धर्म डेक्स। जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से (ज्योतिष ज्ञान)कर्क राशि एवं लग्न, जातक की प्रमुख विशेषताएं……
कर्क लग्ने समुत्पन्नो धर्मो भोगी जहप्रियः।
मिष्ठान्न भुक्त साधुरतो विनितो सौभाग्यधन संयुतः।।
परदेशगः सुधीरः साहसकर्मा जलाधिगतवित्त:।
स्त्रीभुषणाम्बर सुखै भोगैश्च समन्वितो भवति।।
भचक्र में कर्क राशि चतुर्थ क्रम में पड़ती है। इसका विस्तार ९० अंश से १२० अंश के अंदर माना जाता है। इस राशि के अंतर्गत पुनर्वसु (चतुर्थ चरण) पुष्य के चारोचरण एवं आश्लेषा के चारो चरण सम्मिलित है। पुनर्वसु नक्षत्र का स्वामी गुरु, पुष्य का शनि, तथा आश्लेषा का स्वामी बुध माना जाता है। कर्क राशि का स्वामी चंद्र है। आकाश मंडल में इसका स्वरूप केकड़े का जैसा है।
इस राशि के अन्य पर्याय नाम कर्कट, कीट, कूर्म, कुलीर, शंशाकभ, सलिलचर, षोडश पाद एवं चान्द्र है। यह राशि कोमलता, सहानुभूति ईमानदारी, पवित्रता, मिलनसार, संवेदनशील, एवं भावुकता की प्रतीक मानी गई है।
यह राशि चर (परिवर्तन शील) जलतत्त्व से युक्त, ब्राह्मण वर्ण, स्त्रीजाति, सौम्य लेकिन कफ प्रकृति, रजोगुणी, रात्रिबली, सम संज्ञक, रक्त-श्वेत वर्ण एवं उत्तर दिशा की स्वामिनी मानी जाती है।
इस राशि का स्वामी चंद्र है यह शुभ सौम्य राशि की प्रथम नवांश राशि कर्क की होती है। इस राशि पर गुरु ५ अंश पर परमोच्च रहता है। जबकि मंगल इस राशि के २८ अंश पर परमनीच का होता है। निरयण सूर्य इस राशि पर लगभग १६ जुलाई से १५ अगस्त के बीच संचार करता है।
कर्क राशि के गुण-विशेषताएं संवेदनशील, ईमानदार, गुणग्राह्य, परिवर्तनशील, भावुक, मिलनसार, जल्दबाज, दुखी प्राणी के प्रति दया, सहानुभूति, उदारता, कल्पनाशील प्रकृति, हँसमुख, चंचल परन्तु परिस्थिति अनुसार स्वयं को ढाल लेने की प्रकृति, संगीत व सौंदर्य के प्रति रुचि, सहृदयता, कार्य तत्परता, आदि गुण विशेष रूप में पाए जाते है। इस राशि का संबंध पेट, हृदय एवं गुर्दे से है। यदि किसी जातक की नाम राशि, जन्म राशि एवं लग्न राशि समान हो तो ये गुण जातक में अधिक मिलेंगे।
शारीरिक संरचना कर्क राशि/लग्न के जातक का रंग गोरा, गोल सुंदर व आकर्षक चेहरा, भरे हुए गाल, मध्यम कद, छोटी किंतु कुछ उठी हुई नाक, आंखे काली या थोड़ा भूरापन लिये हुए, चौड़ी छाती, हाथपैर अपेक्षाकृत छोटे, बाल्यकाल में दुबला पतला शरीर किंतु आयु वृद्धि के साथ पुष्ट शरीर हो जाता है।
व्यक्तिगत विशेषताएं चर व जलीय राशि होने के कारण कर्क के जातक संवेदनशील, भावुक हृदय, बुद्धिमान, प्रतिभाशाली, कल्पनाशील, किसी भी बात
