धर्म डेक्स। जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से भावानुसार बुध आदित्य योग……
वैदिक ज्योतिष में प्रचलित परिभाषा के अनुसार किसी कुंडली के किसी घर में जब सूर्य तथा बुध संयुक्त रूप से स्थित हो जाते हैं यूति होती हे तो ऐसी कुंडली में बुध आदित्य योग का निर्माण हो जाता है।
इस योग का शुभ प्रभाव जातक को बुद्धि, विशलेषणात्मक क्षमता, वाक कुशलता, संचार कुशलता, नेतृत्व करने की क्षमता, मान, सम्मान, प्रतिष्ठा तथा ऐसी ही अन्य कई विशेषताएं प्रदान कर सकता है। बुध हमारे सौर मंडल का सबसे भीतरी ग्रह है जिसका अर्थ यह है कि बुध सूर्य के सबसे समीप रहता है तथा बहुत सी कुंडलियों में बुध तथा सूर्य एक साथ ही देखे जाते हैं जिसका अर्थ यह हुआ कि इन सभी कुंडलियों में बुध आदित्य योग बन जाता है जिससे अधिकतर जातक इस योग से मिलने वाले शुभ फलों को प्राप्त करते हैं।
जो वास्तविक जीवन में देखने को नहीं मिलता क्योंकि इस योग के द्वारा प्रदान की जाने वालीं विशेषताएं केवल कुछ विशेष जातकों में ही देखने को मिलतीं हैं। इसलिए यह कहा जा सकता है कि बुध आदित्य योग की परिभाषा अपने आप में पूर्ण नहीं है तथा किसी कुंडली में इस योग का निर्माण निश्चित करने के लिए कुछ अन्य तथ्यों के विषय में विचार कर लेना भी आवश्यक है। किसी कुंडली में किसी भी शुभ योग के बनने के लिए यह आवश्यक है कि उस योग का निर्माण करने वाले सभी ग्रह कुंडली में शुभ रूप से काम कर रहे हों क्योंकि अशुभ ग्रह शुभ योगों का निर्माण नहीं करते अपितु अशुभ योगों अथवा दोषों का निर्माण करते हैं। इसी आधार पर यह कहा जा सकता है कि किसी कुंडली में बुध आदित्य योग के बनने के लिए कुंडली में सूर्य तथा बुध, दोनों का शुभ होना आवश्यक है तथा इन दोनों में से किसी एक ग्रह के अथवा दोनों के ही कुंडली में अशुभ होने से उस कुंडली में बुधादित्य योग का निर्माण नहीं होता बल्कि किसी प्रकार के दोष का निर्माण हो सकता है। उदाहरण के लिए किसी कुंडली में सूर्य के अशुभ होने पर, बुध के शुभ होने पर तथा सूर्य बुध के संयुक्त होने पर कुंडली में बुधादित्य योग का निर्माण नहीं होगा बल्कि इस स्थिति में अशुभ सूर्य के कारण शुभ बुध को हानि पहुंचेगी जिसके कारण बुध की विशेषताओं से जुड़े हुए क्षेत्रों में जातक को हानि उठानी पड़ सकती है तथा कुंडली में बुध के अशुभ और सूर्य के शुभ होकर संयुक्त होने की स्थिति में भी इस दोष का निर्माण नहीं होगा बल्कि जातक को सूर्य की विशेषताओं से संबंधित क्षेत्रों में हानि उठानी पड़ेगी। किसी कुंडली में सबसे बुरी स्थिति तब पैदा हो सकती है जब कुंडली में सूर्य तथा बुध दोनों ही अशुभ होकर संयुक्त हों क्योंकि इस स्थिति में जातक को दोनों ही ग्रहों की विशेषताओं से संबंधित क्षेत्रों में हानि उठानी पड़ सकती है। इसलिए किसी कुंडली में बुधादित्य योग के निर्माण के लिए सूर्य तथा बुध दोनों का ही शुभ होना आवश्यक है। यहां पर यह बात ध्यान देने योग्य है कि कुंडली में सूर्य तथा बुध दोनों के शुभ होकर संयुक्त हो जाने से बुधादित्य योग का निर्माण होने पर भी इस योग से संबंधित शुभ फलों को बताने से पहले कुंडली में सूर्य तथा बुध का बल तथा स्थिति देख लेनी अति आवश्यक है जिसके कारण इस योग के शुभ फलों में बहुत अंतर आ सकता है।
