐ सूर्याय नम:,
ॐ भानवे नम:,
ॐ खगाय नम:,
ॐ पूष्णे नम:,
ॐ हिरण्यगर्भाय नम:,
ॐ मरीचये नम:,
ॐ आदित्याय नम:,
ॐ सवित्रे नम:,
ॐ अर्काय नम:,
ॐ भास्कराय नम:
इसके बाद सूर्य के साथ सारथि अरुण को अर्घ्य दें और निम्न मंत्र का पाठ करें।
ऊँ ऐही सूर्य सहस्त्रांशो तेजो राशि जगत्पते।
अनुकम्पय मां भक्त्या गृहणार्ध्य दिवाकर:।।
सप्ताश्व: सप्तरज्जुश्च अरुणो मे प्रसीद
ॐ कर्मसाक्षिणे अरुणाय नम:।।
आदित्यस्य नमस्कार ये कुर्वन्ति दिने-दिने।
जन्मांतर सहस्रेषु दरिद्र्यं नोपजायते।
आवाहन :-
अब हाथ में अक्षत तथा फूल लेकर सूर्य नारायण का आवाहन निम्न मंत्र के द्वारा
करें:-
आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर।
दिवाकर नमस्तुभ्यं, प्रभाकर नमोस्तुते।।
सप्ताश्वरथमारूढं प्रचंडं कश्यपात्मजम्।
श्वेतपद्मधरं देव तं सूर्यप्रणाम्यहम्।
सभी वस्तुएँ सूर्य नारायण के पास छोड़ दें।
आसन :-
हाथ में पुष्प लेकर मंत्र के द्वारा सूर्य देव को आसन समर्पित करें:-
जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महाधुतिम।
तमोहरि सर्वपापध्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम।।
सूर्यस्य पश्य श्रेमाणं योन तन्द्रयते।
पाद्य:-
पाद्य धोने के लिये मंत्र के उच्चारण के साथ पुष्प से सूर्य देव को जल अर्पित करें:-
ॐ दिवाकरायनाय नम: पाद्यो पाद्यम समर्पयामि
अर्घ्य:-
पुष्प से अर्घ्य के लिये सूर्यदेव को जल अर्पित करते हुये मंत्र का उच्चारण करें:-
ॐ भास्करय नम: अर्घ्यम समर्पयामि
आचमन:-
पुष्प से आचमन के लिये सूर्य देव को जल अर्पित करते हुये मंत्र का उच्चारण करें:-
ॐ मार्तण्डाय नम: आचमनीयम् जलम् समर्पयामि।
स्नान:-
पुष्प से स्नान के लिये सूर्य देव को जल अर्पित करते हुये मंत्र का उच्चारण करें:-
ॐ सर्वसौख्यप्रदाय नमः स्नानम् जलम् समर्पयामि।
पंचामृत- स्नान:-
पुष्प से पंचामृत स्नान के लिये सूर्य देव को पंचामृत अर्पित करते हुये मंत्र का उच्चारण करें:-
ॐ अदितियात्मजाय नम: पंचामृत स्नानम् समर्पयामि।
शुद्धोदक- स्नान:-
पंचामृत स्नान के बाद दूसरे पात्र में गंगाजल लेकर चम्मच से सूर्य देव को शुद्धोदक स्नान के लिये जल अर्पित करते हुये मंत्र का उच्चारण करें:-
ॐ सूर्यनारायनाय नम: शुद्धोदक स्नानम् समर्पयामि।
यज्ञोपवीत:-
मंत्र उच्चारण के द्वारा सूर्य देव को यज्ञोपवीत अर्पित करें :-
ऊँ मित्रये नम: यज्ञोपवीतम् समर्पयामि
वस्त्र-:-
मंत्र उच्चारण के द्वारा सूर्य देव को वस्त्र अर्पित करें :-
ऊँ खगाय नम: वस्त्रम् समर्पयामि
गंध:-
मंत्र उच्चारण के द्वारा सूर्य देव को गंध अर्पित करें :-
ॐ सवित्रये नम: गंधम् समर्पयामि।
अक्षत:-
मंत्र उच्चारण के द्वारा सूर्य देव को अक्षत अर्पित करें :-
ॐ आदित्याय नम: अक्षतम् समर्पयामि।
पुष्प:-
मंत्र उच्चारण के द्वारा सूर्य देव को पुष्प अर्पित करें ध्यान रहे सूर्यनारायण को कनेर पुष्प अत्यंत प्रिय है।
ॐ मरीचये नम: पुष्पम् समर्पयामि।
पुष्पमाला:-
मंत्र उच्चारण के द्वारा सूर्य देव को पुष्पमाला अर्पित करें :-
ॐ अर्काय नम: पुष्पमाला समर्पयामि।
धूप:-
मंत्र उच्चारण के द्वारा सूर्य देव को धूप
अर्पित करें :-
ॐ पूष्णे नम: धूपम् समर्पयामि
दीप :-
मंत्र उच्चारण के द्वारा सूर्यदेव को दीप दिखायें:-
