जीवन मंत्र । जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से बुध ग्रह एक परिचय……
बुध ग्रह रजोगुणी, पृथ्वी तत्त्व प्रधान, शुद्र जाती, गोलाकृति, त्रिधातु प्रकृति, उत्तर दिशा का स्वामी, दूर्वा की भांति हरा रंग, चर प्रकृति, मिश्रित रस, धातु स्वर्ण तथा इसका अधिपति देवता विष्णु है।
ग्रह मंडल में बुध युवा राजकुमार का प्रतिक है।
बुध मिथुन एवं कन्या राशि का स्वामी है तथा यह कन्या राही के १५° अंश पर परमोच्च और मीन के १५° अंश पर परम नीच का माना जाता है।तथा कन्या राशि के १६° से २०° तक मूल त्रिकोणस्थ होता है।इसकी सूर्य-शुक्र के साथ मैत्री भाव , चंद्र के साथ शत्रु भावी, मंगल-गुरु-शनि के साथ समभाव रखता है।बुध एक राशि चक्र को लगभग १८ दिन में पूरा कर लेता है।
कारकत्व
बुध बुद्धि-चातुर्य, वाक् शक्ति(वाणी), त्वचा, मित्र-सुख, विद्या, शिल्प, व्यवसाय, लेखन, गणित, कला आदि का प्रतिनिधित्व करता है।
इसके अतिरिक्त बुध से ज्योतिष, निपुणता, चिकित्सा, क़ानून, व्यापर, बंधु सुख, अध्यापन, संपादन, चित्रकला, चाची, मामी, मौसी, भानजा, भानजी, आदि बंधु वर्ग,भगवान् विष्णु संबंधी धार्मिक कार्य,विवेक, बुद्धि, तर्क-वितर्क, प्रकाशन, अभिनय, वकालत आदि बौद्धिक कार्यो का विचार किया जाता है।
बुध चतुर्थ भाव का कारक है तथा यदि शुभ ग्रहो के साथ हो तो शुभ एवं पाप ग्रहों के साथ अशुभ माना जाता है।
कुंडली में बुध यदि अशुभ हो तो जातक को उदर (पेट संबंधी) रोग कुष्ठ आदि त्वचा रोग, मतिभ्रम, वाणी में दोष, सिर दर्द, वायु विकार, मंद बुद्धि, रक्त की कमी, निम्नरक्तचाप, आदि अशुभ फल मिलते है।
रोग
जनम कुंडली में बुध अस्त ,नीच या शत्रु राशि का ,छटे -आठवें -बारहवें भाव में स्थित हो ,पाप ग्रहों से युत या दृष्ट, षड्बल विहीन हो तो उदर रोग,त्वचा विकार ,विषम ज्वर ,कंठ रोग, बहम,कर्ण एवम नासिका रोग, पांडू,संग्रहणी,मानसिक रोग, वाणी में दोष,इत्यादि रोगों से कष्ट हो सकता है |
फल देने का समय
बुध अपना शुभाशुभ फल ३२ से ३६ वर्ष कि आयु में एवम अपनी दशाओं व गोचर में प्रदान करता है कुमार अवस्था पर भी इस का अधिकार कहा गया है।
बुध का राशि फल
जन्म कुंडली में बुध का मेषादि राशियों में स्थित होने का फल इस प्रकार है :-
मेष बुध हो तो जातक कृश देह वाला,धूर्त ,विग्रह प्रिय , नास्तिक, दाम्भिक,मद्यपान करने वाला, जुआरी,,नृत्य संगीत में रूचि रखने वाला ,असत्य भाषी ,लिपि का ज्ञाता ,परिश्रम से प्राप्त धन को नष्ट करने वाला ,रति प्रिय,ऋण व बंधन भोगने वाला,कभी चंचल तो कभी स्थिर स्वभाव का होता है।
वृष बुध हो तो जातक कार्य में दक्ष ,विख्यात,शास्त्र का ज्ञाता ,वस्त्र अलंकार व सुगंध प्रेमी ,स्थिर प्रकृति,उत्तम स्त्री व धन से युक्त,मनोहर वाणी वाला ,हास्य प्रेमी व वचन का पालन करने वाला होता है।
