जीवन मंत्र । जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से भगवान श्रीकृष्ण द्वारा चीरहरण लीला....
यहाँ पर चीरहरण का अभिप्राय है,माया रूपी दीवार या पर्दा का हरण,हम सभी जीवात्माओं के सामने माया का पर्दा या दीवार ढका हुआ है,जिस कारण से हम ईश्वर को इन माया के दोनों चर्म नेत्रों से नही देख पाते हैं,जैसा की हम सभी जीवात्मा भलिप्रकार से यह जानते हैं,कि किसी भी दृश्य को देखने और समझने में धरती और आसमान का अन्तर होता है,ठीक इसी प्रकार से ही भगवान श्रीकृष्ण की प्रत्येक लीलायें हैं,जो दिखती कुछ और हैं,लेकिन उसके पीछे उद्देश्य होता कुछ और हैं।
इसलिए ही हमारे संतो महापुरुषो ने हमे सावधान किया है,हमे बताया है कि श्री रामजी के चरित्र का अनुसरण करो और श्री कृष्ण के लीलाओं को पावन बुद्धि से समझो।
भगवान श्री कृष्ण द्वारा जब चीरहरण लीला की गई थी,उस समय उनकी आयु मात्र साढ़े छः वर्ष की थी,
चीरहरण लीला के वर्णन से पहले उनके आगे की कुछ लीलाओं का संक्षिप्त वर्णन कर रहे है,क्योंकि चीर हरण लीला का आधार ही उनके द्वारा पूर्व में की गई लीलायें हैं,जब भगवान श्री कृष्ण मात्र छः दिन के थे,
तब उन्होंने एक विशालकाय राक्षसी पूतना का वध करके उसका उद्धार किया था,इसके पश्चात जब वे तीन माह के हुए थे तब सकटासुर नामक दैत्य का संहार करके उसका उद्धार किया था,फिर जब वो पांच माह के हुए थे तब विशाल बवण्डर के रूप में आये हुए दैत्य तृणावृत का वध करके उसका उद्धार किया था,
फिर आगे क्रमशः इसी प्रकार वकासुर,अघासुर आदि अनेक विशालकाय दैत्यों का संहार किया था,एक बार गोपियाँ भगवान श्री कृष्ण से कहतीं हैं,कि हे कृष्ण हम जान गईं हैं की आप मानव नही साक्षात श्री नारायण ही हैं,तब भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि हे गोपियो मैं तो केवल साधारण बालक ही हूँ,परन्तु तुमलोग यह बताओ कि तुम्हे ऐसा क्यों लगता है कि मैं मानव नही नारायण ही हूँ,तब गोपियाँ कहतीं हैं कि हे नन्दनन्दन तुमने केवल छः दिन की आयु में ही,अति विशालकाय राक्षसी पूतना का विषयुक्त दुग्ध का पान करके उस राक्षसी का वध करके उसका उद्धार किया था,संतो ज्ञानियों का यह कहना है कि यह कार्य ना तो कोई मनुष्य कर सकता है,और ना ही किसी भी देवता में ही ऐसा करने का सामर्थ्य है,इसी तरह आपने अनेकानेक विशालकाय भयंकर राक्षसो का वद्ध करके उनका उद्धार किया है और व्रजवासियों की रक्षा की,गोपियाँ कहतीं हैं कि हे कृष्ण तुम्हारे दोनों चरणों की तलवों में शंख चक्र गदा और पद्म के चित्रांकित है,तुम्हारे छाती में श्रीवत्स का जो चिन्ह है,वह तुम्हारे नारायण होने का प्रमाण देता है,हे नाथ हम और क्या कहें जब हम दधि माखन बनाकर भगवान श्री नारायण को भोग लगाने के लिए आवाहन करतीं हैं,तो तुम्ही दौड़े चले आते हो और भोग लगाकर चले जाते हो,तुम जिस घर का भी दधि माखन का भोग लगा जाते हो,उस घर की गाइया चार गुना अधिक दूध देने लग जाती हैं,यहाँ तक की उस घर की बाँझ बूढ़ी और बिन बियाई बछिया भी दूध देने लग जाती है,तब भगवान श्री कृष्ण मौन रहकर गोपियों की तरफ देखकर मुसकरा देते हैं,तभी से ब्रज की गोपियाँ श्री कृष्ण को पतिभाव से प्रेम करने लगतीं हैं,और भगवान श्री कृष्ण को पति रूप में प्राप्त करने के लिये माता कत्यायनी का विधिवत एक मास तक व्रत पूजन करने लगतीं हैं,अब गोपियाँ प्रतिदिन सुर्योदय से पूर्व उठकर यमुना जी में स्नान करने को जाती हैं,और यमुना तट की बलुकामयी कत्यायनी माता की पिण्डी बनाकर विधिवत पूजन अर्चन करतीं हैं,गोपियाँ जिस वस्त्र को पहकर स्नान करने जाती हैं स्नान के पश्चात पुनः उन्ही वस्त्रो को पहन लेती हैं,
