एक दिन ऐसा दौर जीवन मे आयेगा लोग कन्धा देने से कतराएंगे

संजय द्विवेदी की खास रिपोर्ट

एक दिन ऐसा दौर जीवन मे आयेगा जो मरने के बाद कोई कन्धा देकर श्मशान तक ले जाना तो दूर दाह संस्कार के लिए उनके घर वाले तक आगे नहीं आयेगें।विश्व 211 देशों में कोविड -19 के संक्रमण से खौफजदा जीवन मे किसी ने कल्पना भी नही किया होगा कि एक दिन ऐसा दौर आयेगा जो मरने के बाद कोई कन्धा देकर श्मशान तक ले जाना तो दूर दाह संस्कार के लिए उनके घर वाले तक आगे नहीं आयेगें।कोरोना वायरस के वैश्विक कहर के बीच संक्रमित मृतकों के अंतिम संस्कार में भी कई तरह की परेशानियों की खबरें लगातार आ रही हैं। इस बीच एक ऐसा ही मामला महाराष्ट्र से आया है, जहां कोरोना पॉजिटिव शख्स की मौत के बाद उसके शव को दफनाने से मना कर दिया गया। पंजाब में कोरोना वायरस से संक्रमित और संदिग्ध लोगों के दाह संस्कार के लिए उनके घर वाले तक आगे नहीं आ रहे। ऐसे में यहां सरकारी अधिकारियों को अंतिम संस्कार करना पड़ रहा। कोरोना वायरस से मरने वालों का नहीं हो पा रहा है अंतिम संस्कार, वेटिंग लिस्ट में हैं लाशें।
दुनिया में खतरनाक ढंग से फैलता जा रहा कोरोना वायरस अब तक 211 देशों को अपने शिकंजे में ले चुका है।संक्रमण का डर इतना ज्यादा है कि अब मरीज की मौत के बाद परिवार के लोग उसका अंतिम संस्कार भी नहीं कर पा रहे हैं।

रहस्यमयी वायरस के बारे में अब तक इससे ज्यादा जानकारी नहीं मिल सकी है कि वो खांसने-छींकने या शरीर से किसी भी तरह के तरल के रिसाव से हो सकता है। ऐसे में अगर किसी कोरोना पॉजिटिव की मौत हो रही है तो परिवार के लोग उसका अंतिम संस्कार भी विधि-विधान से नहीं कर पा रहे। ये हालात लगभग सभी देशों में हैं। कोरोना की चपेट में आ चुके यूरोपियन देश आयरलैंड में अंतिम संस्कार को लेकर गाइडलाइन जारी हो चुकी है। इसके अनुसार मृतक को छूना, चूमना, गले लगाना और यहां कि तक बिना बॉडी बैग के उसे देखने की भी मनाही हो चुकी है। इस बारे में कैथोलिक चर्चों और अंतिम क्रिया करवाने वाली संस्थाओं को भी सख्त हिदायत दी गई है। आयरलैंड में किसी को खो चुके परिवार से मिलने-मिलाने की रस्म भी अंतिम संस्कार का हिस्सा हुआ करती थी लेकिन अब पड़ोसी या बेहद आत्मीय भी एक-दूसरे को तसल्ली देने नहीं जा पा रहे।कोरेना वायरस के संक्रमण के खौफजदा जीवन में इस समय यदि कोई व्यक्ति सर्दी,खासी,वुखार एवं टाइफाइड से पीड़ित की यदि असामयिक मृत्यु हो जाय तो ऐसे में हॉस्पिटल से उसकी डेड बॉडी उसके घर आई तो आसपास के घरों की खिड़कियां खुलेंगी जरूर पर कुछ ही देर बाद सभी एक-एक करके बंद हो जाएगी। जो आसपास की बालकनियां भी निर्जन हो गईं। शव को कंधा देना तो दूर कोई पड़ोसी सांत्वना देने के लिए भी नहीं आयेगा ।हर तरफ सन्नाटा छाया है कोई आंसू पोंछने वाला भी नज़र नही आ रहा है।
वो समझदार भी बन गए होंगे। थोड़ी बहुत देर रोए भी होंगे तो कुछ देर बाद खुद ही चुप हो गए होंगे क्योंकि जब तक कोई आंसू पोंछने वाला न हो, कोई देर तक रो भी नहीं सकता। हालात ही ऐसे कि कोई गोद में लेकर आंसू पोंछने वाला कहां से आए? प्रकृति इतनी निष्ठुर कैसे हो गई जो एक ही झटके में सब कुछ बदल गया? समाज इतना असंवेदनशील बिल्कुल नहीं है लेकिन कोरोना के खौफ के कारण ये सब होना स्वाभाविक है।कारण कोरोना वायरस के संक्रमण का खौफ घर से बाहर न निकलने की मजबूरी। इसके लिए हमें आज नहीं अभी से संभलना होगा।

कोरोना वायरस के वैश्विक कहर के आगे प्रशासन के फरमान का पालन करने की विवशता व स्वयं को किसी भी हाल में जीवन को बचाए रखने की स्वाभाविक इच्छा। जब एक मनुष्य को दूसरे मनुष्य के सहयोग और संबल की आवश्यकता हो और वो चाहकर भी कुछ न कर सके, तब उसकी आंतरिक छटपटाहट को महसूस करना मुश्किल नहीं पर मनुष्य की इससे बढ़कर विवशता क्या हो सकती है?

