सोनभद्र।जय जवान- जय किसान का नारा देने वाले थे शास्त्री जी आज दिनाँक 11 जनवरी को भारतीय युवा कांग्रेस सोनभद्र ने पूर्व प्रधानमंत्री स्व0 लाल बहादुर शास्त्री जी की पुण्य तिथि जिलाध्यक्ष युवा कांग्रेस आशुतोष कुमार दुबे(आशु) के नेतृत्व में मनाया जिसमे जिलाध्यक्ष आशु दुबे ने कहा कि लालबहादुर शास्त्री का जन्म 1904 में मुगलसराय (उत्तर प्रदेश) में एक कायस्थ परिवार में मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव के यहाँ हुआ था।उनके पिता प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक थे इसलिए सब उन्हें मुंशीजी ही कहते थे। बाद में उन्होंने राजस्व विभाग में लिपिक (क्लर्क) की नौकरी कर ली थी । शास्त्री जी की माँ का नाम रामदुलारी था। परिवार में सबसे छोटा होने के कारण उन्हें नन्हें कहकर ही बुलाया करते थे। जब ये अठारह महीने के हुए तभी दुर्भाग्य से पिता का निधन हो गया। उनकी माँ रामदुलारी अपने पिता हजारीलाल के घर मिर्ज़ापुर चली गयीं। कुछ समय बाद उसके नाना भी नहीं रहे। ननिहाल में रहते हुए प्राथमिक शिक्षा ग्रहण की बाद की शिक्षा हरिश्चन्द्र हाई स्कूल और काशी विद्यापीठ में हुई। काशी विद्यापीठ से शास्त्री की उपाधि भी मिली । आशु दुबे ने कहा कि भारत की स्वतन्त्रता के पश्चात शास्त्रीजी को उत्तर प्रदेश के संसदीय सचिव के रूप में नियुक्त किया गया था। गोविंद बल्लभ पंत के मन्त्रिमण्डल में उन्हें पुलिस एवं परिवहन मन्त्रालय सौंपा गया। 1951 में, जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में वह अखिल भारत काँग्रेस कमेटी के महासचिव नियुक्त किये गये। उन्होंने 1952, 1957 व 1962 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी को भारी बहुमत से जिताने के लिये बहुत परिश्रम किया।प0जवाहरलाल नेहरू जी का उनके प्रधानमन्त्री के दौरान 27 मई, 1964 को देहावसान हो जाने के बाद साफ सुथरी छवि के कारण शास्त्रीजी को 1964 में देश का प्रधानमन्त्री बनाया गया। उन्होंने 9 जून 1964 को भारत के प्रधान मन्त्री का पद भार ग्रहण किया।कार्यक्रम में उपस्थित पूर्व कार्यकारी अध्यक्ष नामवर कुशवाहा के कहा कि उनके शासनकाल में 1965 का भारत पाक युद्ध शुरू हो गया। इससे तीन वर्ष पूर्व चीन का युद्ध भारत हार चुका था। शास्त्रीजी ने अप्रत्याशित रूप से हुए इस युद्ध में नेहरू जी के मुकाबले राष्ट्र को उत्तम नेतृत्व प्रदान किया और पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी। इसकी कल्पना पाकिस्तान ने कभी सपने में भी नहीं की थी।कार्यक्रम में उपस्थित कमलेश ओझा ने कहा कि शास्त्री जी ताशकन्द में पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब ख़ान के साथ युद्ध समाप्त करने के समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद 11 जनवरी 1966 की रात में ही रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गयी।विधानसभा यूथ अध्य्क्ष श्रीकांत मिश्रा ने कहा कि शास्त्रीजी सच्चे गान्धीवादी थे जिन्होंने अपना सारा जीवन सादगी से बिताया और उसे गरीबों की सेवा में लगाया। भारतीय स्वाधीनता संग्राम के सभी महत्वपूर्ण कार्यक्रमों व आन्दोलनों में उनकी सक्रिय भागीदारी रही और उसके परिणामस्वरूप उन्हें कई बार जेलों में भी रहना पड़ा।ब्लॉक अध्यक्ष युवा कांग्रेस प्रदीप कुमार चौबे ने कहा कि स्वाधीनता संग्राम के जिन आन्दोलनों में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही उनमें 1921 का असहयोग आंदोलन, 1930 का दांडी मार्च तथा 1942 का भारत छोड़ो आन्दोलन सर्वविदित हैं। मुख्य रूप से उपस्थित रहने वालो में जितेंद्र पांडेय, सूरज वर्मा,दिलशान खान ,ओंकार पांडे, सोनू पांडे, कमलेश ओझा ,निगम मिश्रा ,प्रमोद कुमार पांडे, राकेश मिश्रा, संजय मिश्रा, मदन श्रीवास्तव ,राहुल सिंह ,रहे।