धर्म डेक्स। जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से जन्म कुंडली के भाग्य भाव का महत्व….

नवम भाव
शास्त्रों में आयु को धर्म की देन कहा गया है
नैतिक जीवन तथा आध्यात्मिक उन्नति ही दीर्घ जीवन का मूल है।
अतः विकास क्रम में नवम स्थान धर्म को दिया गया है, नवम भाव जातक का भाग्य है।
इस भाव की शुभ स्थिति जातक के सम्पूर्ण भाग्य जीवन का सबसे महत्वपूर्ण कारण है।
नवम भाव परोपकार करने की क्षमता का कारक है,यदि यह भाव अशुभ हो तो जातक की आयु का एक बड़ा हिस्सा बेकार चला जाता है, क्योंकि यह भाव जीवन संघर्ष एवं व्यवस्तता का भाव भी है, जातक की जाग्रत अवस्था एवं इच्छा शक्ति को भी यह भाव दर्शाता है।
इस भाव का कारक बृहस्पति है, कालपुरुष की कुण्डली के अनुसार नवम भाव में धनुराशि पड़ती है जिसका स्वामी बृहस्पति है। यह भाव घर के उस हिस्से से सम्बन्ध रखता है ; जहां बैठ कर धर्म कार्य होता है अर्थात पूजा स्थल। यह भाव बुजुर्ग लोगो से सम्बंधित है। यदि अशुभ स्थिति हो तो बुजुर्ग नाराज रहते है। जातक के उसके पिता से सम्बन्ध लाभ एवं पिता की आर्थिक स्थिति का पता चलता है।
इस भाव से जातक को डाक्टर वैद्य से उपचार किस स्तर का मिलेगा पता चलता है।
राज्य उपभोग का योग, पैसा प्रभु की कृपा , राजयोग , लम्बी यात्रा दूसरी पत्नी एवं उससे पुत्र की प्राप्ति चूँकि पाँचवाँ भाव नवम भाव पर पड़ता है ; यदि बलवान हो तो अवश्य पुत्र सुख मिलेगा आदि इस भाव से देखा जाता है।
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