नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ बनारस में आक्रोश सभा व फ़्लैग मार्च

-लंका गेट पर ज्वाइंट एक्शन कमेटी ने निकाला मार्च
-लोगो ने कहा, नागरिकता संशोधन अधिनियम है जनविरोधी व साम्प्रदायिक
– यह कानून है अन्य देशों से आए शरणार्थियों व मुसलमानों को नागरिकता न देने के लिए

वाराणसी। नागरिकता संशोधन अधिनियं के खिलाफ बनारस में लोगों ने जिनमें बीएचयू के छात्रों, प्राध्यापकों और समाजसेवियों की तादाद ज्यादा थी ने आक्रोश व्यक्त करते हुए मशाल जुलूस निकाला। इस मौके पर लोगों ने कहा, यह संविधान के मूल भावना के खिलाफ है। लेकिन अफसोस यह कि संसद से पास होने के बाद अब यह कानून भी बन गया है। यह कानून अन्य देशों से आए शरणार्थी मुसलमानों को नागरिकता न देने के लिए बना है, जबकि भारतीय संविधान धर्म के नाम पर भेदभाव के खिलाफ है।

ज्वाइंट एक्शन कमेटी की इस आक्रोश सभा व मशाल जुलूस में शामिल लोगों ने नागरिकता संशोधन अधिनियम को जनविरोधी व साम्प्रदायिक करार दिया। इस मौके पर मैग्सेसे पुरष्कार विजेता समाजसेवी डॉ संदीप पांडेय ने कहा कि भारत वसुधैव कुटुंबकम का देश है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद -14 यह सुनिश्चित करता है कि भारत अपनी सीमाओं में किसी जन के साथ धर्म, जाति, लिंग, भाषा, रंग व स्थान के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करेगा। यह नागरिकता संशोधन विधेयक अनुच्छेद (आर्टिकल)-14 का उलंघन करता है। इस कानून के द्वारा भाजपा अपने हिंदुत्व एजेंडे को साधना चाहती है। हम भारत के लोग ऐसे संविधानविरोधी, जनविरोधी व साम्प्रदायिक कानून का विरोध करते हैं।

बीएचयू के प्रोफेसर प्रमोद बांगड़े ने कहा कि हमारे देश की आज़ादी बहुत कुर्बानियों के बाद मिली है। भारत का संविधान आज़ादी के मूल्यों पर बना है। इस देश के संविधान में आज़ादी के नायकों गांधी, भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरु, आज़ाद, नेहरू, सुभाष चंद्र बोस, मौलाना आज़ाद, खान अब्दुल गफ़्फ़ार खान व जाने अनजाने हजारों लोगों की आत्मा बसती है। यह संविधान उनके विचारों का समुच्चय है, जबकि आज यह संघ व भाजपा की सरकार इस संविधान की आत्मा को मारना चाहती है। हम भारतीय बाबा साहेब अंबेडकर द्वारा लिखित इस संविधान को मरने नहीं देंगे।

अन्य वक्ताओं ने कहा की यह बनारस का समाज बिस्मिल्लाह खान की शहनाई, कबीर-रैदास-तुलसी की कविताओं, महादेव के जय-जयकार में रहता है। यह भाजपा की सरकार लोगों को आपस में धर्म, जाति, लिंग, भाषा के नाम पर बांट रही है। डॉ लोहिया ने कहा था कि ज़ालिम की बात न मानना ही सिविल नाफ़रमानी है। यह बनारस का समाज भी ऐसे साम्प्रदायिक व जनविरोधी कानून का विरोध करता है।

आक्रोश सभा व मशाल जुलूस में मुख्य रूप से विकास सिंह, मनीष, जिया उल हक़, सानिया अनवर, दिवाकर, जागृति राही, रवि शेखर, एकता शेखर, चिंतामणि सेठ, धनंजय, श्रेया, अनुष्का, मिनेषी, रंजना, रजत, जावेद, प्रियेश, शाश्वत, अनंत, नीरज, सौरभ, प्रतीक, विवेक मिश्र, अमित , कुलदीप, प्रेम, अनवर अली, जावेद आदि मौजूद रहें।

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