या विषय को शीघ्र समझने वाले, दुसरो की भावना व विचारों का सम्मान करने वाले, नवीनता व परिवर्तन प्रिय, देश-विदेश में यात्राएं करने के शौकीन, न्याय प्रिय व दयालु स्वभाव, शीघ्र क्रोधित व शीघ्र शांत हो जाने वाले, व्यवहार कुशल, अतिथि सत्कार में तत्पर, हँसमुख, अपने मित्र व पारिवारिक कार्यो में हर प्रकार से सहायक, कुटुम्ब में श्रेष्ठ व सम्मानित होते है। ये जातक जब तक विशेष रूप से सताए ना जाये तब तक किसी का अहित नही करते और एक बार उत्तेजित हो जाये तो छोड़ते नही। इनकी जलीय व प्राकृतिक वस्तु के प्रति विशेष रुचि होती है।
कर्क लग्न की कुंडली मे यदि गुरु व मंगल शुभ हो तो ऐसा जातक धार्मिक प्रवृत्ति वाला, परोपकारी, उदार हृदय, उच्चाकांक्षी, स्वाभिमानी तथा अपनी प्रतिष्ठा के प्रति अत्यंत संवेदनशील होगा। उच्च व्यावसायिक शिक्षा जैसे उच्च-प्रशासनीय कंपटीशन, डॉक्टरी, वकालत, इंजीनियरिंग, प्राध्यापन, आदि क्षेत्रों में सफलता प्राप्त करने की क्षमता होती है।
इनकी कुंडली मे यदि चंद्र-शुक्र शुभस्थ हो अथवा इन ग्रहों की शुभ दृष्टि हो, तो सौन्दर्यानुभूति विशेष अधिक होगी। चित्रपट, दूरदर्शन, सिनेमा आदि में तथा गायन , संगीत, एवं साहित्य में भी अधिक झुकाव रहे। पठन पाठन एवं लेखनादि कार्यो में भी रुचि लेते है। ये लोग नए नए विषयो को जानने के लिये भी उत्सुक रहते है। कर्क के जातक यद्यपि दूसरे व्यक्ति के अन्तरभावो को शीघ्र समझने में सक्षम होता है। परन्तु आवेश में शीघ्र विश्वास कर लेने के कारण अनेको बार धोखा भी खाता है। चंद्रमा की कलाओं की भांति कर्क जातक के स्वभाव एवं जीवन मे समरसता नही आ पाती बल्कि परिवर्तन होता रहता है। इनके जीवन का उत्तरार्ध भाग अपेक्षाकृत अधिक भाग्यशाली होता है।
यदि कुंडली मे चंद्र – मंगल अशुभ हों या किसी पाप ग्रह से युत या दृष्ट हों तो जातक वासनाप्रिय, कामुक, आरामतलब, अस्थिर एवं उद्विग्न मन वाला, हठधर्मी, दुसरो के बहकावे में शीघ्र आने वाला, जल्दबाजी में आवेश पूर्वक बिना सोचे काम करने वाला, अधीर एवं कुछ मूडी प्रकृति रखे अर्थात किसी के द्वारा की गई थोड़ी सी अवहेलना से शीघ्र उत्तेजित हो जाये तथा कठिन परिस्थितियों में कोई एक बात को लेकर बहुत सोच विचार में लगा रहे। चंद्र शुक्र अशुभ होने की स्थिति में जातक अत्यधिक तनाव एवं चिंता से परेशान होकर शराब, तम्बाकू, मास, आदि तामसिक भोजन की और आकृष्ट हो जाता हैं। इन जातकों को अपनी इसी कमजोरी से विशेष सावधान होना चाहिये।
कर्क राशि/लग्न की कन्या सभी जातको का प्रेम-वैवाहिक जीवन एवँ अनुकूल साथी चुनाव
