धर्म डेस्क।जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पाण्डेय से हनुमान जी की उड़ने की गति……..
बचपन में जब हमारे बड़े हमें रामायण की कहानियां सुनाया करते थे तब हमें लक्ष्मण जी के बेहोश होने पर हनुमान जी का संजीवनी बूटी लेने जाना व जाने का किस्सा सुनाया जाता था जिसमे संजीवनी बूटी ना मिलने पर पूरा का पूरा पर्वत उठाकर लाने वाला किस्सा रोचक लगता था। क्या कभी आपने यह सोचा कि उनके उड़ने की गति क्या होगी ? जिस तरह से हनुमान जी एक ही रात में श्रीलंका से हिमालय के पर्वतों पर पहुंचे ? और पहाड़ उठाकर वापस भी आ गए तो निश्चित ही उनके उड़ने की क्षमता बेहद तेज रही होगी। लेकिन कितनी तेज ? इस बात का सही सही अनुमान नहीं लगाया जा सकता लेकिन फिर भी आपके मन में उठ रहे सवालों के जवाब खोजने के लिए हमने कुछ तथ्यों का सहारा लिया और गुणा भाग करके हनुमान जी की रफ्तार जानने की कोशिश की है।
अगर इसमे कोई गलती या चुक होने कि संभावना भी हो सकती है। जहां तक हमारी जानकारी है जिस वक्त लक्ष्मण और मेघनाथ का युद्ध होने वाला था उससे ठीक पहले मेघनाथ ने अपनी कुलदेवी की तपस्या शुरू की थी और वह तपस्या मेघनाथ ने पूरा दिन की थी। इस पूजा की खबर जब श्रीराम व उनकी सेना को लगी तो विभीषण ने बताया कि अगर मेघनाथ की तपस्या पूर्ण हो गई तो मेघनाथ अमर हो जाएगा उसके बाद तीनों लोकों में मेघनाथ को कोई नहीं मार सकेगा। इसीलिए मेघनाथ की तपस्या किसी तरीके से भंग कर के उसे अभी युद्ध के लिए ललकारना होगा। इसके बाद हनुमान जी सहित कई वानर मेघनाथ की तपस्या भंग करने गए। उन्होंने अपनी गदा के प्रहार से मेघनाथ की तपस्या भंग करने में सफलता प्राप्त की लेकिन तब तक रात हो चुकी थी।
लक्ष्मण जी ने रात को ही मेघनाथ को युद्ध के लिए ललकारा, रामायण के अनुसार उस समय रात्रि का दूसरा पहर शुरु हो चुका था। दोस्तों रात्रि का पहला पहर सूर्य अस्त होते ही शुरू हो जाता है और सूर्य उदय होने के साथ ही रात्रि का अंतिम यानी चौथा पहर खत्म हो जाता है। यानी चार पहर होते हैं। इसका मतलब प्रत्येक पहर 3 घंटे का हुआ अब अगर आधुनिक काल की घड़ी के हिसाब से देखें तो लक्ष्मण और मेघनाथ का युद्ध रात के करीब 9:00 बजे शुरू हुआ होगा। यह भी कहा जाता है कि लक्ष्मण जी और मेघनाथ के बीच बेहद घनघोर युद्ध हुआ था जो लगभग 1 पहर यानी 3 घंटे तक चला था उसके बाद मेघनाथ ने अपने शक्तिशाली अस्त्र का प्रयोग किया जिससे लक्ष्मण जी मूर्छित हो गए। लक्ष्मण जी के मूर्छित होने का समय लगभग 12:00 बजे के आसपास का रहा होगा।
लक्ष्मण जी के मूर्छित होने से समस्त वानर सेना में हड़कंप मच गया मेघनाथ ने मूर्छित लक्ष्मण को उठाने की जी तोड़ कोशिश की लेकिन जो शेषनाग समस्त पृथ्वी को अपने फन पर उठा सकता था उसी शेषनाग के अवतार को भला मेघनाथ कैसे व क्या उठा पाता। लक्ष्मण जी को ना उठा पाने पर मेघनाथ वापस चला गया। श्री राम अपने प्राणों से भी प्यारे भाई को मूर्छित देखकर शोक में डूब गए, उसके बाद विभीषण के कहने पर हनुमान जी लंका में से लंका के राज्य वैद्य को जबरदस्ती उठा लाए। लक्ष्मण जी अगर 12:00 बजे मूर्छित हुए तो जाहिर है उसके बाद श्री राम के शोक और विभीषण द्वारा सुषेण वैद्य लाने के लिया कहना और हनुमान जी द्वारा सुषेण वैद्य को उठा लाना इन सब में कम से कम 1 घंटा तो लग ही गया होगा। यानी रात्रि के करीब 1:00 बज चुके होंगे | इसके बाद वैद्य द्वारा लक्ष्मण की जांच करने और उनके प्राण बचाने के लिए संजीवनी बूटी लाने की सलाह देने और हनुमान जी को संजीवनी बूटी लाने के लिए प्रस्थान करने में भी कम से कम आधा घंटा जरूर लगा होगा।