मिथुन बुध हो तो जातक ,बहुत विषयों का ज्ञाता ,शिल्प कला में कुशल, ,धर्मात्मा ,बुद्धिमान,प्रिय भाषी,कवि,अल्प रतिमान,स्वतंत्र,दानी,पुत्र,-मित्र युक्त ,प्रवक्ता एवम अधिक कार्यों में लीन होता है।
कर्क बुध हो तो जातक प्राज्ञ ,विदेश निरत,रति व गीत संगीत में चित्त वाला,स्त्री द्वेष के कारण नष्ट धन वाला,कुत्सित,चंचल,अधिक कार्यों में रत,अपने कुल कि कीर्ति के कारण प्रसिद्ध,बहु प्रलापी जल से धन लाभ प्राप्त करने वाला तथा अपने बन्धु-बांधवों से द्रोह करने वाला होता है।
सिंह बुध हो तो जातक कला व ज्ञान से हीन,असत्यवादी, अल्पस्मृतिवान ,स्वतंत्र,अपने कुल का विरोधी तथा दूसरों को स्नेह करने वाला, दुष्कर्मी,सेवक,संतान सुख से वंचित होता है।
कन्या बुध हो तो जातक धर्म प्रिय,प्रवक्ता,चतुर,लेखक,कवि,विज्ञान –शिल्प निरत,मधुर,पूज्य,अपने गुणों के कारण प्रसिध्ध , अपने कार्य के लिए अनेक युक्तियों का प्रयोग करने वाला तथा उदार होता है।
तुला बुध हो तो जातक शिल्पकार,विवादी,वाक् चतुर,इच्छानुसार व्यय करने वाला ,अनेक दिशाओं में व्यापार करने वाला ,अतिथि-देव-गुरु-ब्राह्मण भक्त,चापलूसतथा जल्दी ही क्रोधी या शांत हो जाने वाला होता है।
वृश्चिक बुध हो तो जातक परिश्रमी,शोकयुक्त,द्रोही,जुआरी,मद्यपान करने वाला ,घमंडी , त्यक्त धर्मा,दुष्ट स्त्री भोक्ता, ,लज्जाहीन,मूर्ख,लोभी,कपटी,नीच कार्यों में लीन,ऋणी,अधम जनों में प्रीति व दूसरों कि वस्तुओं को लेने वाला होता है।
धनु बुध हो तो जातक विख्यात , यथार्थ वक्ता ,उदार,गुणी,शास्त्र का ज्ञाता ,वीर,शील,मंत्री,पुरोहित,कुल मेंप्रधान,महा पुरुष,अध्यापक ,वाक् चतुर,दानी व्रती,व लेखक होता है।
मकर बुध हो तो जातक,अधम,मूर्ख ,नपुंसक,कुल के गुणों से रहित,दुखी,स्वप्न में विहार करने वाला,चुगल खोर,असत्यवादी,अस्थिर, ऋणी,डरपोक,मलिन व बंधुओं से त्यक्त होता है।
कुम्भ बुध हो तो जातक करे हुए कार्य का त्यागी ,शत्रुपीड़ित,अपवित्र,डरपोक,भाग्यहीन,दूसरों कि आज्ञा कापालन करने वाला,नपुंसक होता है।
मीन बुध हो तो जातक निर्धन विदेश वासी,सिलाई के काम में निपुण ,विज्ञान व कला से हीन ,परधन संचय में दक्ष,सज्जनों का प्रेमी होता है।
(बुध पर किसी अन्य ग्रह कि युति या दृष्टि के प्रभाव से उपरोक्त राशि फल में परिवर्तन भी संभव है)
बुध का सामान्य दशा फल
जन्म कुंडली मेंबुध स्व ,मित्र ,उच्च राशि -नवांश का ,शुभ भावाधिपति ,षड्बली ,शुभ युक्त -दृष्ट हो तो बुध की शुभ दशा में मित्रों से समागम ,यश प्राप्ति,वाणी में प्रभाव व अधिकार, बुध्धि कि प्रखरता,विद्या लाभ,परीक्षाओं में सफलता ,हास्य में रूचि,सुख-सौभाग्य ,गणित-वाणिज्य-कंप्यूटर-सूचना विज्ञान आदि क्षेत्रों में सफलता ,व्यापार में लाभ ,स्वाध्याय में रूचि,पद प्राप्ति व पदोन्नति होती है। लेखकों,कलाकारों,ज्योतिषियों,शिल्पकारों ,आढतियों ,दलालों के लिए यह दशा बहुत शुभ फल देने वाली होती है। जिस भाव का स्वामी बुध होता है उस भाव से विचारित कार्यों व पदार्थों में सफलता व लाभ होता है।
