लोगों को ‘पैनिक’ बटन न दबाने की सलाह लेकिन ‘रोकथाम’ और ‘सुरक्षा’ बटनों को जरूर दबाएं
अपने शरीर का अत्यधिक ध्यान रखें तभी आपका शरीर बीमारियों से लड़ने में आपका साथ देगा- उपराष्ट्रपति
लोगों को चिंता न करने, योग का अभ्यास करने और प्रतिरक्षा को मजबूत करने के लिए पारंपरिक उपचारों को अपनाने की सलाह दी
परिवार और दोस्तों के साथ जुड़े रहने के लिए तकनीक का इस्तेमाल करें- उपराष्ट्रपति
लोगों से सनसनीखेज समाचारों या दहशत फैलाने वाले सोशल मीडिया पोस्टों से दूर रहने को कहा
हमारे देश की शक्ति अध्यात्म में हमारी आस्था और विज्ञान में विश्वास में निहित है- उपराष्ट्रपति
लोगों को भगवान कृष्ण की अर्जुन को सलाह याद दिलाई- ‘आपको जो करना है उसे लगातार करते रहो और उसे अच्छे से करो’
दिल्ली।उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने सभी देशवासियों से अपील की है कि वे कोविड-19 महामारी के खिलाफ लड़ाई में एकजुट होकर लोगों के जीवन और आजीविका की रक्षा करें।
आज एक फेसबुक पोस्ट में उपराष्ट्रपति ने कहा कि अधिकांश देशों ने लॉकडाउन को खत्म कर दिया है और अर्थव्यवस्था पर ध्यान केंद्रित करना शुरू कर दिया है। उन्होंने कहा कि सरकार अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए लगातार उपाय कर रही है। उन्होंने सभी से आवश्यक सावधानी बरतने और दिशानिर्देशों का पालन करके सरकार का सहयोग करने को कहा।
इस अभूतपूर्व स्वास्थ्य संकट के खिलाफ लोगों से सामूहिक रूप से लड़ने का आह्वान करते हुए, श्री नायडू ने कहा कि हमारे देश की ताकत आध्यात्मिकता में हमारा भरोसा और विज्ञान में विश्वास है।
उन्होंने लोगों को ‘पैनिक’ बटन नहीं दबाने की सलाह दी लेकिन ‘रोकथाम’ और ‘सुरक्षा’ के बटनों को दबाने के लिए कहा।
कोविड-19 का समाधान सावधानी में निहित है, की बात करते हुए उपराष्ट्रपति ने कुछ सरल उपाय सुझाए जैसे- फेस मास्क का इस्तेमाल, सामाजिक दूरी का पालन और लगातार हाथों को धोते रहना क्योंकि सुरक्षित रहने के यही ज्ञात उपाय हैं।
इन कदमों के साथ-साथ उन्होंने पारंपरिक खाद्य पदार्थ खाने, जड़ी-बूटी और औषधीय पौधों की तैयारी का सुझाव दिया, जो व्यापक प्रतिरक्षा बढ़ाने वाले साबित हुए हैं।
योग और ध्यान के महत्व पर प्रकाश डालते हुए श्री नायडू ने कहा, ‘योग, प्राणायाम और नियमित शारीरिक व्यायाम, जो घर पर किए जा सकते हैं, वायरस से बचाए रखने में हमारे शरीर को काफी मजबूत बना सकते हैं।’
कई लोगों के लिए जीवन में महामारी से पैदा हुई अनिश्चितता और चिंता के बारे में बात करते हुए, उपराष्ट्रपति ने लोगों को चिंता न करने की सलाह दी। उन्होंने सुझाव दिया, ‘बहुत कुछ हमारे मन पर निर्भर करता है…. हमें अपनी चिंता को कम करने के प्रयास जारी रखने चाहिए और इसे खुद पर हावी नहीं होने देना चाहिए।’
लोगों को परिवार और दोस्तों के साथ जुड़े रहने के बारे में कहते हुए उन्होंने लिखा कि वर्चुअल तरीके से ही सही, तकनीक उन्हें एक साथ होने और जुड़ाव की भावना का आनंद लेने में मदद कर सकती है।
उन्होंने लोगों से खाली समय का इस्तेमाल उन गतिविधियों जैसे- संगीत, ललित कला, साहित्य, खाना पकाने, नई भाषा सीखने आदि में करने को कहा जो उन्हें व्यस्त रख सके। श्री नायडू ने कहा कि हममें से प्रत्येक को यह पता होना चाहिए कि हमें किससे खुशी मिलेगी और उसे करें।
सनसनीखेज समाचारों या घबराहट पैदा करने वाले सोशल मीडिया पोस्टों को लेकर लोगों को सतर्क करते हुए उपराष्ट्रपति ने उन्हें सच्चाई को स्वीकार करने और अपने व परिवार की सुरक्षा के लिए कड़ी मेहनत करने का एक नजरिया विकसित करने को कहा। उन्होंने लोगों से निराधार, अपुष्ट और घबराहट पैदा करने वाले संदेशों को फॉरवर्ड करने से बचने की सलाह दी।
श्रीकृष्ण की अर्जुन को दी गई सलाह याद दिलाते हुए उन्होंने कहा, ‘कृपया वह काम करते रहें, जो आपको करने की आवश्यकता है और उसे अच्छी तरह से करो।’ श्री नायडू ने लोगों से शांतचित्त रहने की अपील की और विश्वास जताया कि कोई भी तूफान हमेशा के लिए जारी नहीं रह सकता है।
आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर की बातों का जिक्र करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि हमारा सच्चा जीवन साथी हमारा शरीर है इसलिए हमें अपने शरीर का सही तरह से खान-पान और तंदुरुस्त रहने के लिए शारीरिक व्यायाम कर इसकी देखभाल करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि तभी हमारा शरीर बीमारियों से लड़ने में हमारा साथ देगा।
उपराष्ट्रपति ने यह भी कहा कि इस तरह के सवालों का कोई आसान या निश्चित जवाब नहीं हो सकता है कि- ‘यह प्रतिबंधित और सीमित जीवन शैली कब तक चलेगी और हम अपनी सामान्य जीवन शैली में कब लौटेंगे?’ उन्होंने आगे कहा कि हमें शायद महामारी की अवधि को लेकर अनिश्चितता और उससे पैदा हुए तनाव के साथ जीना होगा।
बड़े शहरों में कोरोना के बढ़ते मामलों का जिक्र करते हुए उपराष्ट्रपति ने इस बात को बेहद सकारात्मक तरीके से लिया कि बड़ी संख्या में वायरस से संक्रमित लोग ठीक हो रहे हैं और प्रभावित आबादी के एक छोटे हिस्से को ही अस्पताल की जरूरत पड़ी है।