उदाहरण के लिए इस योग के किसी कुंडली में तुला अथवा मीन राशि में स्थित सूर्य तथा बुध के संयोग से बनने पर यह योग जातक के लिए अधिक फलदायी नहीं होगा क्योंकि तुला में सूर्य तथा मीन में बुध बलहीन अथवा नीच रहते हैं तथा कोई भी बलहीन ग्रह कोई शुभ योग बनाने पर भी जातक को बहुत अधिक शुभ फल प्रदान नहीं कर सकता। यह योग उस स्थिति में और भी कमजोर हो जाएगा जब शुभ सूर्य तथा बुध किसी कुंडली में मीन राशि में स्थित हों क्योंकि मीन राशि में बुधादित्य योग के बनने से बुध को दोहरी बलहीनता का सामना करना पड़ सकता है जिसमें से एक तो बुध के मीन राशि में स्थित होने से है तथा दूसरी सूर्य के अधिक पास होने के कारण बुध के अस्त हो जाने के कारण हो सकती है जिससे इस योग की फल प्रदान करने की क्षमता में और भी कमी आ जाएगी। इसी प्रकार कुंडली के किसी बलहीन घर में बनने वाला बुध आदित्य योग भी अपेक्षाकृत कम शुभ फल प्रदान करेगा तथा किसी कुंडली में सूर्य पर किसी अशुभ ग्रह का प्रभाव होने के कारण पित्र दोष बनने पर भी इस योग का शुभ फल बहुत सीमा तक कम हो जाएगा। इसलिए बुध आदित्य योग के किसी कुंडली में बनने तथा इसके शुभ फलों से संबंधित निर्णय करने से पहले इस योग के निर्माण तथा फलादेश से संबंधित सभी महत्वपूर्ण तथ्यों पर भली भांति विचार कर लेना चाहिए तथा उसके पश्चात ही किसी कुंडली में इस योग का बनना तथा इसके शुभ फलों का निर्णय करना चाहिए। किसी कुंडली में ठीक प्रकार से बनने पर बुधादित्य योग जातक को कुंडली के विभिन्न घर में अपनी स्थिति के आधार पर नीचे बताए गए कुछ संभावित फल प्रदान कर सकता है।
बुधादित्य योग यदि लग्न में हो तो बालक का कद माता-पिता के बीच का होता है। यदि वृष, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, कुंभ, राशि लग्न में हो तो लंबा कद होता है। जातक का स्वभाव कठोर तथा वात-पित्त-कफ से पीड़ित होता है।
बाल्यावस्था में कान, नाक, आंख, गला, दांत आदि में कष्ट सहन करना पड़ता है। स्वभाव से वीर, क्षमाशील, कुशाग्र बुद्धि, उदार, साहसी एवं आत्मसम्मानी होता है। स्त्री जातक में प्राय: चिड़चिड़ापन तथा बालों में भूरापन भी देखा जाता है।
मतांतर से लग्न में स्थित बुधादित्य योग जातक को मान, सम्मान, प्रसिद्धि, व्यवसायिक सफलता तथा अन्य कई प्रकार के शुभ फल प्रदान कर सकता है।
द्वितीय भाव में यदि बुधादित्य योग हो तो जातक की तार्किक अभिव्यक्ति होती है, लेकिन व्यवहार में शून्यता-सी झलकती है। कई अभियंताओं, घूसखोरों एवं ऋण लेकर तथा दूसरों के धन से व्यवसाय करने वाले या दूसरों की पुस्तकें लेकर अध्ययन करने वाले लोगों के लिए स्थिति प्राय: बनी हुई होती है। यह योग जातक को धन, संपत्ति, ऐश्वर्य, सुखी वैवाहिक जीवन तथा अन्य कई प्रकार के शुभ फल प्रदान कर सकता है।