यदि बुध अस्त ,नीच शत्रु राशि नवांश का ,षड्बल विहीन ,अशुभभावाधिपति पाप युक्त दृष्ट हो तो बुध दशा में मनोव्यथा,स्वजनों से विरोध ,नौकरी में बाधा,कलह, मामा या मौसी को कष्ट ,त्रिदोष विकार ,उदर रोग त्वचा विकार विषम ज्वर कंठ रोग बहम कर्ण एवम नासिका रोग पांडु रोग संग्रहणी मानसिक रोग वाणी में दोष इत्यादि रोगों से कष्ट, विवेक कि कमी ,विद्या में बाधा ,परीक्षा में असफलता ,व्यापार में हानि ,शेयरों में घाटा तथा वाणी में दोष होता है जिस भाव का स्वामी बुध होता है उस भाव से विचारित कार्यों व पदार्थों में असफलता व हानि होती है।
गोचर में बुध
जन्म या नाम राशि से २’ ४’ ६’ ८’ १० व ११ वें स्थान पर बुध शुभ फल देता है। शेष स्थानों पर बुध का भ्रमण अशुभ कारक होता है।
जन्मकालीन चन्द्र से प्रथम स्थान पर बुध का गोचर अप्रिय वाणी का प्रयोग, चुगलखोरी, धन हानि ,सम्बन्धियों को हानि तथा अनादर करता है।
दूसरे स्थान पर बुध का गोचर धन आभूषण कि प्राप्ति,विद्या लाभ,वाक् पटुता, उत्तम भोजन व सम्बन्धियों से लाभ कराता है।
तीसरे स्थान पर बुध का गोचर भय ,बंधुओं से विवाद ,धन हानि,मित्र प्राप्ति कराता है।
चौथे स्थान पर बुध का गोचर माता का सुख,जमीन जायदाद का लाभ ,घरेलू सुख,बड़े लोगों से मैत्री कराता है।
पांचवें स्थान पर बुध का गोचर मन में अशांति ,संतान कष्ट ,योजनाओं में असफलता व आर्थिक चिंता करता है।
छठे स्थान पर बुध का गोचर धन लाभ ,उत्तम स्वास्थ्य ,शत्रु पराजय , यश मान में वृद्धि देता है लेखन और कलात्मक कार्यों में प्रसिध्धि मिलती है।
सातवें स्थान पर बुध के गोचर से स्त्री से विवाद ,शरीर पीड़ा,राज्य व उच्चाधिकारी से भय ,यात्रा –व्यवसाय में हानि और चिंता करता है।
आठवें स्थान पर बुध के गोचर सेआकस्मिक धन प्राप्ति,सफलता,विजय व उह्ह सामजिक स्थिति देता है.
नवें स्थान पर बुध के गोचर से भाग्य हानि ,विघ्न ,धन मान कि हानि होती है
दसवें स्थान पर बुध के गोचर से पद प्राप्ति,शत्रु कि पराजय व्यवसाय में लाभ,यश व सफलता प्राप्त होती है।
ग्यारहवें स्थान पर बुध के गोचर से आय वृध्धि ,व्यापार में लाभ , आरोग्यता, भूमि लाभ,भाइयों को सुख ,कार्यों में सफलता , संतान सुख , मित्र सुख व हरे पदार्थों से लाभ होता है।
बारहवें स्थान पर बुध के गोचर से अपव्यय , स्थान हानि,स्त्री को कष्ट , शारीरिक कष्ट ,मानसिक चिंता होती है विद्या प्राप्ति में बाधा ,किसी कार्य कि हानि ,शत्रु से पराजय होती है।
( गोचर में बुध के उच्च ,स्व मित्र,शत्रु नीच आदि राशियों में स्थित होने पर , अन्य ग्रहों से युति ,दृष्टि के प्रभाव से , अष्टकवर्ग फल से या वेध स्थान पर शुभाशुभ ग्रह होने पर उपरोक्त गोचर फल में परिवर्तन संभव है)
बुध जनित अरिष्ट शांति के लिए विशेष उपाय एवं टोटके
