जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से हनुमान जी बाल्यवस्था में सूर्यदेव के पास क्यों और कैसे पहुँचे…..

धर्म डेक्स। जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से हनुमान जी बाल्यवस्था में सूर्यदेव के पास क्यों और कैसे पहुँचे…..

हनुमान की बाल्यवस्था

एक बार कपिराज केसरी कहीं बाहर गए थे। माता अंजना भी बालक को पालने में लिटा कर वन में फल-फूल लेने चली गईं। इसी बीच शिशु को भूख लगी। बच्चे तो थे ही वे। हाथ-पांव उछाल-उछाल कर क्रन्दन करने लगे। सहसा उनकी दृष्टि प्राची के क्षितिज पर गई। सूर्योदय हो रहा था और सूर्य गाढ़े लाल रंग के फल के समान दिखलाई दे रहा था। हनुमान समझा यह लाल फल है।

अपना तेज और पराक्रम वे सिद्ध करने के लिए उम्र बाधक नहीं होती और यहां तो भगवान शिव ने स्वयं हनुमान के रूप में अवतार लिया था। पवन देवता से उड़ने की शक्ति उन्हें पहले ही प्राप्त हो चुकी थी। उन्हें क्षुधा शान्त करनी थी। भोज्य सामने दिखलाई दे रहा था। और इस अखिल ब्रह्माण्ड में दूरी उनके लिए कोई समस्या नहीं थी। शिशु हनुमान उछले और वायु की गति से आकाश में उड़े लगे।
पवन देवता शिशु हनुमान को उड़कर सूर्य की ओर अग्रसर देख चिन्ता से व्याकुल हो उठे। उन्हें भय था कि शिशु हनुमान सूर्य की प्रखर किरणों से भस्म न हो जाएंगे। इसलिए वन देवता शिशु की रक्षा हेतु हिम समान शीतल होकर उनके साथ चलने लगे।

हनुमान अत्यंत वेग के साथ आकाश में उड़ते चले जा रहे थे। उनका वेग ऐसा था कि यक्ष, देव, दावन आदि सभी विस्मित हो उठे। वे मन ही मन विचार करने लगे कि हनुमान जैसा वेग तो स्वयं वायु, गरुण और मन में भी नहीं है। वे कह उठे—‘जब इस शिशु का शैशवावस्था में ऐसा वेग व पराक्रम है तो युवावस्था तक आते-आते यह समूचे ब्रह्माण्ड को हिलाकर रख देगा।’
इधर, सूर्य देवता भी शिशु हनुमान को पवन देवता के सुरक्षा चक्र में अपनी ओर आते देख अति प्रसन्न हुए। हनुमान के स्वागत में उन्होंने अपनी किरणों को शीतल बना लिया। शिशु हनुमान आए और सूर्यदेव के रथ पर सवार होकर उनके साथ क्रीड़ करने लगे।

संयोगवश उस दिन अमावस्या की तिथि थी। और सिंहिका का पुत्र, राहु, सूर्य को ग्रसने के लिए आया तो उसने सूर्यदेव के रथ पर एक बालक को आरुढ़ पाया।
राहु बालक को अनदेखा कर सूर्य को ग्रसने के लिए आगे बढ़ा ही था कि हनुमान ने अपनी वज्रमुष्ठटि में उसे पकड़ लिया। राहु छटपटाने लगा। वह किसी प्रकार जान बचाकर भागा और सीधा इन्द्र देवता के पास गया। उसने क्रोध में भरकर कहा, ‘‘सुरेश्वर ! क्षुधा निवारण हेतु आपने मुझे सूर्य एवं चन्द्र को सोधन के रूबप में प्रदान किया था, पर अब मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि आपने मेरा यह अधिकार किसी कूरे को दे दिया है। यह दूसरा कौन है और आपने मेरे साथ ऐसा क्यों किया ? संभवतः आपको ज्ञात नहीं है। मैं अभी सूर्य के पास पहुंचा ही थी कि वहां पर पहले से ही उपस्थित दूसरे राहु ने मुझे जकड़ लिया। यदि मैं किसी तरह अपनी जान बचाकर भागा न होता तो मेरी मृत्यु सुनिश्चित थी।’’

राहु की बातें सुन इन्द्र देवता चिन्तित हो उठे। वे विचारमग्न हो गए। उन्होंने अपनी स्मृति पर उन्हें ऐसा भी याद नहीं आ रहा था कि उन्होंने कभी किसी और को इस प्रकार का अधिकार प्रदान किया हो। अन्ततः वह अपना सिंहासन छोड़कर उठ खड़े हुए और ऐरावत पर सवार होकर घटना-स्थल की ओर रवाना हो गए। राहु आगे-आगे चल रहा था। वहां पहुँचकर इन्द्र के साथ होने के कारण राहु दुगने उत्साह में भर कर सूर्यदेव को ग्रास बनाने के लिए झपट पड़ा। पहले से उपस्थित शिशु हनुमान को एक बार पुनः अपनी भूख की याद हो आई और वे राहु को भक्ष्य समझकर एक बार फिर उस पर झपट पड़े।
‘‘इन्द्र देवता ! मेरी रक्षा करें,’’ चिल्लाते हुए राहु उनकी ओर भागा।

राहु के प्राण किसी प्रकार बच सके। लेकिन शिशु हनुमान को तो भूख लगी हुई थी। इसलिए ऐरावत को समाने देखकर उसे भक्ष्य समझकर हनुमान उस पर झपट पड़े। यह देखकर इन्द्र भयभीत हो उठे। अपनी रक्षा के लिए उन्होंने शिशु हनुमान पर अपने वज्र का प्रहार कर दिया। वज्र का आघात हनुमान की बायीं हनु (ठुड्डी) पर हुआ और उनकी हनु टूट गई। शिशु हनुमान अचेत होकर शिखर-पर्वत पर गिर पड़े।

वास्तव में यही घटना पवनपुत्र का नाम ‘हनुमान’ पड़ने का कारण बनी। इन्द्र ने कहा था ‘‘मेरे वज्र के आघात से इस बालक की हनु (ठुड्डी) टूट गई, इसलिए इस बालक का नाम हनुमान होगा।’’
पवन देवता अपने पुत्र की यह दशा देखकर अत्यंत क्रोधित हो उठे। उन्होंने वायु की गति रोक दी और अपनी प्राणप्रिय संतान को लेकर एक गुफा में प्रविष्ट हो गए।

वायु के रुक जाने से समस्त प्राणियों का श्वास संचार रुक गया। समस्त प्राणियों का जीवन संकट में देखकर इन्द्र देवता, दूसरे और देवगण, गन्धर्व, असुर, नाग, गुह्यक आदि जीवन की रक्षा हेतु ब्रह्माजी की शरण में गए। ब्रह्माजी सब को साथ लेकर पर्वत की उस गुफा में आए जहां पवन देवता शिशु हनुमान को अंक में लेकर अश्रु बहा रहे थे

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