कर्क लग्न में जन्म लेने वाली कन्या का गोल सुंदर चौड़ा चेहरा, गोरा रंग, उभरे हुए सुंदर गाल, श्वेत वर्ण, आंखे काली कुछ नीलिमा अथवा भूरापन लिये हुए, हाथ पैर अपेक्षाकृत कुछ छोटे, मध्यम कद, दुबलपतला कोमल शरीर, परन्तु आयु वृद्धि के साथ-साथ शरीर पुष्ट व कुछ स्थूल होने की भी संभावना रहती है।
कर्क लग्न जातिका के लग्न का स्वामी चंद्र तथा मंगल शुभ हो, तो जातिका बुद्धिमान, हँसमुख, भावुक, संवेदनशील, परिश्रमी, परोपकारी, नेक व दयालु हृदय की होती है। व्यवहार कुशल, धार्मिक विचारों से युक्त, अथिति सत्कार में तत्पर रहेगी। चर व जलीय राशि होने के कारण ये कन्या चंचल, परिवर्तनशील एवं कल्पनाशील स्वभाव की होती है। इनके जीवन मे अनेक प्रकार के उच्च नीच परिवर्तन होते रहते है। चंद्र यदि अशुभ हो तो शीघ्र क्रोधित शीघ्र शांत होने की प्रकृति रहेगी। चंद्रमाकी घटती बढ़ती कलाओं के अनुसार ही इनके स्वभाव में भी परिवर्तन होता रहेगा फिर भी ऐसी जातिका परिस्थिति अनुसार स्वयं को ढालने में सक्षम रहती है।
चंद्र मंगल व गुरु शुभ होने की स्थिति में उच्च व्यवसायिक विद्या प्राप्त होने की संभावना रहती है। अध्यापन, गृहविज्ञान, प्रशासकीय प्रतियोगिता, मेडिकल, फैशन डिजाइनिंग, होटल मैनेजमेंट, नर्सिंग, श्रृंगार संबंधित व्यवसाय, सौन्दर्यानुभूति विशेष रूप से रहती है। प्राकृतिक सौनदयर, नृत्य, संगीत, गायन एवं कला में भी रुचि लेती है। इन्हें देश विदेश की यात्रा करने का शौक होता है। शुक्र के प्रभाव से जातिका गुणवान एवं अपने परिवार व समाज से सम्मान पाने वाली होती है।
बौद्धिक कार्यो में विशेष रुचि रहने तथा प्रकृति के नए नए विषयो को जानने की इच्छुक रहती है। ये परोपकारी व उदार हृदय रहने के बाद भी अपनी प्रतिष्ठा पर आंच नही आने देती। ये दुसरो को भाव को शीघ्र जान लेती है फिर भी भावुक स्वभाव होने के कारण शीघ्र धोखा भी का जाती है।
मंगल, चंद्र यदि अशुभ हो तो रक्त विकार, गले, स्वास के रोग, स्नायु दुर्बलता प्रमेह, रक्त प्रदर गर्भाशय संबंधित रोग, मानसिक दबाव, हिस्टीरिया आदि रोगों की संभावना रहती है।
इनके वैवाहिक जीवन की सफलता कुंडली मे गुरु व शनि की शुभ व अशुभ स्थिति पर निर्भर करेगी। गुरु व शनि १,३,५,७,९,११ भाव में हो तो मनोवांछित जीवन साथी मिलने की संभावना रहती है। इस ग्रह योग में उच्च पदासीन अथवा सम्पन्न एवं उच्चशिक्षित जीवन साथी के योग बनेंगे, विवाह के उपरांत पति-पत्नी दोनों के लिये भाग्योन्नति होगीं। सामान्यतः कर्क लग्न की महिलाए अपने पति, बच्चो व परिवार के प्रति निष्ठावान एवं समर्पित भाव रखती है अपनी महात्त्वकांक्षाओ का भी इनके लिये त्याग कर देती हैं।