१ ब्रह्मी बूटी या तुलसी की जड़ हरे वस्त्र में रखकर बुध के नक्षत्रो (अश्लेशा,ज्येष्ठा, एवं रेवती) में बुध के बीज मंत्र की कम से कम ३ माला जप करने के बाद हरे रंग के धागे में गंगा जल के छींटे लगा कर पुरुष दाहिनी तथा स्त्री बाहिनी भुजा में धारण करने से बुध कृत अरिष्ट की शांति होगी।
२ किसी भी शुक्ल पक्ष के प्रथम बुधवार से शुरू करके लगातार २१ दिन तक श्री विष्णु सहस्रनाम का पाठ नियमित रूप से करें अंतिम दिन उद्यापन में पांच कन्याओं को हरे रंग के वस्त्र ५ फल एवं मिठाई दक्षिणा सहित दान करने से बुध के शुभत्व में वृद्धि होती है।
३ विद्या में बाधा या वाणी में दोष होने की स्तिथि में सरस्वती स्त्रोत्र का शुक्ल पक्ष के प्रथम बुधवार से प्रारंभ करके २१ दिन लगातार माँ सरस्वती को इलाईची, मिश्री एवं केले का भोग अर्पण करने के बाद पाठ करने से दोषों की शांति होती है। पाठ के बाद प्रसाद को बाँट कर स्वयं ग्रहण करे। सायं काल तुलसी जी के आगे घी का दीप जलाएं।
४ व्यापार में हानि अथवा संतान कष्ट की स्थिति में प्रत्येक बुधवार या प्रतिदिन गोपाल सहस्त्रनाम का पाठ करना अति शुभ होता है। ४१ दिन बाद कन्याओं को हलवा सहित भोजन कराने से लाभ होगा।
५ घरेलु कलह-क्लेश की शांति प्रथम नवरात्रे से श्री दुर्गा शप्तशती का पाठ निरंतर ३१ दिन तक करने के बाद कन्या पूजन करना लाभदायक रहता है।
६ स्वास्थ्य की दृष्टि से हरे रंग की बोतल में पानी भर कर सूर्य की किरणों में उस पानी को २ पहर तक रखने के बाद पीने से सेहत में लाभ होता है।
७ यदि किसी विशेष कार्य में बार-बार विघ्न आते हों तो बुधवार के दिन हरे रंग के कपडे में ६ हरी इलाइची ५ तुलसी के पत्ते, १सुपारी रखकर विष्णु सहस्रनाम का पाठ करते हुए उस पर गुलाब के पत्तो से गंगाजल के छींटे दें। इसके बाद कपडे को गांठ बांध कर पूजा के स्थान में रखें। अंतिम बुधवार में रुमाल अपनी जेब में रख लें एवं धार्मिक स्थानों पर लड्डू का प्रसाद बंटवाने से अड़चने दूर होंगी एवं बिगड़े काम बनेंगे।
८ प्रत्येक बुधवार को गौशालाओं में गायों को मीठी रोटी एवं हरा चारा खिलाने से शुभ फल मिलते है।
९ विवाह में देरी हो रही हो तो ७ बुधवार मूंग दाल साबुत, मीठा पेठा, हरा नारियल दक्षिणा सहित मंदिर में गणेश जी को अर्पण करने से विघ्न दूर होंगे।
१० बुध यदि अशुभ फल दे रहा है तो बुधवार के दिन धर्म स्थल या विद्यालय में हरे फलदार या फूल वाले या छंयादार वृक्ष लगाना शुभ रहेगा। हरे पौधों को जल देना एवं हरी घास पर नंगे पैर टहलना भी लाभ देता है।
११ किसी भी प्रकार की नशीली वस्तु के सेवन से बुध अरिष्ट फल देता है इसलिए इनसे दूर रहें।
१२ घर में बुधवार के दिन तुलसी का पौधा गमले में लगा कर इसे थोड़े ऊंचे स्थान पर रखे सायं काल इसके आगे घी का दीपक जलाकर श्री तुलसी स्त्रोत्र का पाठ करे अवश्य लाभ होगा।
१३ गणेश चतुर्थी या मासिक संकष्ट गणेश चतुर्थी के दिन व्रत रख कर ११ माला ॐ गं गणपतये नमः का जाप गणेश जी को लड्डू का भोग लगाकर करने से बुध अरिष्ट की शांति होती है।