अर्थात वे नग्न होकर यमुना जी में स्नान करती हैं और अज्ञानतावश जल के अधिष्ठात्र देवता वरुण देव का अपराध करती हैं,भगवन श्री कृष्ण ने गोपियों के समस्त अशुभ संस्कारों और अज्ञानताओं का हरण करने के लिए ही चीर हरण लीला की थी,भगवान श्रीकृष्ण गोपियों के सारे वस्त्रो को अपने कांधे पर रखकर ऊँचे कदम्ब की डाली पर चढ़कर बैठ जाते हैं और जोर-जोर से ठहाके लगाते है,स्नान करती हुई गोपियाँ पहले तो यह देखकर सहम जातीं हैं,फिर कहने लगतीं हैं कि हे कृष्ण हमारे वस्त्र हमे वापस कर दो हम सभी ठण्ड के मारे जल में ठिठुर रहीं हैं,तब भगवान श्रीकृष्ण ने कहा हे गोपियों बाहर आओ और अपने-अपने वस्त्र ले जाओ,तब गोपियाँ कहतीं हैं,कि हे नाथ हम तो तुम्हारी दासियाँ हैं एक मात्र तुम्ही से प्रेम करतीं हैं हमे ना सताओ हमें हमारे वस्त्र देदो,हम निर्वस्त्र तुम्हारे सामने कैसे आ सकतीं हैं हमे लज्जा आती है,भगवान् श्री कृष्ण कहते हैं कि जब तुम निर्वस्त्र होकर जल में घुसी थीं तब तुम्हे लज्जा नही आई थी,
गोपियों ने श्री कृष्ण से कहा तब तुम यहाँ पर नही थे कृष्ण,भगवान श्री कृष्ण कहते हैं हे गोपियों तब भी मैं यहाँ मौजूद था,फर्क सिर्फ इतना है कि तुम सब मुझे अभी देख पा रही हो,हे गोपियों तुम तो कहती हो कि तुम सभी मुझसे प्रेम करती हो,मेरी दासियाँ हो मुझे नारायण मानती हो,तो फिर यह विचार करो कि मैं तो सर्वत्र सर्वव्यापी हूँ,तुम जिस जल में नग्न स्नान कर रही हो उस जल में भी मैं ही हूँ,मैं तो कण-कण में व्याप्त हूँ, मुझसे कुछ भी नही छिपा है यदि तुम सभी वस्त्र पहने हुए भी होतीं तो भी मेरे समक्ष नग्न ही होती,हे गोपियों तुम्हारा ज्ञान अधूरा है,मैं ब्रह्म हूँ ये बात तो तुम जानती हो परन्तु व्यवहार में मानती नही हो,
भगवान श्री कृष्ण के इस प्रकार के वचनों को सुनकर गोपियों के मन से अज्ञानता रूपी अंधकार समाप्त हुआ,अब उनके मन से स्त्री पुरुष का भेद ही समाप्त हो गया,उनकी दृष्टि दिव्य हो गई और वे सभी नग्न अवस्था में ही जल से बाहर निकलकर श्री कृष्ण के समक्ष आकर खड़ी हो गयीं,भगवान श्रीकृष्ण ने उनके वस्त्र उन्हें दे दिए,उनके वस्त्र श्रीकृष्ण के श्रीविग्रह को स्पर्श कर चुके थे ऐसे वस्त्र को धारण करते ही गोपियों के जन्म-जन्म के अशुभ संस्कार और अज्ञान नष्ट हो गया,भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि हे गोपियो तुमने यमुना जल में नग्न स्नान करके वरुण देव का अपराध किया है,इसलिए वरुण देव को प्रणाम करके क्षमा मांगो,गोपियो ने समस्त भूतों का एक मात्र स्वामी श्री कृष्ण जानकार,केवल श्रीकृष्ण को ही प्रणाम किया,
भगवान श्रीकृष्ण गोपियों पर प्रसन्न हुए और कहा हे गोपियों मैं समय आने पर तुम सभी आत्माओं को अपने परमात्मा सरूप के दिव्य दर्शन कराकर तुम्हारे साथ महारास द्वारा आलौकिक मिलन करूँगा,अब तुम पहले वाली गोपियाँ नही रही,अब तुम व्रज की दिव्य विभूतियाँ बन चुकी हो,जाओ तुम्हारा कल्याण होगा।