धर्म डेक्स। जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से (ज्योतिष ज्ञान)सिंह राशि व लग्न परिचय…..
सिंह लग्ने समुत्पन्नो धनी भोगी शत्रुविमर्दक:।
स्वल्पोदरो अल्पपुत्रशच सोत्साहि रणविक्रमी मांस प्रियः।।
आकाश मंडल में सिंह राशि पंचम क्रम में है। इसका विस्तार १२० अंश से १५० अंश के अंदर होता है।
इस राशि के अंतर्गत मघा नक्षत्र के चारो चरण, पूर्वाफाल्गुनी के चारो चरण तथा उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र का प्रथम चरण समाहित है।
मघा नक्षत्र का स्वामी केतु पूर्वाफाल्गुनी का शुक्र तथा उत्तरा फाल्गुनी का स्वामी सूर्य है।
आकाश मंडल में इस राशि का स्वरूप सिंह के समान है इसी कारण इस राशि का प्रतीक चिन्ह सिंह माना जाता है।इस राशि का स्वामी सूर्य एव इस राशि के अन्य पर्यायवाची नाम केशरी, मृगाशन, चित्रकाय, मृगारी, रविभ, पंचानन, पुण्डरीक, हरि इत्यादि है। अंग्रेजी में इसे lio कहते है। इस राशि का अधिकार कालपुरुष के हृदय एवं उदर पर है। यह अग्नि राशि शौर्य, पराक्रम, प्रचंडता, अधिकार एवं नेतृत्व की प्रतीक है। यह अग्नि तत्त्व, पुरुष राशि, दीर्घाकार, उष्ण व स्थिर स्वभाव, पित्त प्रकृति, शीर्षोदय, विषम राशि, क्षत्रिय जाती, क्रूर संज्ञक, रजोगुणी, रक्तवर्ण, रजस गुण प्रधान, दिन में बली, पूर्व दिशा की स्वामी है। इसकी प्रिय धातु सुवर्ण, तांबा प्रिय रत्न माणक (Ruby) है। जिस की जन्म समय मे निरयण चंद्र यदि सिंह राशि मे संचार कर रहा होता है तो उसकी जन्म राशि सिंह मानी जायेगी। गोचर में निरयण सूर्य प्रतिवर्ष इस राशि पर लगभग, १६ अगस्त से १५ सितंबर तक संचार करता है।
सूर्य इस राशि के ० से २० अंश तक मूलत्रिकोणस्थ होता है। केतु की भी मूल त्रिकोण राशि सूर्य ही है।
मुख्य गुण विशेषताये सिंह जातक साहसी, दिलेर, खुशमिजाज, प्रभावशाली व्यक्तित्त्व, गंभीर वाणी, अहम युक्त, स्वाभिमानी, आत्मविश्वासी, उच्चाभिलाषी, खर्चीला स्वभाव, वैभवशाली रईसी रहन-सहन, आशावादी दृष्टिकोण के होते है।
सिंह लग्न जातको की प्रमुख विशेषताये
शारीरिक संरचना सिंह लग्न में सूर्य सुभस्थ हो तो जातक का सुगठित एवं पुष्ट शरीर, कुछ बड़े व चौड़े मुखमंडल वाला, बलिष्ठ भुजाएं, कुछ लालिमा युक्त बड़ी व सुंदर आंखे, चौड़ी भरी हुई छाती, सामान्यतः ऊंचा कद, चौड़ा मस्तक एवं मजबूत अस्थियां, बाल्यकाल में काले घने व घुंघराले बाल, आकर्षक व प्रभावशाली व्यक्तित्त्व, एवं गंभीर वाणी का स्वामी होता है। जातक तेज गति से चलने वाला, पतली कमर, प्रारंभिक आयु में इकहरा बदन परंतु रौबीला चेहरा होगा।
