समर जायसवाल-

दुद्धी – दुद्धी में महिलाओं ने पुत्र के दीर्धायु और मंगलकामना के लिए ब्रती महिलाओं ने रखा जीवितपुत्रिका का निर्जला ब्रत ।बता दे कि भक्ति एवम उपासना का एक रूप उपवास हैं ,जो मनुष्य में संयम, त्याग, प्रेम एवं श्रध्दा की भावना को बढ़ाता हैं। उन्ही में से एक जीवित पुत्रिका व्रत भी है।यह व्रत संतान की मंगल कामना एवं चिर आयु के लिए किया जाता हैं यह व्रत माताएं रखती हैं जीवित पुत्रिका व्रत निर्जला किया जाता हैं जिसमे पूरा दिन रात पानी नही लिया जाता हैं सन्तान की सुरक्षा एवं चिरआयु के लिए इस व्रत को सबसे अधिक महत्व दिया जाता हैं पौराणिक समय से इसकी प्रथा चली आ रही है।
हिन्दू पंचाग के अनुसार यह व्रत आश्विन माह कृष्ण पक्ष की सप्तमी से नवमी तक मनाया जाता हैं ।

यह कथा महाभारत काल से जुड़ी हुई हैं महा भारत युद्ध के बाद अपने पिता की मृत्यु के बाद अश्वथामा बहुत ही नाराज था और उसके अन्दर बदले की आग तीव्र थी जिस कारण उसने पांडवो के शिविर में घुस कर सोते हुए पांच लोगो को पांडव समझकर मार डाला था लेकिन वे सभी द्रोपदी की पांच संताने थी उसके इस अपराध के कारण उसे अर्जुन ने बंदी बना लिया और उसकी दिव्य मणि छीन ली जिसके फलस्वरूप अश्वथामा ने उत्तरा की अजन्मी संतान को गर्भ में मारने के लिए ब्रह्मास्त्र का उपयोग किया जिसे निष्फल करना नामुमकिन था उत्तरा की संतान का जन्म लेना आवश्यक था जिसके कारण भगवान श्री कृष्ण ने अपने सभी पुण्यों का फल उत्तरा की अजन्मी संतान को देकर उसको गर्भ में ही पुनः जीवित किया गर्भ में मरकर जीवित होने के कारण उसका नाम जीवित पुत्रिका पड़ा और आगे जाकर यही बालक राजा परीक्षित बना तब ही से इस व्रत को किया जाता हैं।
कथाएं चाहे जो भी हों लेकिन माताओं के द्वारा अपनी संतान की सुरक्षा व उनके दीर्घायु होने के लिए किया जाने वाला यह बहुत ही कठिन व्रत है। इलाके में जीवित पुत्रिका ब्रत की ब्रती महिलाओ द्वारा बृहस्पतिवार को विधिविधान से पूजा अर्चना की गई
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