स्वास्थ्य और रोग कर्क लग्न के जातक बाल्यकाल में प्रायः दुर्बल होते हैं। परन्तु आयु वृद्धि के साथ-साथ शरीर एवं स्वास्थ्य का विकास होता जाता हैं। कला पुरुष के वक्ष स्थल और पेट पर कर्क राशि वास माना जाता हैं। यदि यह राशि अशुभ ग्रह से युत या दृष्ट होतो कर्क जातक को अत्यधिक मानसिक तनाव, गुप्त चिंताएं, स्वास, खांसी, गले, कफ जन्य रोग, फेंफड़ो के रोग, स्नायु दुर्बलता, मिर्गी, पित्ताशय में पथरी आदि पेट के रोग, रक्त विकार, अनिद्रा, प्रेमह, मधुमेह, मंदाग्नि, चित्त-विभ्रम, उद्वेग तथा मानसिक एव हृदय रोगों की संभावना अधिक रहती है। कर्क जातको को उत्तेजक व तामसिक पदार्थो का सेवन से परहेज करना चाहिए। इन्हें धैर्य, सहनशीलता एवं आध्यात्मिकता को ग्रहण करना चाहिए तथा अधीरता एव अत्यधिक भावुकता को त्यागना चाहिये।
कर्क राशि/लग्न जातको की आर्थिक स्थिति शिक्षा एवं रोजगार
कर्क जातक की कुंडली मे चंद्र, सूर्य, मंगलादि ग्रह, शुभ भावस्थ या शुभ ग्रहों से युत या दृष्ट हों तो अगर लिखित व्यवसायों में से किसी एक मे विशेष लाभ व उन्नति पा सकता है। इनमे बिजली संबंधित कार्य, भूमि जायदाद क्रय-विक्रय, वस्त्र उद्योग, स्टेशनरी, स्त्री सौंदर्य संबधी, सेल्समेन-प्रतिनिधि, केमिस्ट्, कम्प्यूटर इंजीनियर, डॉक्टर, वैद्य, सर्जन, वस्त्र उद्योग क्रय-विक्रय, रेस्टॉरेंट, पेय पदार्थ(कोल्ड्रिंक, शराब)आदि, ज्यूलर्स, सिनेमा, कलाकार, कृषि उद्योग, अध्यापन, धर्म गुरु, उपदेशक, सुनार, सेना, फोटोग्राफी, गायन, संगीत, बेकर्ज, नर्सिंगहोम, होटल, फास्टफूड, फैशन डिजाइनिंग, हेल्थ क्लब, स्पोर्ट्स, यातायात, नेवी व समुद्री जहाज संबंधी, आयात-निर्यात, डिपार्टमेंटल स्टोर, लेखन, वकालात, आदि मानसिक कार्य, धार्मिक, एवं प्राचीन, सांस्कृतिक पुस्तको के प्रकाशन व स्त्री के सहयोग से चलने वाले कार्य विशेष शुभ एव लाभदायक रहते है।
आर्थिक स्थिति
कर्क जातक की आर्थिक स्थिति चंद्र, सूर्य, शुक्र एवं मंगल आदि ग्रहों पर विशेष तौर पर निर्भर करती है।यदि उपरोक्त ग्रह जन्म कुंडली, नवमांश, चलित कुंडली मे शुभ भावस्थ एवं शुभ दृष्टि हो तो ऐसे जातक की आर्थिक स्थिति अत्यंत अच्छी होगी तथा धन संपदा वाहन सुख की प्राप्ति होगी। आय के साथ साथ खर्च भी उच्च स्तरीय होंगे, पत्नी का सहयोग आर्थिक क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण होगा। चंद्र यदि शनि राहु के प्रभाव में हो तो जातक को शेयर सट्टे आदि के द्वारा भी धन की संभावनाए रहती है।
सावधानी शेयर सट्टा लाटरी द्वारा जातक को कई बार (ग्रह स्थिति के अनुसार) हानि भी उठानी पड़ती है।
कर्क लग्न में भावानुसार ग्रहों का फल व शुभाशुभ ग्रह योग
सूर्य २-३-५-७-९-१० एवं ११ वे भाव मे प्रायः शुभ तथा अन्य भाव मे अशुभ फल प्रदायक होता है।