ॐ हिरण्यगर्भाय नम: दीपम् दर्शयामि
नैवेद्य :-
मंत्र उच्चारण के द्वारा सूर्य देव को नैवेद्य अर्पित करें:-
भानवे नम: नैवेद्यम् समर्पयामि
आचमन:-
पुष्प से आचमन के लिये सूर्य देव को जल अर्पित करते हुये मंत्र का उच्चारण करें:-
ऊँ सर्वसौख्यप्रदाय नम: आचमनीयम् जलम् समर्पयामि।
करोद्धर्तन :-
मंत्र उच्चारण के द्वारा सूर्य देव को करोद्धर्तन के लिये चंदन अर्पित करें:-
ॐ अदितिआत्मजाय नम: करोद्धर्तन समर्पयामि।
ताम्बुलम् :-
पान के पत्ते को पलट कर उस लौंग,इलायची,सुपारी, कुछ मीठा रखकर दो ताम्बूल बनायें। मंत्र के द्वारा सूर्य देव को ताम्बुल अर्पित करें:-
ॐ सूर्याय नम: ताम्बूलम् समर्पयामि।
दक्षिणा:-
मंत्र के द्वारा सूर्यदेव को दक्षिणा अर्पित करें:-
ॐ हिरण्यगर्भाय नम: दक्षिणा समर्पयामि |
हवन :-
हवन –कुण्ड में आम की समिधा सजायें। हवन कुण्ड की पंचोपचार विधि से पूजा करें। हवन सामग्री में घी, तिल, जौ तथा चावल मिलाकर निम्न मंत्र के द्वारा 108 आहुति दें :-
ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा।।
आरती:-
एक थाली या आरती के पात्र में दीपक तथा कपूर प्रज्वलित कर गणेश जी की आरती उसके बाद सूर्य देव की आरती करें:-
आरती श्री सूर्य जी की
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।
त्रिभुवन – तिमिर – निकन्दन, भक्त-हृदय-चन्दन॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।
सप्त-अश्वरथ राजित, एक चक्रधारी।
दुःखहारी, सुखकारी, मानस-मल-हारी॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।
सुर – मुनि – भूसुर – वन्दित, विमल विभवशाली।
अघ-दल-दलन दिवाकर, दिव्य किरण माली॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।
सकल – सुकर्म – प्रसविता, सविता शुभकारी।
विश्व-विलोचन मोचन, भव-बन्धन भारी॥
ॐ जय कश्यप-नन्दन, जय अदिति नन्दन।
कमल-समूह विकासक, नाशक त्रय तापा।
सेवत साहज हरत अति मनसिज-संतापा ॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।
नेत्र-व्याधि हर सुरवर, भू-पीड़ा-हारी।
वृष्टि विमोचन संतत, परहित व्रतधारी॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।
सूर्यदेव करुणाकर, अब करुणा कीजै।
हर अज्ञान-मोह सब, तत्त्वज्ञान दीजै॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन
मंत्र पुष्पांजलि
मंत्र पुष्पांजली मंत्रों द्वारा हाथों में फूल लेकर भगवान को पुष्प समर्पित किए जाते हैं तथा प्रार्थना की जाती है। भाव यह है कि इन पुष्पों की सुगंध की तरह हमारा यश सब दूर फैले तथा हम प्रसन्नता पूर्वक जीवन बीताएं।
प्रदक्षिणा
नमस्कार, स्तुति -प्रदक्षिणा का अर्थ है परिक्रमा। आरती के उपरांत भगवन की परिक्रमा की जाती है, परिक्रमा हमेशा क्लॉक वाइज (clock-wise) करनी चाहिए। स्तुति में क्षमा प्रार्थना करते हैं, क्षमा मांगने का आशय है कि हमसे कुछ भूल, गलती हो गई हो तो आप हमारे अपराध को क्षमा करें।
इस तरह पूजन करने से सूर्य भगवान अति प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की हर कामना पूरी करते हैं।
व्रत के साथ-साथ स्तोत्र पाठ एवं कथा का होना भी बेहद महत्वपूर्ण है। इसीलिए इस व्रत में भी रविवार व्रत कथा का श्रवण किया जाता है। व्रत कथा निम्न प्रकार से है :-