तृतीय स्थान पर यदि बुधादित्य योग हो तो जातक स्वयं परिश्रमी होता है तथा भाई-बहनों में आत्मीय स्नेह नहीं पा सकता। मौसी को कष्ट रहता है तथा भाग्योदय के अनेक अवसर खो देता है। पात्रता के अनुरूप नौकरीपेशा तथा व्यवसाय अवश्य प्रदान करवाता है, लेकिन पारिवारिक खुशहाली में बाधक होता है।
तीसरे घर मे यह योग जातक को बहुत अच्छी रचनात्मक क्षमता प्रदान कर सकता है जिसके चलते ऐसे जातक रचनात्मक क्षेत्रों में सफलता प्राप्त कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त तीसर घर का बुध आदित्य योग जातक को सेना अथवा पुलिस में किसी अच्छे पद की प्राप्ति भी करवा सकता है।
चतुर्थ स्थान का बुधादित्य इस भाव के योग को अधिकतर विद्वान एवं ग्रंथ श्रेष्ठ मानते हैं। चतुर्थ भाव में बुधादित्य योग मनुष्य को आशातीत सफलता प्रदान करने वाला होता है। संस्था प्रधान, तार्किक मति, कुलपति, प्रोफेसर, इंजीनियर, सफल राजनेता, न्यायाधीश या उच्च कोटि का अपराधी भी बना देता है।
माता का स्वास्थ्य चिंताजनक तथा पत्नी के भाग्य का भी सहारा मिलता है। अपनी स्थायी संपत्ति होते हुए भी दूसरों या सरकारी वाहनों, भवनों का उपयोग करने वाला तथा विषमलिंगी मित्रों का सहयोग एवं प्रेम करने वाला होता है। यह योग जातक को सुखमय वैवाहिक जीवन, ऐश्वर्य, रहने के लिए सुंदर तथा सुविधाजनक घर, वाहन सुख तथा विदेश भ्रमण आदि जैसे शुभ फल प्रदान कर सकता है।
पंचम भाव में यह योग अल्प संतान लेकिन प्रतिभा संपन्न संतान प्रदान करवाता है। चित्त में उद्विग्नता वात रोग एवं यकृत विकार की प्रबल संभावना बन जाती है। घर में भाभी या बड़ी बहन से वैचारिक मतभेद होते हैं। मेष, सिंह, वृश्चिक, धनु, मीन राशि में यह योग अल्प संतान प्रदाता होता है। स्त्री ग्रहों से दृष्ट होने पर कन्या संतान की अधिकता संभव होती है। पांचवे घर का बुध आदित्य योग जातक को बहुत अच्छी कलात्मक क्षमता, नेतृत्व क्षमता तथा आध्यातमिक शक्ति प्रदान कर सकता है जिसके चलते ऐसा जातक अपने जीवन के अनेक क्षेत्रों में सफलता प्राप्त कर सकता है।
छठे भाव में सूर्य बुध के साथ हो तो शत्रुओं की मिथ्या विरोधी क्रियाओं से चिंतायुक्त होते हुए भी आत्मविश्वास बना रहता है। मामा पक्ष से बचपन में लाभ मिलता है, लेकिन आवश्यकता पड़ने पर सहयोग नहीं मिल पाता है। इस भाव मे यह योग जातक को एक सफल वकील, जज, चिकित्सक, ज्योतिषी आदि बना सकता है तथा इस योग के प्रभाव में आने वाले जातक अपने व्यवसाय के माध्यम से बहुत धन तथा ख्याति अर्जित कर सकते हैं।
सप्तम भाव में सूर्य बुध के साथ हो तो शत्रुओं की मिथ्या विरोधी क्रियाओं से चिंतायुक्त होते हुए भी आत्मविश्वास बना रहता है। मामा पक्ष से बचपन में लाभ मिलता है लेकिन आवश्यकता पड़ने पर सहयोग नहीं मिल पाता है। सप्तम भाव में बुधादित्य योग यौन रोगों को उत्पन्न करने वाला तथा अत्यंत कामी भाव को समय एवं परिस्थिति को ध्यान में रखकर उत्पन्न करने वाला होता है। ऐसे लोग अपने जीवनसाथी की उपेक्षा कर दूसरों की ओर विशेष आकृष्ट होने वाले होते हैं लेकिन कभी भी अंतरंग संबंधों