जीवन मंत्र । जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से जीवन उपयोगी संदेश….
(स्वामी विवेकानन्द जी)

(1) जब हम छोटी-छोटी बातों पर ध्यान देते हैं, तो महान उन्नति होती है, परन्तु महान उन्नति कोई छोटी बात नही है।
(2) छोटे से छोटा काम भी पूरी श्रद्धा, बुद्धि और लगन से करें ईश्वर की कृपा से सफलता निश्चित मिलेगी।
(3) फूलों की सुगंध उसी दिशा में जाती है, जिधर की हवा हो, पर गुणी व्यक्ति के गुणों की सुगंध चारों दिशाओं में फैलती है। गुणवान बने।
(4) किसी को हराना तो आसान है, परंतु किसी का ह्रदय जीतना बहुत कठिन है।
(5) जीवन कोई लगातार सदाबहार खुशियों का पिटारा नहीं है। इसमें खट्टे-मीठे अनुभव रोज होते हैं। इसलिए कठिनाइयों से लडने के लिए सदा तैयार रहे।
(6) आप की दुःखद स्थिति भले ही किसी को हँसी-सुख दे जाएं परन्तु आपकी हँसी किसी को दुःख न दे, इस बात का पूरा ध्यान रखें।
(7) एक दोष-झूठ के आने से अनेक गुण नष्ट हो जाते हैं। एक गुण-सत्य के आने से अनेक दोष नष्ट। हमेशा सबके गुण, अपनी गलतियाँ देखा करें।
(8) सत्य बोलने वाले को मानसिक तनाव कभी नहीं सताता। परिणाम स्वरुप उसे अच्छी नींद आती है और अच्छी भूख लगती है।
(9) झूठ बोलने वाले को सदा मानसिक तनाव बने रहने के कारण न तो अच्छी नींद आती है और न ही अच्छी भूख लगती है
(10) झूठ बोलने से शरीर में अनेक रसायनिक परिवर्तन होते हैं जिन से अनेक रोगों (सिर दर्द, एसिडिटी, कम्पन, लकवा आदि) की उत्पत्ति हो सकती है।
(11) ईमानदार लोग सत्य की रक्षा के लिए अपने गलत विचार छोड़ देते हैं। बेईमान लोग अपने गलत विचारों की रक्षा के लिए सत्य को छोड़ देते हैं।
(12) मंगल पर जीवन है या नहीं, ह चर्चा बहुत हो चुकी है। अब यह चर्चा भी तो शुरु करो कि जीवन में मंगल है या नहीं।
(13) ईश्वर से न कहें कि, समस्या कितनी विकट है। समस्या से कह दें कि ईश्वर मेरे निकट है।
(14) अपने शब्दों की पवित्रता पर पूरा ध्यान दें। आपका जीवन बहुत पवित्र और भविष्य बहुत उज्जवल होगा।
(15) मनुष्य जीवन का निर्माण विचारों से ही होता है। मनुष्य जैसा विचार करता है, वैसा ही वह बोलता और व्यवहार करता है। इसलिए विचार सदा शुद्ध रखें।
(16) गलती को गलती के रुप में ही देखें, चाहे आपकी हो या दूसरों की। गलतियों से कभी समझौता न करें, क्योंकि ये सबको दुःख देती हैं।
(17) बहुत सी वस्तुएँ महंगी हैं जो हम चाहते हैं। परन्तु वास्तविक संतुष्टि देने वाली वस्तुएं बिल्कुल निःशुल्क हैं―सेवा, मधुरवाणी, दया, प्रसन्नता, नम्रता आदि।
(18) बीती दुखदायक बातों को याद करने से दुख बढ़ता है, उनको याद न करें। बीती अच्छी घटनाओं को याद करके उनसे प्रेरणा लेकर उत्साही बने।
(19) याद रखें―जिस व्यक्ति के साथ आप व्यवहार कर रहे हैं उसके सिर में आपका दिमाग नहीं रखा है, तो वह आपकी इच्छा के अनुकूल व्यवहार कैसे करेगा? अर्थात् दूसरों से आशाएं कम रखें।
(20) दुरभिमानी लोगों की एक विशेषता–वे दूसरों की प्रशंसा कभी नहीं करते। नम्र लोगों की एक विशेषता–वे दूसरों की निंदा कभी नहीं करते।
(21) किसी की भावनाओं से न खेलें, क्योंकि ऐसा करके आप उससे जीत तो सकते हैं, परन्तु इससे आप उस व्यक्ति को हमेशा के लिए खो देंगें।
(22) जीवन में ऐसे काम करें, कि आपको कभी अफसोस करना ही न पड़े।
(23) व्यस्त रहना ही काफी नहीं है। व्यस्त रहने के साथ-साथ मस्त भी रहें। परन्तु व्यस्त रहते हुए दुखी न रहें।
(24) शरीर में सबसे अधिक तेजस्वी अंग है, आपका मस्तिष्क। इसको हमेशा ठंडा रखें, और सदा अच्छे कर्मों में लगाए रखें। सुखी रहेंगे।
(25) अपने सुख को देखकर ऐसा सोचें कि मेरे लिए इतना अधिक सुख। आप भगवान का अवश्य धन्यवाद करेंगे।
(26) जो व्यक्ति आपके दुःख के समय आपका साथ नहीं देता, उसको आपके सुख के समय आपके सुख में हिस्सा लेने का कोई अधिकार नहीं है।
(27) शांत बने रहे। यदि आप शांत बने रहेंगे, तो किसी भी हालत में आप अधिक बुद्धिमत्तापूर्वक और अच्छा निर्णय ले सकेंगे।
(28) क्रोध में बोला गया एक कठोर शब्द इतना जहरीला हो सकता है, जो हमारी हजारों मीठी बातों के प्रभाव को एक मिनट में नष्ट कर सकता है।
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