बभनी/सोनभद्र (अरुण पांडेय)
ओपेन टेंडर के आड़ में चलता है मैनेज टेंडर का धंधा।
बभनी। विकास खंड में शासन के आदेश के बावजूद बुनियादी भ्रष्टाचार का खेल जारी है ओपेन टेंडर के आड़ में मैनेजिंग की व्यवस्था कर कुछ चिन्हित लोगों को टेंडर दे दिया जाता है जहां भारी मात्रा में लूट मची होती है। एडीओ पंचायत सेक्रेटरी जेई की सांठ-गांठ में कुछ ग्राम प्रधानों पर दबाव बनाकर टेंडर पास करा दिए जाते हैं और चिन्हित लोगों को दे दिए जाते हैं जहां उन्हें सामान दिलाए जाते हैं और और आवश्यकता पड़ने पर सप्लायरों के द्वारा पैसे भी दे दिए जाते हैं जो आदिवासी क्षेत्र के सीधे-सादे व कम पढ़े-लिखे प्रधानों को इसकी मुसीबत झेलनी पड़ती है सप्लायरों के द्वारा मनमानी तरीके से बील बनाकर दाम वसूले जाते हैं और दिए गए पैसे चुकाते-चुकाते उनके पांच वर्ष बीत जाते हैं और वे केवल कार्यालयों के चक्कर लगाते फिरते हैं सप्लायर हमेशा चेक कटवाने की तलाश में लगे होते हैं ग्राम प्रधान केवल पांच वर्षों तक मुंशियों की तरह काम कराते रहते हैं उन्हें मजदूरी देने के अलावा केवल अपने मानदेय पर ही संतुष्ट होना पड़ता है और सप्लायर सेक्रेटरियों के कार्यालयों के चक्कर लगाते हुए चेक कटवाते फिरते हैं इसके बावजूद प्रधानों पर इतना दबाव बना दिया जाता है कि वो कभी खुलकर बोल भी नहीं पाते इन सबसे बचने के बाद बाकी कामों का लेखा-जोखा पंचायत सचीवों के पास होता है जो सेक्रेटरियों की भूमिका में होते हैं पढ़े-लिखे व समझदार प्रधानों के सामने तो इनकी नहीं लगती पर बाकी प्रधानों का विवरण भी वही बताते हैं ऐसे प्रधान पांच वर्षों तक अपने कागजातों को समझ भी नहीं पाते हैं सारा लेखा-जोखा पंचायत सचिव व सेक्रेटरियों के पास ही होता है अगले बार जनता के बीच उन्हें इतना जलील होना पड़ता है कि वे चाह कर भी प्रधान बनने का सपना नहीं देख सकते जिसमें सप्लायरों व सेक्रेटरियों की चांदी कटती है पैसे के धुन में उन्हें निलंबित या बर्खास्त का होने का भी कोई असर नहीं होता।