तो हम ये मान सकते हैं कि बजरंगबली हनुमान आज के समय के अनुसार करीब रात्रि में 1:30 पर संजीवनी बूटी लाने के लिए रावण की नगरी से उड़े होंगे। जहां तक सवाल उनके वापस आने का है तो निश्चित ही वह सूर्य उदय होने से पहले वापस आ गए होंगे। यानि की बजरंगबली के वापस आने का समय लगभग 5:00 बजे का रहा होगा। 1:30 बजे लक्ष्मण जी की जान बचाने के लिए हनुमान जी उड़े और 5:00 बजे तक वापस आ गये इसका मतलब हनुमान जी 3:30 घंटे में द्रोणागिरी पर्वत उठाकर वापस आ गए। लेकिन मित्रों इन 3:30 घंटों में से भी हमें कुछ समय कम करना होगा क्योंकि जैसे ही लंका से निकलकर पवन पुत्र भारत आए तो रास्ते में उन्हें कालनेमि नामक राक्षस अपना रूप बदले मिला।
कालनेमि निरंतर श्री राम नाम का जप कर रहा था लेकिन वास्तव में उसकी मंशा हनुमान जी का समय खराब करने की थी। हनुमान जी ने जब जंगल से रामनाम का जाप सुना तो जिज्ञासावश नीचे उतर आए कालनेमि ने खुद को बहुत बड़ा ज्ञानी बताया और हनुमान जी से कहा कि पहले आप स्नान करके आओ उसके बाद मैं आपको रावण के साथ चल रहे युद्ध का नतीजा बताऊंगा। भोले हनुमान जी उसकी बातों में आ गए और स्नान करने चले गए | स्नान करते समय उनका सामना एक मगरमच्छ से हुआ जिसे हनुमान जी ने मार डाला।
उस मगर की आत्मा ने हनुमान को उस कपटी कालनेमि की वास्तविकता बताई तो बजरंगबली ने उसे भी अपनी पूंछ में लपेटकर परलोक भेज दिया। लेकिन इन सब में भी हनुमान जी का कम से कम आधा घंटा जरूर खराब हुआ होगा। उसके बाद बजरंगबली ने उड़ान भरी होगी और द्रोणागिरी पर्वत जा पहुंचे लेकिन हनुमान जी कोई वैद्य तो नहीं थे इसीलिए संजीवनी बूटी को पहचान नहीं सके और संजीवनी को खोजने के लिए वह काफी देर तक भटकते रहे होंगे। इसमें भी उनका कम से कम आधा घंटा जरूर खराब हुआ होगा। बूटी को ना पहचान पाने की वजह से हनुमान जी ने पूरा पर्वत ही उठा लिया और वापस लंका की ओर जाने लगे। लेकिन हनुमान जी के लिए एक और मुसीबत आ गई।
हुआ यह की जब पवन पुत्र पर्वत लिए अयोध्या के ऊपर से उड़ रहे थे तो श्री राम के भाई भरत ने सोचा कि यह कोई राक्षस अयोध्या के ऊपर से जा रहा है और उन्होंने बिना सोचे समझे महावीर बजरंगबली पर बाण चला दिया। बाण लगते ही वीर हनुमान श्री राम का नाम लेते हुए नीचे आ गिरे। हनुमान जी के मुंह से श्री राम का नाम सुनते ही भरत दंग रह गए और उन्होंने हनुमानजी से उनका परिचय पूछा तो उन्होंने (हनुमान जी) ने उन्हें राम रावण युद्ध के बारे में बताया। लक्ष्मण के मूर्छित होने का पूरा किस्सा सुनाया तब सुनकर वह भी रोने लग गए और उनसे माफी मांगी| फिर हनुमानजी का उपचार किया गया और हनुमान जी वापस लंका की ओर ओर चलें। लेकिन इन सभी घटनाओं में भी बजरंगबली के कीमती समय का आधा घंटा फिर से खराब हो गया। अब हनुमान जी के सिर्फ उड़ने के समय की बात करें तो सिर्फ दो घंटे थे और इन्हीं दो घंटों में वह लंका से द्रोणागिरी पर्वत आए और वापस गए।
अब अगर हम उनके द्वारा तय की गई दूरी को देखें तो श्रीलंका और द्रोणागिरी पर्वत तक की दूरी लगभग “ 2500 किलोमीटर” की है यानी कि यह दूरी आने जाने दोनों तरफ की मिलाकर 5000 किलोमीटर बैठती है और बजरंगबली ने यही 5000 किलोमीटर की दूरी 2 घंटे में तय की। इस हिसाब से हनुमान जी के उड़ने की रफ्तार लगभग 2500 किलोमीटर प्रति घंटा की दर से निकलती है. तो इसकी तुलना अगर ध्वनी की रफ्तार से करें तो उसकी तुलना में हनुमानजी की गति लगभग 2 गुना ज्यादा बैठती है।
आधुनिक भारत के पास मौजूद रसिया से मंगवाए गए लड़ाकू विमान मिग 29 की रफ्तार 2400 किलोमीटर प्रति घंटा है. अगर इसकी तुलना हनुमान जी की रफ्तार से करें तो यहां पर भी हनुमान जी की रफ्तार ज्यादा निकलती है यानी हनुमान जी आधुनिक भारत के पास मौजूद सबसे तेज लड़ाकू विमान से भी तेज उड़ते थे।
!!जय सियाराम!!