वनाधिकार कानून की आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के समय केन्द्र सरकार के वकील नदारद
आदिवासी वनवासी महासभा समेत कई संगठनों को आदिवासियों व परम्परागत वन निवासियों का पक्ष रखने की अनुमति कोर्ट ने प्रदान की
26 नवम्बर को होगी सुनवाई
सोनभद्र।स्वराज अभियान के नेता व सुप्रीम कोर्ट में वादी दिनकर कपूर ने बताया कि वनाधिकार कानून की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका में सुप्रीम कोर्ट ने विगत 13 फरवरी को आदिवासियों और परम्परागत वन निवासियों की बेदखली का आदेश किया था। जिसके विरूद्ध देश व्यापी आंदोलन के बाद सरकार को मजबूर हो कर कोर्ट में इस पर पुनर्विचार के लिए जाना पडा था। और भारी जन दबाव में कोर्ट ने बेदखली आदेश पर 28 फरवरी को रोक लगाई थी। उस समय भी कोर्ट ने सरकार के वकील को फटकार लगाते हुए कहा था कि आपने आदिवासियों और परम्परागत वन निवासियों का पक्ष क्यों नहीं रखा। कोर्ट ने यह भी कहा कि केन्द्र व राज्य सरकारों को वनाधिकार कानून में दाखिल दावों के निस्तारण में अपनाई प्रकि्या के बारें में विस्तृत रिपोर्ट रखे। यह भी बताएं कि उसने खारिज किए दावों के दावेदार को कारण सहित सूचित किया है कि नहीं। यह बात सुप्रीम कोर्ट में बताने के लिए आज सरकार के वकील को मौजूद रहना था पर वह कोर्ट में आए ही नहीं।
दरअसल देश की कारपोरेट लाबी शुरू से ही वनाधिकार कानून का विरोध कर रही है। आमतौर पर राज्यों में इसे लागू ही नही किया गया। उ0 प्0 में ही तत्कालीन बसपा सरकार ने जमा 92433 दावों में 73416 दावें बिना सुनवाई और दावेदारों को सूचित किए खारिज कर दिए गए थे। इसके खिलाफ दो बार आदिवासी वनवासी महासभा हाईकोर्ट गयी और दाखिल जनहित याचिकाओं में हाईकोर्ट ने पुनर्सुनवाई का आदेश दिया। पर सपा सरकार से लेकर मौजूदा योगी सरकार ने इसे लागू नहीं किया। वर्तमान स्थिति यह है कि हाईकोर्ट के आदेश के अनुरूप वनाधिकार में दाखिल दावों का निस्तारण करने की जगह प्रशासन इसे विफल करने में लगा है। दावेदारों को सूचित करने की फर्जी रिपोर्ट लगाई जा रही है। बेदखली की जा रही है, मुकदमे कायम कर उत्पीड़न किया जा रहा है।
इसके खिलाफ सोनभद्र, मिर्जापुर और चंदौली में जमीनीस्तर से लेकर अदालत तक संघर्ष जारी है। 26 सितम्बर को राबर्ट्सगंज में मजदूर किसान मंच द्वारा आयोजित सम्मेलन में इस सवाल को मजबूती से उठाया जायेगा।
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