जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से दक्ष प्रजापति भगवान शिव से क्यों चिढ़ते थे….

धर्म डेक्स। जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से दक्ष प्रजापति भगवान शिव से क्यों चिढ़ते थे…..

दक्ष प्रजापति सृष्टि निर्माता भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्र थे। राजा दक्ष के दो पुत्र, 84 पुत्रियाँ थी. दक्ष प्रजापति ने पानी 27 कन्याओं का विवाह चंद्रदेव के साथ किया था. इन 27 कन्याओं में रोहिणी सबसे अधिक सुन्दर थीं. चन्द्रमा रोहिणी से सर्वाधिक प्रेम करते थे और अन्य 26 पत्नियों की अनदेखी करते थे. उन कन्याओं ने यह बात अपने पिता दक्ष को बताई. दक्ष बहुत दुखी हुए, उन्होंने चन्द्रमा को आमंत्रित किया. उन्होंने चन्द्रमा से इस अनुचित व्यवहार के लिए सावधान किया. चन्द्रमा ने अपनी गलती स्वीकार कर ली और वचन दिया कि वो भविष्य में ऐसा भेदभाव नहीं करेंगे।

परन्तु ऐसा हुआ नहीं, चन्द्रमा ने अपना भेदभावपूर्ण व्यवहार जारी रखा. दक्ष की कन्यायें क्या करती, उन्होंने पुनः अपने पिता को इस सम्बन्ध में सूचित किया. इस बार दक्ष ने चंद्रलोक जाकर चन्द्रदेव को समझाने का निर्णय लिया. दक्ष प्रजापति और चन्द्रमा की बात इतना बढ़ गयी कि अंत में क्रोधित दक्ष ने चन्द्रदेव को कुरूप होने का श्राप दे दिया।

श्राप का असर दिखने लगा और दिन-प्रतिदिन चन्द्रमा की सुन्दरता और तेज घटने लगा. एक दिन नारद मुनि चन्द्रलोक पहुंचे तो चन्द्रमा ने उनसे इस श्राप से मुक्ति का उपाय पूंछा. नारदमुनि ने चन्द्रमा से कहा कि वो श्राप मुक्ति के लिए भगवान शिव से प्रार्थना करें।

चन्द्रमा यह बात जानते थे कि भगवान शिव का विवाह सती से होने वाला है. उन्हें लगा कि शिव उनकी सहायता क्यों ही करेंगे. नारद मुनि चतुर तो थे ही, उन्होंने उपाय बताया कि पहले शिव जी से कहना कि आप मेरी रक्षा करने का वचन दें. जब शिव हाँ कर दें तो दक्ष के श्राप की बात बताना, शिव अपने वचन की रक्षा करते हुए तुम्हारा कल्याण अवश्य करेंगे. नारद मुनि के कहे अनुसार चंद्रदेव ने किया और शिव ने उन्हें श्रापमुक्त किया।

कुछ दिन बाद नारद घूमते हुए दक्ष के दरबार में पहुंचे और उन्होंने चन्द्रमा की श्रापमुक्ति के बारे में उन्हें बताया. दक्ष को बड़ा क्रोध आया कि उनके श्राप को किसने विफल कर दिया. नारदजी से जानकर दक्ष शिव से युद्ध करने कैलाश पर्वत पहुँच गये. शिव और दक्ष का युद्ध होने लगा. इस युद्ध को रोकने के लिए ब्रह्मा और भगवान शिव वहां पहुंचे. भगवान ब्रह्मा ने चन्द्रमा के शरीर से एक नए चन्द्रमा की उत्पत्ति कर दी।

भगवान विष्णु ने कहा कि – दक्ष के श्राप अनुसार पहले चंद्रमा की सुन्दरता कुछ दिन घटेगी और कुछ दिन बढ़ेगी, साथ ही चन्द्रमा को अपनी पत्नियों से समानता का व्यवहार करना होगा . शिव जी के वरदान प्राप्त दूसरे चन्द्रमा को शिव के साथ रहना होगा।

यह प्रकरण तो समाप्त हुआ पर दक्ष ने मन ही मन निर्णय ले लिया कि वो सती का विवाह शिव से नहीं करेंगे।

दक्ष प्रजापति भगवान शिव – दूसरी कहानी

चूंकि दक्ष सती का विवाह शिव से न करने का निश्चय कर चुके थे अतः उन्होंने सती का स्वयंवर करने का निर्णय लिया. एक शुभ दिन सती का स्वयंवर निश्चित हुआ और जिसमें दक्ष ने सभी गंधर्व, यक्ष, देव को आमंत्रित किया. परन्तु शिव को आमंत्रित नहीं किया. शिव का अपमान करने के लिए उन्होंने शिवजी की मूर्ति बनाकर द्वार के निकट लगा दी थी।

स्वयंवर के समय जब यह बात सती को पता चली तो उन्होंने जाकर उसी शिवमूर्ति के गले में वरमाला डाल दी. इसे प्रभु की लीला ही समझिये, शिव तत्क्षण वहीँ प्रकट हो गये. भगवान शिव ने सती को पत्नी रूप में स्वीकार किया और कैलासधाम चले गए. दक्ष कुपित तो हुए पर कुछ कर न सके।

इसी घटना के कुछ दिन बाद भगवान ब्रह्मा ने एक महान यज्ञ का आयोजन किया. इस यज्ञ में उन्होंने सभी देवताओं, महान राजाओं, प्रजापतियों को बुलाया. इसके अतिरिक्त शिव, सती को भी आमंत्रित किया. सभी लोग यज्ञस्थल पर आये और अपने आसन पर विराजमान हुए. दक्ष प्रजापति सबसे अंत में वहां पहुंचे।

जब दक्ष प्रजापति वहाँ पहुंचे तो ब्रह्मा, शिव, सती के अतिरिक्त सभी लोग उनके सम्मान में उठ खड़े हुए. ब्रह्मा दक्ष के पिता थे और शिव दक्ष के दामाद थे, इन दोनों का स्थान रीति के अनुसार बड़ा माना जाता है. दक्ष ने बात पर ध्यान नहीं दिया और उन्हें लगा शिव उन्हें अपमानित करने के लिए खड़े नहीं हुए. दक्ष ने निर्णय लिया कि वो भी इसी प्रकार शिव का अपमान करेंगे।

कुछ दिनों बाद दक्ष ने ठीक उसी प्रकार एक यज्ञ का आयोजन किया परन्तु शिव, सती को निमंत्रित ही नहीं किया. जब सती को यह पता चला तो उन्होंने पितृप्रेम वश यज्ञ में जाने का निश्चय किया. शिव ने सती से कहा कि बिना निमंत्रण के जाना उचित नहीं, पर सती को लगा कि वो तो दक्ष की प्रिय पुत्री हैं अतः किसी औपचारिकता की क्या आवश्यकता।

विधि का विधान, सती यज्ञ में पहुँच तो गयी पर उनके पिता ने उनसे उचित व्यवहार नहीं किया और सभा में शिव का अपमान भी किया. फलस्वरूप अपने और अपने पति के अपमान से दुखी सती ने यज्ञ कुंड में कूदकर प्राणों की आहुति दे दी. मरने के पूर्व सती ने अपने पिता दक्ष को श्राप दिया कि उनके झूठे घमंड और दम्भी व्यव्हार का परिणाम उनको भुगतना पड़ेगा और शिव के कोप से दक्ष और उनके साम्राज्य का विनाश हो जायेगा. बाद में सती का श्राप अक्षरशः सत्य भी हुआ।

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