चारित्रिक विशेषताये सिंह जातक की कुंडली मे गुरु-मंगल भी सुभस्थ हों तो ऐसा जातक तीव्र बुद्धिमान, स्वाभिमानी, उच्च-अभिलाषी, उदार-हृदय, निडर व आत्मविश्वास से भरपूर, धैर्यवान, उद्यमी, पराक्रमी, गंभीर प्रक़ति, न्याय प्रिय, संवेदनशील, आशावादी दृष्टिकोण, नेतृत्व व संचालन करने की क्षमता, अधिकार पूर्ण वाणी का प्रयोग करने वाला, अपने परिवार की उन्नति के लिये विशेष संघर्ष करने वाला, परिश्रमी, परिस्थिति अनुसार स्वयं को ढाल लेने की प्रकृति, स्पष्टवादी, स्वतंत्र व प्रगतिशील विचारों का अनुयायी, ये किसी प्रकार के बंधन या आधीनता में काम करना पसंद नही करते, भ्रमण प्रिय अर्थात सुदूर देश विदेश में यात्रा करने का शौक होगा। चंद्र शुक्र के प्रभाव से देश विदेश में भी यात्रा करने के अवसर मिलेंगे।
सिंह जातक की कुंडली मे मंगल शुक्र भी शुभस्थ हो तो जातक उच्चशिक्षति व इनकी मानसिक व आत्मिक शक्ति प्रबल होती है। बाधाओं व परेशानी के समय य विचिलत नही होते। उच्चस्तरीय व्यवसाय करनेमे प्रबल इच्छा रखेंगे। अपनी मान प्रतिष्ठा का भी विशेष ध्यान रखते है। उच्च प्रतिष्ठित लोगों के साथ संपर्क होते हैं।
विदेश संबंधों से विशेष भाग्योन्नति के योग बनते है। शुक्र के कारण संगीत कला व साहित्य का भी शौक रहते है। मंगल यदि पंचम भाव मे हो तो जातक क्रोध आने पर भयंकर रूप धारण करने वाला परन्तु अपने बुद्धि चातुर्य से स्थिति को संभाल लेता है। इनकी उच्च स्तरीय रहीसी जीवन यापन करने की प्रबल आकांक्षा होती है। इस कारण ये कई बार अपनी सीमा से बढ़कर भी खर्च कर देते है। इससे कई बार कठिनाइयों का भी सामना करना पड़ता है। विभिन्न प्रकार के उत्तम वस्त्र, आवस, सौंदर्य-प्रसाधन, बढ़िया वाहन आदि बाहरी शानोशौकत व प्रदर्शन पर अनावश्यक रूप से अधिक व्यय होता है। सामाजिक क्षेत्र पर जातक मिलनसार, व्यवहार कुशल, भाग्यशाली किन्तु अपने ही पुरुषार्थ पर भरोसा करने वाला, धनवान एवं भूमि सवारी आदि सुखों से सम्पन्न होता है।
सावधानी सामान्यतः सिंह जातक उदारता से व्यवहार करते है परन्तु कई बार आवेश व क्रोध में लाभ की जगह अपनी हानि कर लेते है। आत्म-प्रदर्शन व अत्यधिक हठ भी इनके लिये हानिकारक होती है।
सिंह लग्न की जातिका
सिंह लग्न (राशि) मे उत्पन्न कन्या सुन्दर, चौड़ी मुखाकृति वाली संतुलित शरीर रचना, सामान्यतः ऊंचा कद, पतली कमर, सुन्दर बड़ी-बड़ी आंखे, आकर्षक व प्रभावशाली व्यक्तित्त्व वाली होती है।
चारित्रिक विशेषताये सिंह लग्न की कुंडली मे मंगल-गुरु व सूर्य शुभस्थ हो तो ऐसी जातिका बुद्धिमान, उदार-हृदय, स्पष्टवादी (बोल्ड), परोपकारी स्वभाव, आत्मविश्वास से युक्त, स्वाभिमानी, परीश्रमी, परोस्थितियो के अनुसार स्वयं को ढाल लेने वाली, निडर, मजबूत दिल, धैर्यवान, अधिकार पूर्ण वाणी का प्रयोग करने वाली, जातिका प्रगतिशील परंतु स्वतंत्र विचारों वाली, अपने अधिकारों के प्रति पूर्णतः सजग, हँसमुख व्यवहार कुशल, उद्यमी तथा अपने पुरुषार्थ पर भरोसा करने वाली होगी। यदि कुंडली मे शुक्र भी शुभस्थ हो तो वैभवशाली, अच्छा आवास, सुन्दर गाड़ी व उच्चस्तरीय जीवन यापन करने में प्रयास शील रहेगी।