रविवार व्रत कथा
बहुत पुराने समय में एक बुढ़िया एक नगर में निवास करती थी। उसका नित्य नियम था कि हर रविवार के दिन सुबह जल्दी उठ कर और स्नान इत्यादि से निवृत्त हो कर, वह घर के आंगन को गोबर से लीपती थी। उसके बाद उसका नियम था कि पहले सूर्य भगवान कि पूजा करती थी, तत्पश्चात भगवान को भोग लगाने के बाद ही भोजन करती थी उसका जीवन यापन बहुत मजे से कट रहा था क्योंकि सूर्य भगवान् कि कृपा से उसे कोई कष्ट नहीं था। बहुत ही कम समय में उसके ऊपर लक्ष्मी माता कि कृपा हुई और उसने काफी धन अर्जित कर लिया! उसकी प्रगति देख कर उसकी पड़ोसन जल भुन कर राख हो गयी।
बुढ़िया के पास खुद कि कोई गाय नहीं थी इसलिए हर रविवार को अपने आंगन को लीपने के लिए वह अपनी पड़ोसन के घर में आंगन में बंधी गाय का गोबर लाती थी। पड़ोसन ने उसे परेशान करने के लिए अपनी गाय को घर के अंदर बाँध दिया इसलिए बुढ़िया उस रविवार को अपने घर का आंगन लीप न सकी। आंगन न लीप पाने के कारण उस बुढ़िया ने सूर्य भगवान को भोग भी नहीं लगाया और उस दिन स्वयं भी भोजन नहीं किया। सूर्यास्त होने पर बुढ़िया भूखी-प्यासी सो गई। रात्रि में सूर्य भगवान ने उसे स्वप्न में दर्शन दिए और व्रत न करने तथा उन्हें भोग न लगाने का कारण पूछा।
बुढ़िया ने बहुत ही करुण स्वर में पड़ोसन के द्वारा घर के अन्दर गाय बांधने और गोबर न मिल पाने की बात बोली। सूर्य भगवान ने अपनी अनन्य भक्त बुढ़िया की परेशानी का कारण जानकर उसके सब दुःख दूर करते हुए कहा, “हे माता! तुम प्रत्येक रविवार को मेरी पूजा और व्रत करती हो। मैं तुमसे अति प्रसन्न हूं और तुम्हें ऐसी गाय प्रदान करता हूं जो तुम्हारे घर-आंगन को धन-धान्य से भर देगी। तुम्हारी सभी मनोकामनाएं- पूरी होंगी। रविवार का व्रत करनेवालों की मैं सभी इच्छाएं पूरी करता हूं। मेरा व्रत करने व कथा सुनने से बांझ स्त्रियों को पुत्र की प्राप्ति होती है। निर्धनों के घर में धन की वर्षा होती है। शारीरिक कष्ट नष्ट होते हैं। मेरा व्रत करते हुए प्राणी मोक्ष को प्राप्त करता है।” स्वप्न में उस बुढ़िया को ऐसा वरदान देकर सूर्य भगवान अन्तर्धान हो गए।
जब अगले दिन बुढ़िया सुबह उठी तो वह अपने घर में एक सुन्दर सी गाय और बछड़े को देख कर आश्चर्यचकित रह गयी। उसने जल्दी से गाय को अपने आंगन में बंधा और उसको चारा खिलाने लगी। जब पड़ोसन ने ये सब देखा तो उसकी जलन का तो कोई ठिकाना ही नहीं रहा और तभी उसने देखा कि गाय ने सोने का गोबर किया। यह देख कर पड़ोसन कि आखें फटी कि फटी रह गयी और उसने अवसर देख कर सारा सोना उठाया और अपने घर के अंदर ले गयी| बदले में उसने अपनी गाय का सामान्य गोबर रख दिया। यह क्रम रोज़ चलने लगा और पड़ोसन बहुत जल्दी ही काफी धनवान बन गयी बेचारी भोली बुढ़िया को कुछ पता नहीं था और वह पहले कि तरह ही हर रविवार को सूर्यदेव कि पूजा करती रही और कथा सुनती रही सूर्य भगवान को जब पडोसन की चालाकी का पता चला तो उन्होंने एक दिन तेज आंधी चलाई। आंधी का प्रकोप देखकर बुढ़िया ने अपनी गाय को घर के भीतर बाँध दिया। अब पडोसन सोने का गोबर न ले जा सकी। सुबह उठकर बुढ़िया ने सोने का गोबर देखा तो उसे बहुत आश्चर्य हुआ। उस दिन के बाद बुढ़िया गाय को घर के भीतर बाँधने लगी। सोने के गोबर से कुछ ही दिनों में वह बुढ़िया बहुत धनी हो गई।