चंद्र २-४-५-९-१० एवं १२ वे भावो में शुभ तथा शेष भावो में अशुभ या मिश्रित फल देता है।
मंगल २-४-५-९-१० एवं १२ वे भावो में प्रायः शुभ तथा शेष भावो में अशुभ या मिश्रित फल देता है।
बुध १-३-५-९-११ एवं १२ वे भाव मे शुभ एव अन्य भावो में मिश्रित फल देगा।
गुरु १-२-५-७-९-१०-११ भाव में शुभ तथा अन्य भावो में अशुभ फल देगा।
शुक्र १-३-४-५-९-१०-११ वे भावो में शुभ तथा अन्य भावो में मिश्रित फल देता है।
शनि लग्न में स्वास्थ्य, द्वितीय में धन, तृतीय में स्वास्थ्य व संतान, चतुर्थ में कार्य व्यवसाय व स्वास्थ्य के लिये हानिकारक लेकिन सवारी आदि के लिये शुभ, पंचम में संतान और छठे में शत्रु की हानि, सप्तम में शरीर कष्ट, अष्टम में धन की तंगी किंतु आयु वृद्धि, नवम में भाई के सुख में कमी, दशम में व्यावसायिक परेशानी, ११ वे में स्वास्थ्य हानि एवं संतान चिंता तथा १२ वे भाव मे धन का अपव्यय कराता है।
राहु ३-६-११-१२ वे भाव में शुभ एव अन्य भावो में अशुभ माना जाता है।
केतु २-५-६-९ एवं १२ भाव मे शुभ कभी मिश्रित तथा अन्य में अशुभ फल देगा।
शुभाशुभ ग्रह योग
चंद्र-मंगल केंद्र-त्रिकोण का संबंध होने से यह योग अत्यंत शुभ है। यह योग २-४-५-७-९-१० एव ११ वे भावो में शुभ फल देता है इस योग के प्रभाव से जातक को उच्च शिक्षा, उच्चपद, भूमि-जायदाद, संतान आदि सुखों की प्राप्ति होती है।
मंगल-शुक्र केंद्र-त्रिकोण का संबंध होने से इस योग के प्रभावस्वरूप मकान, वाहन, उच्चशिक्षा, स्त्री-संतानादि सुखों की प्राप्ति, एवं जातक उच्च प्रतिष्ठित होता है। यह योग १-२-४-५-७-९-१०-११ वे भावो में विशेष फल देगा।
मंगल-गुरु १-२-४-५-९ एवं १० वे भाव मे शुभ तथा अन्य भावो में मिश्रित प्रभाव करेगा। दवाइयां इंजीनियरिंग, प्राध्यापन, सेना आदि क्षेत्रों में विशेष सफलता दिलवाता है।
मंगल-शनि कर्क जातक की कुंडली मे मंगल-शनि प्रायः दो परस्पर विरुद्ध ग्रहों का योग मिश्रित फलदायक रहेगा। यह १-३-५-७-९-१०-११ वे भाव मे थोड़ा अच्छा फल देगा। इंजीनियरिंग, मेडिकल, कारखाने आदि के कार्यो में सफलता मिलेगी। लेकिन अत्यंत संघर्ष व तनाव भी रहे।
चंद्र-गुरु यह योग सुख समृद्धि भाग्यलाभ व उन्नति देने वाला होगा। लेकिन सफलता विघ्न बाधाओं के बाद मिलेगी।
बुध-शुक्र सदोष होने पर भी यह योग बलवान है। २-४-९-१०-११ वे भावो में विशेष फलित होता है। यह योग जातक को धन, संपदा, वाहन, स्त्री आदि सुखों से युक्त तथा विवाह के बाद स्त्री से लाभान्वित करवाता है। इस योग के प्रभाव से रहन सहन पर उच्च स्तरीय खर्च होते है।
बुध-शनि यह योग दोष युक्त होने पर भी बलवान है। इस योग के फलस्वरूप बृहद स्तर पर अत्यधिक व्यय करने पर ही आय के साधन बनते है।