नोवेल कोरेना वायरस के कहर से विश्व के अमेरिका ,चीन , यूरोप ,इटली ,भारत सहित 211 देशों में अब तक 80 हजार से अधिक लोग मर चुके है वही 14 लाख से अधिक लोग संक्रमित है। इसको नहीं रोका गया तो तबाही निश्चित है। यदि हम लापरवाही बरतते हैं तो हमारे घरों में भी यही हाल होना निश्चित है।

न कोई शवों की अंत्येष्टि के लिए उपलब्ध होगा और न कोई हमारे आंसू पोंछने के लिए।इस स्थिति को आने से रोकने के लिए हमें डटकर इसका मुकाबला करना होगा। आज वास्तव में इसका कोई ठोस उपचार भी हमें नहीं पता है। जब तक इसका मुकम्मल इलाज खोज पाएंगे, तब तक देर हो चुकी होगी. वर्तमान में इसका यही एकमात्रा हल नजर आ रहा है कि वायरस को फैलने से रोकेंने के लिये पीएम नरेंद्र मोदी के सोशल डिस्टेन्स की अपील को ध्यान में रखते हुये ।अक्षरशः पालन करे।

वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए हम सबसे अलग-थलग होकर अपने आपको अपने घरों में बंद कर लें और किसी भी सूरत में बाहर न निकलें. किसी की आर्थिक मदद करनी हो या किसी के मनोबल को टूटने से बचाना हो तो ये कार्य अवश्य करें लेकिन दूर रहकर. संकट के समय लोग एक दूसरे के निकट आते हैं लेकिन इस संकट की प्रकृति ही अलग है।

आज एक दूसरे के निकट आने की बजाय एक दूसरे से दूर रहने की आवश्यकता है। आज इस संकट का यही उपचार है, ये मामला इतना अधिक पेचीदा भी है कि एक आदमी की असावधानी या बेवकूफी पूरे समाज को संकट में डाल सकती है। जब तक सभी लोग सावधानी नहीं बरतेंगे, बात नहीं बनेगी।

जो व्यक्ति जरूरी सेवाओं के अंतर्गत घर से बाहर जा रहे हैं उनके कारण उनके घरों में रहने वाले अन्य सदस्यों का प्रभावित होना भी स्वाभाविक है अतः बाहर निकलने वाले सभी लोगों को संक्रमण से बचाने के लिए पर्याप्त उपाय किए जाने चाहिएं।

सरकारी मशीनरी को अधिकाधिक चुस्त-दुरुस्त होने की आवश्यकता है। इस संकट की घड़ी में हमें अपनी व्यक्तिगत स्वतंत्राता अथवा अपनी पसंद-नापसंद भुलाकर समाज की सुरक्षा के लिए सरकार अथवा प्रशासन द्वारा जारी अपेक्षित निर्देशों के अनुसार चलना होगा।यह कहने में ही बड़ा विचित्रा लगता है कि यदि किसी परिचित अथवा रिश्तेदार के यहां कोई ऐसी-वैसी घटना हो जाए तो भी वहां न जाएं या पूरी सतर्कता बरतते हुए जाएं।

किसी व्यक्ति के निकट न जाएं और उसे बिल्कुल न छुएं लेकिन लोगों की मदद के बिना किसी मृतक का दाह संस्कार कैसे संभव है? ऐसी स्थिति में संक्रमण की संभावना सबसे ज्यादा बढ़ जाती है। यदि संक्रमण को फैलने से पूरी तरह से रोकना है तो ऐसे समय में सरकार अथवा प्रशासन की तरफ से विशेष रूप से प्रशिक्षित लोगों की सेवा उपलब्ध करवाई जानी अनिवार्य है।

प्रशिक्षित कर्मचारी न केवल स्वयं सुरक्षित रहते हुए कार्य कर सकते हैं अपितु लोगों को भी संक्रमण से दूर रहने में मददगार सिद्ध होंगे। व्यक्तिगत और सरकारी दोनों स्तरों पर सावधानी अनिवार्य है। यदि किसी भी स्तर पर संक्रमण से बचाव का चक्र प्रभावित होता है तो कोरोना की भयावहता न जाने कितने परिवारों का विनाश कर डालेगी और बचे हुए लोगों के आंसू पोंछने की बात तो छोडि़ए मृतकों को श्मशान तक ले जाने के लिए भी कोई उपलब्ध नहीं होगा।

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