मंगल-शुक्र के कारण नाजुक मिजाज एवं संवेदनशील प्रकृति की होगी।खुशामद पसंद एवं अपनी प्रसंशा की चाह रखने वाली होगी। अपने विरुद्ध आलोचना बिल्कुल सहन नही करेगी। गायन, संगीत, कला एवं साहित्य की और विशेष झुकाव होगा। ऐसे जातिका भोग प्रिया अर्थात अच्छे कपड़े, खान-पान एवं सौंदर्य प्रसाधन की शौकीन तथा उनपर काफी खर्च करने वाली होगी।
चंद्र-शुक्र के प्रभाव से भ्रमण प्रिया अर्थात देश-विदेश में भ्रमण करने की उत्कृष्ट इच्छा रखेगी।
शुभ गुरु के प्रभाव से जातिका उच्च व्यावसायिक विद्या पाने में सफल होगी। गुरु के कारण अपनी प्रतिष्ठा का भी ध्यान रखेगी। अपने आदर्शों के विपरीत किसी भी प्रकार का सौदा नही करेगी। उच्च संस्कारो से युत गुणवान जातिका होगी। ऐसी जातिका अपनी मौलिक विशेषताओ व गुणों के आधार पर अपने परिवार व समाज मे विशेष प्रतिष्ठा पाने वाली होंगी।
स्वास्थ्य एवं रोग सिंह लग्न की जातिका का स्वास्थ्य सामान्यतः बाहरी तौर पर अच्छा दिखाई देता है। लेकिन कुंडली मे यदि सूर्य, बुध, मंगलादि ग्रह अशुभ हो तो जातिका का स्वास्थ्य गलत एव अनियमित खान-पान के कारण बिगड़ जाता है। इन्हें अनिष्ट ग्रहों के प्रभावस्वरूप प्रायः निम्न रोगों की संभावना अधिक रहती है।
रक्त विकार, निम्न या उच्च रक्तचाप, स्नायु रोग, मस्तिष्क पीड़ा, मेरुदंड या पीठ में समस्या, मस्तिष्क पीड़ा, हृदय रोग, दबाव, तनाव आदि मानसिक विकृति, तीव्र ज्वार, मासिक धर्म मे गड़बड़ी, हिस्टीरिया, मंदाग्नि, अतिसार, शनि-मंगल-गुरु आदि अशुभ हों तो गर्भस्त्राव, दुर्घटना आदि में चोट ऑपरेशन की संभावना हो जाती है।
इन्हें तामसिक भोजन, गर्मी से तथा क्रोधावेश एवं उत्तेजना तथा तामसिक आहार एवं कुविचारों से बचना चाहिए।
उपयुक्त व्यवसाय सिंह लग्न जातिकाओ को राज्य स्तरीय सेवा, शिक्षिका, प्राध्यापिका, लेखन, दूरदर्शन, ड्रेस-डिजाईनिंग, कम्पनी-आफिस में प्रबंधकीय कार्य, खेलकूद, चिकित्सा, पर्यटन, कानून, एक्टिंग एवं उच्च प्रशासकीय कार्य क्षेत्र, घरेलू साज-सज्जा, अभिनय आदि कार्य अनुकूल एवं लाभदायक होते है।
इसके अतिरिक्त फोटोग्राफी, कलाकार, राजनीति क्षेत्र, प्रशासन, न्यायाधीश, वकील, पुस्तक प्रकाशन, लेखक, चिकित्सक, केमिस्ट, सेना-पुलिस आदि रक्षात्मक कार्य, होटल, स्टेशनरी, ऊनी वस्त्र-उद्योग, सुवर्णकार, घरेलू सजावट, ठेकेदार, अम्बेसडर, मैनेजर आदि कार्य भी अनुकूल रहते है।
प्रेम और वैवाहिक सुख सिंह जातिका वैवाहिक एवं प्रेम संबंधों में अत्यंत उत्साही, सक्रिय एवं कुशल भूमिका निभाती है। ये अपने पति, बच्चों व परिवार के प्रति पूर्ण निष्ठावान एवं समर्पित होती है। ये बाहरी हस्तक्षेप सहन नही करपाती। पति के साथ घरेलू तथा सामाजिक दायित्वों को पूरी ईमानदारी से निभाने की कोशिश करती है। आर्थिक क्षेत्र में भी सहायके रहती है।