सूर्य-मंगल यह योग १-४-६-७-८-११-११२ वे भावो में अशुभ तथा २-३-५-९-१० भावो में शुभ होता है इसके प्रभावस्वरूप जातक धन-संपदा, वाहनादि सुखों से युक्त तथा पिता और सरकारी क्षेत्र से लाभ उठाने वाला होता है।
सूर्य-शनि २-५-९-१० भावो में धन-स्त्री आदि की दृष्टि से शुभ परन्तु धन लाभ जैसे शुभ फल अत्यंत संघर्ष के बाद मिलते है।
कर्क कुंडली मे गुरु-शुक्र, गुरु-शनि तथा बुध-गुरु के योग शुभाशुभ अर्थात मिश्रित फल प्रदान करते है कर्क लग्न में लग्न में।चंद्र और दशम में सूर्य मेष राशि का हो तो राजयोग कारक होता है।
कर्क राशि/लग्न के जातकों के लिए दशा-अंतर्दशा का फल एवं शुभाशुभ विचार
कर्क लग्न में चंद्र, मंगल, गुरु व शुक्र ग्रहों की दशा अन्तर्दशाये प्रायः शुभ फल दायक होती है। शुभस्थ चंद्र मंगल की दशा अन्तर्दशा में शारीरिक सुख, धन लाभ, उच्च विद्या की प्राप्ति, भाई-बहन व पिता का सुख सहयोग मिलता है। मंगल-शुक्र में सुख साधनों की वृद्धि, ऐश्वर्य एवं सौंदर्य, संगीत-सिनेमा आदि में रुचि, मदिरा तम्बाकू आदी के सेवन में रुचि बढ़ेगी, चंद्र-गुरु की दशा अन्तर्दशा में धार्मिक कार्यो में रुचि, श्रेष्ठ एवं गुरुजनों आदि की संगत में सत्संग लाभ मिलता है। धार्मिक एवं सहभ कार्यो पर व्यय होते है।
मंगल-गुरु-शुक्रादी शुभ ग्रहों की दशाओं में मनोवांछित पद (नौकरी) की प्राप्ति, विवाह एवं संतान सुख, विदेश यात्रा आदि की संभावनाए बढ़ेंगी, यदि मंगल, गुरु शुक्र आदि अशुभ भावस्थ हो तो उपरोक्त सुख साधन और धन लाभ में कमी, विघ्न बढ़ाओ के पश्चात सोची हुई योजनाओ में असफलता मिलने के आसार बढ़ते है।
बुध, शनि, राहु, केतु, की दशा अन्तर्दशा में प्रायः अशुभ फल ही प्राप्त होते है। ध्यान रहे उपरोक्त ग्रहों के फलादेश में भाव-राशि की स्थिति तथा ग्रहों की शुभ-अशुभ दृष्टि के अनुसार फलादेश की मात्रा न्यूनाधिक भी हो सकती है।
गोचर विचार ग्रहों के फलादेश करते समय गोचर ग्रहों के फल का भी विचार कर लेना चाहिए।
शुभाशुभ विचार
शुभ रंग लाल, सफेद, क्रीम, गुलाबी, हल्का पीला, संतरी रंग ज्यादा अनुकूल एवं लाभदायक रहेंगे।
अशुभ रंग काला, नीला, हरा।
शुभ रत्न चांदी की अंगूठी में सफेद मोती अथवा चंद्रकांत मणि, विधिपूर्वक धारण करना शुभ रहेगा।
भाग्यशाली दिन रविवार, सोमवार, मंगलवार व शुक्रवार शुभ व अनुकूल रहेंगे, गुरुवार मध्यम फलदायी रहेगा जबकि बुधवार यात्रा व पूंजी निवेश के लिये सामान्य शुभ रहेगा तथा सह्निवार अशुभ फल देगा।
शुभांक ४-८-१ क्रमशः भगायशाली अंक रहेंगे जबकि ३ व ५ अंक इनके लिये अशुभ व २-७ मध्यम शुभ माने जाते है।
भाग्योदय कारक वर्ष २४-२८-२९-३१-३७ एव ४३ वा वर्ष भाग्योन्नति कारक होगा।