में नहीं बंध पाते हैं। सप्तम के बुधादित्य योग वाले प्राय: चिकित्सक, अभिनेता निजी सहायक, रत्न व्यवसायी, समाजसेवा एवं स्वयंसेवी संस्थाओं से संबद्ध होते हैं। सिंह या मेष राशि सप्तम में हो तो एकनिष्ठ होते हैं। शुभ ग्रहों की दृष्टि एवं सान्निध्य इन योगों में बड़ा भारी परिवर्तन भी कर देता है। जातक के वैवाहिक जीवन को सुखमय बना सकता है तथा यह योग जातक को सामाजिक प्रतिष्ठा तथा प्रभुत्व वाला कोई पद भी दिला सकता है।
अष्टम भाव में यदि बुधादित्य योग हो तो जातक किसी को सहयोग करने के चक्कर में स्वयं उलझ जाता है। दुर्घटना में पैर, हाथ, गाल, नाखून एवं दांत पर चोट का भय बना रहता है। विदेशी मुद्रा से व्यापार, किडनी स्टोन, आमाशय में जलन तथा आंतों में विकार भी इस योग का परिणाम बन जाता है। कुंडली के आठवें घर में बनने वाला बुधादित्य योग जातक को किसी वसीयत आदि के माध्यम से धन प्राप्त करवा सकता है तथा यह योग जातक को आध्यात्म तथा परा विज्ञान के क्षेत्रों में भी सफलता प्रदान कर सकता है।
नवम स्थान पर यह योग जातक को स्वाभिमानी के साथ-साथ अहंकारी बना देता है तथा प्रारंभ में कई सुअवसरों का परित्याग बड़े भारी पश्चाताप का कारण बनता है। नौवें घर में बुध आदित्य योग जातक को उसके जीवन के अनेक क्षेत्रों में सफलता प्रदान कर सकता है तथा इस योग के शुभ प्रभाव में आने वाले जातक सरकार में मंत्री पद अथवा किसी प्रतिष्ठित धार्मिक संस्था में उच्च पद भी प्राप्त कर सकते हैं।
दशम भाव में बुधादित्य योग बुद्धिमान, धन कमाने में चतुर, साहसी एवं संगीत प्रेमी बनाता है। पुत्र-पौत्रादि सुख से संपन्न लेकिन एक संतान से चिंतित भी बनाता है। धार्मिक स्थानों का निर्माण लंबी ख्याति प्रदान कराता है। इस घर में बनने वाला बुधादित्य योग जातक को उसके व्यवसायिक क्षेत्र में सफलता प्रदान कर सकता है तथा ऐसा जातक अपने किसी अविष्कार, खोज अथवा अनुसंधान के सफल होने के कारण बहुत ख्याति भी प्राप्त कर सकता है।
ग्यारहवें भाव में यदि सूर्य बुध के साथ हो तो यशस्वी, ज्ञानी, संगीत विद्या प्रिय, रूपवान एवं धनधान्य से संपन्न करवाता है। लोकसेवा के लिए सरकार एवं अनेक प्रतिष्ठानों से धन की प्राप्ति होती है।ग्यारहवें घर में बनने वाला बुधादित्य योग जातक को बहुत मात्रा में धन प्रदान कर सकता है तथा इस प्रकार के बुध आदित्य योग के प्रभाव में आने वाला जातक सरकार में मंत्री पद अथवा कोई अन्य प्रतिष्ठा अथवा प्रभुत्व वाला पद भी प्राप्त कर सकता है।
द्वादश भाव में बुधादित्य योग चाचा-ताऊ से विरोध करवाता है तथा अपनी संपत्ति उनके चंगुल में फंस जाती है। जुआ, सट्टा, शेयर या अन्य आकस्मिक धन-लाभ के व्यवसायों में फंसकर अपना सर्वस्व लूटा देता है। बारहवें घर में बुधादित्य योग जातक को विदेशों में सफलता, वैवाहिक जीवन में सुख तथा आध्यात्मिक विकास प्रदान कर सकता है।
इस योग के कई अपवाद भी है बुधादित्य योग को राशि एवं अन्य ग्रहों के संबंध भी प्रभावित करते हैं लेकिन अलग-अलग भावों में एकाकी हो तो ऐसा ही फल प्रदान करता है।