कुंडली मे गुरु व शनि शुभस्थ हो तो दाम्पत्य जीवन सुखमय होता है। भली भांति कुंडली मिलान करके किया गया विवाह शुभ व सफल होगा। नीचे दी गई राशियों में मध्य किया गया विवाह इनके लिए अनुकूल व लाभदायक होगा।
इन्हें मेष, मिथुन, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, कुम्भ राशि के जातको के साथ मैत्री एवं विवाह संबंध शुभ व सुखदायक रहेगा।
सिंह लग्न जातको का स्वास्थ्य, शिक्षा, व्यवसाय-आर्थिक स्थिति और प्रेम-वैवाहिक सुख
स्वास्थ्य और रोग सिंह लग्न के जातक का स्वास्थ्य प्रायः अच्छा ही होता है। सामान्य स्थिति में ये जातक यदि बीमार होभी जाए तो शीघ्र ठीक भी हो जाते है। सिंह लग्न की कुंडली मे यदि लग्नस्थ सूर्य अशुभस्थ हो तथा कुंडली शनि, राहु, केतु आदि अशुभ ग्रहों से प्रभावित हो, तो जातक को तीव्र ज्वर, मस्तिष्क पीड़ा, नेत्र रोग, उदर विकार, पीठ में दर्द, लू लगना, स्नायु एवं त्वचा रोग, उच्च रक्तचाप, हृदय के रोग, मंदाग्नि, अपचन, आदि रोगों की संभावना अधिक होती है।
सिंह जातको को अत्यधिक तनाव, क्रोध, उत्तेजना, तम्बाकू एवं शराब, आदि नशीली वस्तु और तामसिक भोजन (मांस, मछली) आदि के सेवन से परहेज करना चाहिए तथा संतुलित व सात्विक भोजन करना चाहिए अन्यथा इन्हें पेट की बीमारी होने पर अन्य गंभीर रोग होने की संभावना बढ़ती है।
शिक्षा सिंह लग्न की कुंडली मे यदि मंगल, गुरु व सूर्य ग्रह शुभस्थ हो तथा इनही ग्रहों में से किसी की दशा-अंतर्दशा चल रही हो, तो जातक उच्च व्यावसायिक शिक्षा में सफलता प्राप्त कर लेते है। विशेषकर उच्च प्रशाशनिक विद्या, कॉमर्स, चार्टर्ड अकाउंटेंट, मेडिकल, कम्प्यूटर शिक्षा, तकनीकी इंजीनियरिंग, अध्यापन, क्लेरिकल आदि क्षेत्रों में अच्छी सफलता प्राप्त कर सकते है।
व्यवसाय और आर्थिक स्थिति सिंह जातक की कुंडली मे सूर्य-मंगल-गुरु, शुक्रादी ग्रह शुभस्थ हो एवं इन्ही ग्रहों की दशा-अन्तर्दशा का प्रभाव चल रहा हो तो निम्न व्यवसायों में से किसी एक मे (अपनी योग्यता अनुसार) अच्छी सफलता पा सकता है।
सफल व्यापारी, प्रबंधात्मक क्षेत्र, प्राध्यापन, फोटोग्राफी, कलाकार, अभिनेता, राजनीति क्षेत्र, प्रशासन, न्यायाधीश, वकील, पुस्तक प्रकाशन, लेखक, चिकित्सक, केमिस्ट, सेना-पुलिस आदि रक्षात्मक कार्य, होटल, स्टेशनरी, ऊनी वस्त्र-उद्योग, सुवर्णकार, घरेलू सजावट, ठेकेदार, अम्बेसडर, मैनेजर, धर्म गुरु आदि क्षेत्रों में कामयाब हो सकते है। चंद्र यदि शुभस्थ हो तो विदेश में भाग्योन्नति होगी।
आर्थिक स्थिति सिंह जातक की आर्थिक स्थिति कुंडली मे सूर्य, मंगल, बुध शुक्रादी ग्रहों की शुभाशुभ स्थिति पर निर्भर करेगी। जन्म एवं चलित कुंडली मे यदि इन ग्रहों की स्थिति शुभ है तथा इन्ही ग्रहों में से किसी शुभ ग्रह की दशा चल रही हो तो जातक की पारिवारिक एवं आर्थिक स्थिति अच्छी होती है।