बुढ़िया के धनी होने से पडोसन और बुरी तरह जल-भुनकर राख हो गई। अबकी बार उसने अपने पति को नगर के राजा के पास भेजा और बुढ़िया के पास सोने का गोबर देने वाली गाय के बारे में बताया। राजा ने अपने सैनिक भेजकर बुढ़िया की गाय लाने का आदेश दे दिया। सैनिक बुढ़िया के घर पहुँचे। उस समय बुढ़िया सूर्य भगवान को भोग लगाकर स्वयं भोजन ग्रहण करने वाली थी। राजा के सैनिक जबर्दस्ती गाय और बछडे को महल की ओर ले चले। बुढ़िया ने प्रार्थना की, बहुत रोई-चिल्लाई लेकिन राजा के सैनिक नहीं माने। गाय व बछडे के चले जाने से बुढ़िया को बहुत दु:ख हुआ। उस दिन उसने कुछ नहीं खाया और भूखी-प्यासी सारी रात सूर्य भगवान से गाय व बछडे को लौटाने के लिए प्रार्थना करती रही।
गाय देखकर राजा बहुत खुश हुआ। सुबह जब राजा ने सोने का गोबर देखा तो उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा। उधर सूर्य भगवान को भूखी-प्यासी बुढ़िया को इस तरह प्रार्थना करते देख उस पर बहुत दया आई। उसी रात सूर्य भगवान ने राजा को स्वप्न में कहा- राजन्! बुढ़िया की गाय व बछडा तुरंत लौटा दो, नहीं तो तुम पर विपत्तियों का पहाड टूट पडेगा। तुम्हारे राज्य में भूकम्प आएगा। तुम्हारा महल नष्ट हो जाएगा।
सूर्य भगवान के स्वप्न से बुरी तरह भयभीत राजा ने प्रात: उठते ही गाय और बछडा बुढ़िया को लौटा दिया। राजा ने अपनी तरफ से भी बहुत-सा धन देकर बुढ़िया से अपनी गलती के लिए क्षमा माँगी। राजा ने पडोसन और उसके पति को उनकी इस दुष्टता के लिए दंड भी दिया।
इसके बाद राजा ने राज्य में घोषणा करवाई कि सभी स्त्री-पुरुष रविवार का व्रत करें। जनता ने भी ऐसा ही किया। रविवार का व्रत करने से सभी लोगों के घर धन-धान्य से भर गए। चारों ओर खुशहाली छा गई। सभी लोगों के शारीरिक कष्ट दूर हो गए। नि:संतान स्त्रियों की गोद भर गई। राज्य में सभी स्त्री-पुरुष सुखी जीवन-यापन करने लगे।
आदित्य हृदय स्तोत्र
विनियोग
ॐ अस्य आदित्यह्रदय स्तोत्रस्य अगस्त्यऋषि: अनुष्टुप्छन्दः
आदित्यह्रदयभूतो भगवान् ब्रह्मा देवता निरस्ताशेषविघ्नतया ब्रह्माविद्यासिद्धौ सर्वत्र जयसिद्धौ च विनियोगः
पूर्व पिठिता
ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम् । रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम् ॥1॥
दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम् । उपगम्याब्रवीद् राममगस्त्यो भगवांस्तदा ॥2॥
राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्मं सनातनम् । येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसे ॥3॥
आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम् । जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम् ॥4॥
सर्वमंगलमागल्यं सर्वपापप्रणाशनम् । चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वर्धनमुत्तमम् ॥5॥
मूल -स्तोत्र
रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम् । पुजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम् ॥6॥
सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावन: । एष देवासुरगणांल्लोकान् पाति गभस्तिभि: ॥7॥
एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिव: स्कन्द: प्रजापति: । महेन्द्रो धनद: कालो यम: सोमो ह्यापां पतिः ॥8॥
पितरो वसव: साध्या अश्विनौ मरुतो मनु: । वायुर्वहिन: प्रजा प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकर: ॥9॥
आदित्य: सविता सूर्य: खग: पूषा गभस्तिमान् । सुवर्णसदृशो भानुर्हिरण्यरेता दिवाकर: ॥10॥
हरिदश्व: सहस्त्रार्चि: सप्तसप्तिर्मरीचिमान् । तिमिरोन्मथन: शम्भुस्त्वष्टा मार्तण्डकोंऽशुमान् ॥11॥
हिरण्यगर्भ: शिशिरस्तपनोऽहस्करो रवि: । अग्निगर्भोऽदिते: पुत्रः शंखः शिशिरनाशन: ॥12॥
व्योमनाथस्तमोभेदी ऋग्यजु:सामपारग: । घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवंगमः ॥13॥
आतपी मण्डली मृत्यु: पिगंल: सर्वतापन:। कविर्विश्वो महातेजा: रक्त:सर्वभवोद् भव: ॥14॥
नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावन: । तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन् नमोऽस्तु ते ॥15॥
नम: पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नम: । ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नम: ॥16॥
जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नम: । नमो नम: सहस्त्रांशो आदित्याय नमो नम: ॥17॥
नम उग्राय वीराय सारंगाय नमो नम: । नम: पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोऽस्तु ते ॥18॥
ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सुरायादित्यवर्चसे । भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नम: ॥19॥
तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने । कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नम: ॥20॥
तप्तचामीकराभाय हरये विश्वकर्मणे । नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे ॥21॥
नाशयत्येष वै भूतं तमेष सृजति प्रभु: । पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभि: ॥22॥
एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठित: । एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम् ॥23॥
देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतुनां फलमेव च । यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमं प्रभु: ॥24॥
एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च । कीर्तयन् पुरुष: कश्चिन्नावसीदति राघव ॥25॥
पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगप्ततिम् । एतत्त्रिगुणितं जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसि ॥26॥
अस्मिन् क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि । एवमुक्ता ततोऽगस्त्यो जगाम स यथागतम् ॥27॥
एतच्छ्रुत्वा महातेजा नष्टशोकोऽभवत् तदा ॥ धारयामास सुप्रीतो राघव प्रयतात्मवान् ॥28॥
आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान् । त्रिराचम्य शूचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान् ॥29॥
रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थं समुपागतम् । सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत् ॥30॥
अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितमना: परमं प्रहृष्यमाण: ।
निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति ॥31॥
।।सम्पूर्ण ।।