जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से फूल (अस्थियों) का गंगा आदि पवित्र नदियों में विसर्जन क्यों?

धर्म डेक्स । जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से फूल (अस्थियों) का गंगा आदि पवित्र नदियों में विसर्जन क्यों?



मृतक की अस्थियों (हड्डियों) को धार्मिक दृष्टिकोण से ‘फूल’ कहते हैं। इसमें अगाध श्रद्धा और आदर प्रकट करने का भाव निहित होता है। जहां संतान फल है, वहीं पूर्वजों की अस्थियां ‘फूल’ कहलाती हैं।

इन्हें गंगा जैसी पवित्र नदी में विसर्जन करने के दो कारण बताए गए हैं। पहला कूर्मपुराण के मतानुसार

यावदस्वीनि गंगायां तिष्ठन्ति पुरुषस्य तु ।
तावद् वर्ष सहस्राणि स्वर्गलोके महीयते ॥ 31 ॥

तीर्थानां परमं तीर्थ नदीनां परमा नदी। मोक्षदा सर्वभूतानां महापातकीनामपि ॥ 32 ॥

सर्वत्र सुलभा गंगा त्रिषु स्थानेषु दुर्लभा । गंगाद्वारे प्रयागे च गंगासागरसंगमे ॥ 33॥

सर्वेषामेव भूतानां पापोपहतचेतसाम् ।
गतिमन्वेषमाणानां नास्ति गंगासमा गतिः ॥ 34 ॥

-कूर्मपुराण 35 31-34

अर्थात् जितने वर्ष तक पुरुष की अस्थियां (फूल) गंगा में रहती हैं, उतने हजार वर्षों तक वह स्वर्गलोक में पूजित होता है। गंगा को सभी तीर्थों में परम तीर्थ और नदियों में श्रेष्ठ नदी माना गया है, वह सभी प्राणियों, यहां तक कि महापातकियों को भी मोक्ष प्रदान करने वाली हैं। गंगा सर्व-साधारण के लिए सर्वत्र सुलभ होने पर भी हरिद्वार, प्रयाग एवं गंगासागर-इन तीनों स्थानों में दुर्लभ होती है। उत्तम गति की इच्छा करने वाले तथा पाप से उपहत चित्त वाले सभी प्राणियों के लिए गंगा के समान और कोई दूसरी गति नहीं है।

मृतक की पंचांग अस्थियों को गंगा में विसर्जित करने के संबंध में शास्त्रकार कहते हैं।

यावदस्थीनि गंगायां तिष्ठिन्ति पुरुषस्य च। तावद्वर्ष सहस्राणि ब्रह्मलोके महीयते ॥

-शंखस्मृति

अर्थात मृतक की अस्थियां जब तक गंगा में रहती हैं, तब तक मृतात्मा शुभ लोकों में निवास करता हुआ हजारों वर्षों तक आनन्दोपभोग करता है।

धार्मिक लोगों में यह भी मान्यता है कि तब तक मृतात्मा की परलोक यात्रा प्रारंभ नहीं होती, जब तक कि उसके फूल गंगा में विसर्जित नहीं कर दिए जाते।

दूसरा, मृतक की अस्थियों को गंगा आदि पवित्र नदियों में विसर्जन करने की प्रथा के पीछे भी वैज्ञानिक तथ्य छुपा हुआ है। चूंकि गंगा नदी से सैकड़ों वर्ग मील भूमि को सींचकर उपजाऊ बनाया जाता है, जिससे उसके निरंतर प्रवाह के कारण भी उपजाऊ शक्ति घटती रहती है। ऐसे में गंगा में फास्फोरस की उपलब्धता बनी रहे, इसीलिए उसमें अस्थि विसर्जन करने की परंपरा बनाई गई है, ताकि फास्फोरस से युक्त खाद, पानी द्वारा अधिक पैदावार उत्पन्न की जा सके। उल्लेखनीय है कि फास्फोरस भूमि की उर्वरा शक्ति को बनाए रखने के लिए एक आवश्यक तत्त्व होता है, जो हमारी हड्डियों में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होता है।

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