चंद्रमा यदि अशुभ हो तो जातक बाहरी आडंबर एवं प्रदर्शन पर अधिक खर्च करेगा। सिंह जातक को अपनी आय वृद्धि के साथ-साथ वृथा खर्च पर भी नियंत्रण रखना चाहिये।
प्रेम और वैवाहिक सुख सिंह जातक प्रेम के संबंध में अधिक उदार व निष्ठावान होते है। विपरीत भोग के प्रति अत्यधिक आकर्षण होने के बाद भी स्वाभिमान के कारण शीघ्र अपनी भावनाओं को प्रकट नही करते, परन्तु एकबार प्रेम आकर्षण या संबंध हो जाये तो उस प्रेम को पूरी ईमानदारी व निष्ठा से निभाते है। कुंडली मे यदि शनि शुभस्थ हो तो जातक अपनी पत्नी एवं परिवार के प्रति पूर्णतया समर्पित रहते है। परन्तु शनि अशुभस्थ होने से दाम्पत्य जीवन मे वैमनस्य एवं असंतोष पैदा होने की संभावना रहती है। सिंह जातक को अच्छी प्रकार जन्म कुंडली मिलान करके ही विवाह करना चाहिये।
सिंह लग्न में शुभ योगकारक ग्रह एवं भावानुसार ग्रहों का फल
सिंह लग्न में शुभ ग्रह इस लग्न में लग्नेश सूर्य व भाग्येश व सुखेश मंगल सर्वाधिक शुभ व योगकारक माने जाते है।
अशुभ ग्रह बुध, शुक्र व शनि सिंह लग्न में अशुभ फलकारक होते है। जबकि गुरु व चंद्र कुंडली मे शुभाशुभ फल प्रदायक होते है।
ग्रहों की स्थिति के फल में उन पर अन्य ग्रहों की शुभाशुभ दृष्टि का भी विचार कर लेना चाहिए।
भावानुसार ग्रहों का फल
सूर्य सिंह लग्न में १,२,३,४,५,९,१० व ११ वें भाव मे सूर्य शुभ तथा शेष अन्य भावो में अशुभ या मिश्रित फल देता है।
चंद्रमा २,३,७,९,१० एवं ११ वें भावो में शुभ तथा अन्य सभी भावो में मिश्रित एवं अशुभ फल देता है।
मंगल १,२,३,४,५,९ व दशम भाव मे शुभ तथा अन्य स्थानों में अशुभ या मिश्रित फल देता है।
बुध १,२,३,५,७,९ एवं ११ वें भावो में शुभ शेष में अशुभ फलदायी रहता है।
गुरु १,३,५,९,१० व ११ वे भावो में शुभ शेष सभी स्थानों में अशुभ रहता है।
शुक्र १,२,३,४,५,९,१० व ११ वें भाव मे शुभ तथा अन्य भावो में मिश्रित या अशुभ फल देता है।
शनि ३,५,८,९ एवं ११ वे भाव मे शुभ तथा अन्य स्थान पर अशुभ या मिश्रित फल देता है।
राहु ३,९,१० व ११वें भाव मे शुभ तथा अन्य भावो में मिश्रित फल प्रदान करेगा।
केतु १,४,५,९ व १२ वे भावो में शुभ अन्य भावो में अशुभ फलकारक रहेगा।
सिंह लग्न में शुभाशुभ ग्रहों के योग एवं तीन ग्रहों के फल
सूर्य-मंगल लग्नेश व भाग्येश का यह योग राजयोग कारक बनता है। यह योग १,२,४,५,९ व ११ वें भावो में शुभ तथा शेष अन्य स्थानों में मध्यम होता है। इस योग के प्रभावस्वरूप जातक भाग्यशाली, उच्चपद प्रतिष्ठित एवं भूमि, जायदाद, सवारी आदि सुखों से सम्पन्न एवं जातक का विदेश या जन्म स्थान से दूर भाग्योदय होता है।
