संजय द्विवेदी/सर्वेश श्रीवास्तव
अंडमान में सच हुआ बचपन का देखा सपना
सोनभद्र । विश्व हिन्दू परिषद के सह राष्ट्रीय मंत्री और अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख अम्बरीष सिंह ने बुधवार को बताया कि बाल्यावस्था से ही जब भी अण्डमान के बारे में सुना और पढ़ा तो केवल याद रहा, स्वातंत्र्य समर के नायक स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर की गौरवगाथा और तमाम क्रांतिवीरों का यशोगान जिन्होंने भारतमाता को पराधीनता के पाश से मुक्त कराने के लिए भारतमाता की मुख्य भूमि से हजारों मील दूर बंगाल की खाड़ी के इस द्वीप में क्रूरकर्मा अंग्रेजों द्वारा निर्मित कुख्यात सेलुलर जेल की काल कोठरियों में अपना जीवन बिताया ।अमानुषिक यातनाएं सहीं, कुछ विक्षिप्त हो गए और तमाम ने आत्माहूति दे दी। मातृभूमि के चरणों में,यह भी पढ़ा था नेताजी सुभाष बाबू ने देश के स्वाधीनता के चार वर्ष पूर्व ही यहां राष्ट्रीय ध्वज फहराया था।
उन्होंने कहा कि वर्षों से इच्छा थी इस महातीर्थ के दर्शन की, जो रामजी के कृपा से पूर्ण हुई,पोर्टब्लेयर में रामनवमी के शुभ अवसर पर विश्व हिन्दू परिषद और वनवासी कल्याण आश्रम द्वारा आयोजित भव्य रामनवमी समारोह में मुझे सहभागी होने का सुअवसर प्राप्त हुआ,मेरी चिरसंचित आकांक्षा की पूर्ति हुई। 10 अप्रैल को कार्यक्रम की समाप्ति के बाद 11 से मेरी तीर्थयात्रा आरम्भ हुई सेलुलर जेल का मुख्य द्वार उसके सामने सावरकर पार्क में कुछ अमर हुतात्माओं के प्रतिमाओं का वंदन, जेल में प्रवेश करते ही उस वृक्ष को नमन किया जो सेलुलर जेल में स्वाधीनता के नायकों पर हो रहे पाशविक अत्याचार और वहां घटी हर छोटी बड़ी घटना का साक्षी है।
यातना गृह में बने वह कोल्हू देखे जिनमें क्रांतिवीर जुतकर नारियल का तेल निकालते थे, कोड़ों से पिटाई होती थी वह पिजड़ा भी देखा, वीर सावरकर की काल कोठरी के ठीक नीचे बना फासीघर देखा जिसमें एक साथ तीन लोगों को फांसी दी जाती थी कोठरियों में बंद आजादी के नायकों की दिनचर्या बन गई थी,नित्य फांसी पर चढ़ने वालों की चीख सुनने का।उन कालकोठरियों को देखा जिसमे देश के आजादी के दीवाने एकाकी नरकीय जीवन जीते थे अपनों से बहुत बहुत और बहुत दूर।
सचिन्द्र नाथ सान्याल की काल कोठरी के दर्शन किए और स्वाधीनता संग्राम के महानायक वीर सावरकर की उस कोठरी का भी दर्शन किया जिसमें इस महामानव ने 10 वर्षों का जीवन जीया अमानवीय यातनाएं सहीं लेकिन न झुके और न ही टूटे। इस महातीर्थ के दर्शन कर के धन्य हो गया तथा उन सब प्रति घृणा कुछ और बढ़ गई जो आजादी के बाद इस
देश के नीति नियंता बने और इतने कृतघ्न निकले की इन महानायकों का गौरवशाली इतिहास देश के सामने न आए उसका पूरा प्रयत्न किया इन लोगों ने उस जिमखाना मैदान के भी दर्शन हुए जहां1943 में नेताजी सुभाष बाबू ने राष्ट्रीय ध्वज लहराया था इस ऐतिहासिक घटना के स्मारक को भी नमन किया।