शक्तिनगर सोनभद्र।
आज शुक्रवार को खड़िया बाजार स्थित श्री मनोकामना सिद्ध हनुमान मंदिर प्रांगण में संचालित ऊर्जान्चल वैदिक गुरुकुलं का स्थापना दिवस समारोह मनाया गया। वैदिक शास्त्र एंटीवायरस की तरह हैं, जो मन से दूषित भावों व तत्त्वों दूर करके मन को शोधित करता है। जैसे कम्प्यूटर में वायरस आने पर कम्प्यूटर ठीक से कार्य करना बंद कर देता है, ठीक वैसे ही नाना प्रकार को इच्छाएं जब मन मे जब में उत्पन्न होती हैं तब व्यक्ति विवेक शून्य होकर दिग्भ्रमित हो जाता है। ऐसी परिस्थिति में वैदिक शास्त्रों के अध्ययन से मन के विकार दूर होते हैं और व्यक्ति जीवन के यथार्थ तत्व की तरफ अग्रसर होता है। उक्त बातें मुख्य अतिथि के रूप में आये एनटीपीसी में विजिलेंस अधिकारी के रूप में कार्यरत श्री संजय पाण्डेय ने कही। पाण्डेय जी ने बताया कि वैदिक शिक्षा सात्विक शिक्षा है, इसके अध्ययन से मन में विकार उत्पन्न नहीं होते। उन्होंने छात्रों को बताया कि शास्त्रों को समझने व अध्ययन में रुचि के लिए सतत अभ्यास के द्वारा मन को नियंत्रित करना चाहिए। बिना मन पर नियंत्रण किये अध्य्यन में सफलता नहीं प्राप्त हो सकती। शिक्षा को बोझ की तरह नहीं अपितु साधना की तरह अध्ययन करना चाहिए, जब साधना के रूप में अध्ययन करेंगे तो अल्प परिश्रम में ही ज्ञान प्राप्त हो जाएगा। मन एकाग्र करने के लिए कीर्तन करने के साथ संगीत का प्रशिक्षण भी प्रारम्भ करने की बात कही।
सम्मानित अतिथि के रूप में डॉ. शत्रुघ्न पांडेय ने बताया कि वैदिक शिक्षा के द्वारा ही स्वयं का , परिवार का व समाज का कल्याण हो सकता है। प्राचीन काल में वैदिक शिक्षा का बहुत बड़ा विस्तार था, किन्ही कारणों से मध्यकाल में वैदिक शिक्षा के प्रति उदासीनता हुई, किंतु ग्लोबलाइजेशन के दौर में एक बार फिर से वैदिक शिक्षा ही समूचे विश्व का प्रतिनिधित्त्व करेगी
प्रस्तवना के रूप में गुरुकुलं के प्रबंधक डॉ. मुनीश मिश्र ने बताया कि इस गुरुकुलं मे प्राचीन परंपरा के अनुरूप ही छात्रों को वैदिक शिक्षा प्रदान की जाती है तथा अंग्रेजी, कम्प्यूटर आदि के शिक्षण द्वारा इन्हें आधुनिक युग के अनुरूप सक्षम बनाया जाएगा। कोट पैंट पहनकर अंग्रेजी बोलने में महत्ता नही है, अपितु धोती, कुर्ता, माथे पर त्रिपुण्ड लगाकर अंग्रेजी बोलने में हैं। साथ ही साथ गुरुकुल के उद्देश्य व भविष्य की योजनाओं की रूपरेखा भी प्रस्तुत की।
विशिष्ट अतिथि के रूप में आमंत्रित ग्राम प्रधान राजाराम गुप्ता जी ने संस्कृत शिक्षा को राष्ट्र की आत्मा बताया और कहा कि संस्कृत भाषा में ही संस्कृति व संस्कार निहित हैं, जो कि भारत देश की विशिष्ट पहचान है। अतः संस्कृत का प्रचार प्रसार करने की आवश्यकता है। गुरुकुलं के विकास के लिए खुद हर संभव मदद करने के साथ ही सभी ग्रामवासियों से भी सहयोग करने की अपील की।
अतिथियों के द्वारा नवीन छात्रों को पाठ्य पुस्तक, वस्त्र, संध्या सामग्री, नित्य प्रयोग सामग्री वितरित की गई। मुख्य अतिथि पांडेय जी ने स्वयं अपनी तरफ से सभी बच्चों को डॉक्यूमेंट फ़ाइल उपहार स्वरूप किया।
गुरुकुलं के संरक्षक स्वामी सत्यदेव दास जी ने आशीर्वचन के रूप कहा कि गुरु से ज्ञान वही प्राप्त करता है जिसमें श्रद्धा व विश्वास होता है, इसलिए पूरे समर्पण भाव से गुरु के द्वारा पढ़ाये गए विषयों का अधिगम करना चाहिए। गुरुकुलं के अध्यक्ष श्री अजीत तिवारी ने गुरुकुल के प्रचार प्रसार व अधिक से अधिक लोगों को गुरुकुल से जुड़ने के लिए आमंत्रित किया।
उपाध्यक्ष श्री विजय कुमार दुबे जी ने तुलसी के पौधों के द्वारा अतिथियों का स्वागत किया, धन्यवाद ज्ञापन श्री अमरेश चंद मिश्र ने किया। उक्त अवसर पर व्यवस्था प्रमुख श्री अमरेश पांडेय, ज्ञानचंद गर्ग, सत्यनारायन बंसल, दुर्गा प्रसाद मिश्र, बजरंग बंसल, अमरजीत, प्रदीप लाड, रमापति पटेल, विनोद मित्तल आदि उपस्थित रहे।