सूर्य-गुरु केन्द्रेश व त्रिकोणेश का संबंध अत्यंत शुभ माना जाता है। लेकिन गुरु के यहां अष्टमेश भी होने से यह योग दोषयुक्त भी है। इस योग जेम्स जातक को बुद्धि, उच्चविद्या, प्रतिष्ठित पद, संतानादि सुखों की प्राप्ति होती है।
मंगल-गुरु कुंडली मे चतुर्थेश एवं पंचमेश का योग शुभ माना गया है। इस योग के प्रभाव से जातक भाग्यशाली, उचव्यवसायिक विद्या (जैसे कम्प्यूटर, इंजीनियरिंग, डॉक्टरी आदि) क्षेत्रों में सफलता मिलती है। यह योग भूमि, जायदाद, वाहनादि सुख संपन्नता देता है।
मंगल-शनि यह दोनों क्रूर ग्रहों का योग है। इस योग के प्रभाव से जातक को संघर्ष के साथ ३६ वर्ष आयु के बाद तकनीक, मेडिकल क्षेत्र तथा भूमि, वाहन एवं भाग्योन्नति होती है।
सूर्य-शुक्र यह योग भी अत्यंत कठिनाई व संघर्ष के बाद (३३ वर्ष के बाद) स्त्री के सहयोग से जन्म स्थान से दूर अथवा विदेश ने विशेष उन्नति कारक होता है।
चंद्र-मंगल यह योग भाग्य एवं अन्य सांसारिक सुख साधनों में उन्नति कारक होता है। विशेषकर विदेश संबंधित कार्यो में लाभ दिलाता हैं।
सूर्य-बुध यह योग जातक को उच्चशिक्षित, प्रतिष्ठित, धन-संपदा, वाहन आदि कार्यो के लिये लाभदायक रहता है।
गुरु-चंद्र इस योग से जातक बुद्धिमान, गुणी, परिश्रमी, एवं दूरंदेश होता है तथा पत्नी सुंदर-सुशील एवं कार्यक्षेत्र में हर तरह से सहायक होती है। द्वादश भाव मे यह योग बने तो जातक की जन्म स्थान से दूर अथवा विदेश में भाग्योन्नति होती है।
सिंह लग्न के जातको को सूर्य-चंद्र, चंद्र-बुध, गुरु-शुक्र, शुक्र-मंगल, गुरु-शनि, बुध-शनि आदि योगों का फल सामान्यतः मिश्रित (शुभाशुभ) मिलता है।
गुरू-शुक्र का योग जातक के कार्य क्षेत्र में संघर्ष व उतार-चढ़ाव के बाद सफलता प्रदान करता है। (मतांतर से यह योग निष्फली होता है)।
सिंह लग्न में तीन ग्रहों का फल
सूर्य-मंगल-बुध सिंह लग्न में सूर्य-मंगल व बुध एकसाथ बैठे हो तो जातक श्रेष्ठ, आत्मबली, सिद्ध, महान एवं धनी होता है। तीन ग्रहों के फल में प्रायः सर्वाधिक बलि की दशा अंतर्दशा में शुभाशुभ फल प्रकट होता है।
सूर्य-चंद्र-गुरु आदि कुंडली मे एकत्रित हों तो जातक धर्मनिष्ठ, दृढ़निश्चयी, समाज मे प्रतिष्ठित, देश-विदेश, की यात्रा करने वाला, साधन-सम्पन्न होगा।
सूर्य-मंगल-गुरु की युति होने पर जातक सुंदर, आकर्षक व्यक्तित्त्व, उच्चशिक्षित, मेडिकल, इंजीनियरिंग आदि में उत्तीर्ण होने वाला भूमि-जायदाद-वाहन आदि सुखों से सम्पन्न होगा।
सूर्य-बुध-शुक्र की युति होने से आरम्भिक जीवन संघर्षपूर्ण एवं अत्यंत कठिनाइयों का सामना हो, विदेश में विशेष भाग्योन्नति के अवसर मिलते है।
चंद्र-मंगल, बुध-राहु के प्रभाव से जातक पराक्रमी, उच्चशिक्षित व धनाढ्य होता है।
उपरोक्त योगों का फल सम्बद्ध ग्रहों की दशा-अंतर्दशा एवं गोचर स्थिति अनुसार प्राप्त होता है।