हाईकोर्ट के आदेश के अनुरूप वनाधिकार कानून लागू हो धांगर को मिले एससी प्रमाण पत्र, गुण्डा एक्ट की हो वापसी

जिला प्रशासन से मिला स्वराज अभियान का प्रतिनिधिमण्ड़ल
सोनभद्र 26 अगस्त 2019। वनाधिकार कानून के तहत जमीन पर अधिकार के लिए हाईकोर्ट के आदेश के अनुरूप कार्यवाही कर दाखिल दावों का निस्तारण करने और जब तक निस्तारण न हो तब तक बेदखली पर रोक लगाने, हाईकोर्ट के आदेष के तहत धांगर के एससी प्रमाण पत्र को तत्काल जारी करने और आदिवासी वनवासी महासभा के नेता राजेन्द्र प्रसाद गोंड़ व कृपाषंकर पनिका को दी गयी गुण्ड़ा एक्ट की नोटिस को निरस्त करने की मांग पर आज जिला प्रषासन से स्वराज अभियान के प्रतिनिधिमण्ड़ल ने मुलाकात की। प्रतिनिधिमण्ड़ल ने डीएम की अनुपस्थिति में एडीएम और एसडीएम मुख्यालय को डीएम को सम्बोधित पत्रक दिया। प्रतिनिधिमण्ड़ल में स्वराज इंडिया नेता दिनकर कपूर, पूर्व जिला पंचायत सदस्य मुन्ना धांगर, युवा मंच संयोजक राजेष सचान, स्वराज अभियान के जिला संयोजक कांता कोल, आदिवासी वनवासी महासभा के बीरबल धांगर, धांगर महासभा के अध्यक्ष रामाधार धांगर, मजदूर किसान मंच के सचिव राजेन्द्र सिंह गोंड़, कृपाषंकर पनिका, अमर सिंह गोंड़, आदिवासी जागरूकता मंच के जीतेन्द्र धांगर आदि लोग रहे।
डीएम को सम्बोधित ज्ञापन में कहा गया कि उभ्भा नरसंहार के बाद भी जमीन के सवाल को हल करने के प्रति शासन प्रषासन गम्भीर नहीं है। वनाधिकार कानून के तहत दाखिल दावों की पुर्नसुनवाई करने के हाईकोर्ट के आदेष की जिले में पूर्णतया अवहेलना की जा रही है। दावों के विधिक निस्तारण और दावाकर्ता को संसूचित करने की जगह तहसील प्रषासन असत्य और मनगढ़ंत सूचनाएं शासनस्तर पर भेज रहा है। सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट द्वारा बेदखली पर रोक के बावजूद आदिवासियों व वनाश्रितों का उत्पीड़न किया जा रहा है। इस पर रोक लगाने के साथ ही डीएम से वनाधिकार कानून में दाखिल दावों के निस्तारण व पुष्तैनी कब्जा वाली वन भूमि पर आदिवासियों व वनाश्रितों को अधिकार देने की मांग की गयी है। इसी प्रकार सोनभद्र जनपद में ही मूलतः रहने वाली धांगर जाति को एससी का जाति प्रमाण पत्र जारी करने के आषय का इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आदेष दिया लेकिन इसे भी लागू करने में हीलाहवाली शासन व प्रषासनस्तर पर की जा रही है। पत्रक में कहा गया कि उभ्भा नरसंहार में प्रषासन को स्वीकार करना पड़ना कि पीड़ितों पर लगाया गया गुण्ड़ा एक्ट गलत था और उसे वापस लेना पड़ा। इसी तरह का मामला लिलासी भूुमि आंदोलन में राजेन्द्र प्रसाद गोंड़ व कृपाषंकर पनिका का भी है उन्हें भी फर्जी तरीके से इस मामले में फंसाया गया और बाद में इसी आधार पर गुण्ड़ा एक्ट की नोटिस दी गयी। उत्पीड़न की यह कार्यवाही विधि के प्रतिकूल है और लोकतंत्र के लिए अषुभ है। इसलिए गुण्ड़ा एक्ट की नोटिस वापस लेने की मांग की गयी।

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