घोरावल/सोनभद्र(अनुराग पांडेय)17 जुलाई को घोरावल कोतवाली इलाके के उम्भा गांव में हुए नर संघार में 10 लोगो की मौत और 24 लोगो के घायल होने के बाद भी जिला प्रशासन अब भी लापरवाही बरतने में कोई कोर कसर नही रख रखा है।घायलों के ईलाज के लिए स्थानीय स्तर पर उभ्भा गांव में कोई टीम नही होने से ग्रामीणों में आक्रोश बना रहा।शुक्रवार को घायलों को केवल मरहम पट्टी किये जाने से सैकड़ों महिलाओं समेत अन्य लोगो मे प्रशासन के प्रति आक्रोश व्याप्त हो गया।
गोली के छर्रे से घायल रामधनी पुत्र तेजा सिंह ने बताया कि मौके पर केवल मरहम पट्टी कर छोड़ दिया गया है, जबकि शरीर पर स्पष्ट गोली के छर्रे दिखाई दे रहे थे।गांव में मौके पर कम से कम एक डॉक्टर की नियुक्त होनी चाहिए थी।अपने घर उभ्भा गांव में रामधनी पुत्र तेजा सिंह,सीता देवी पत्नी तेजासिंह व रामधनी घायल दशा में मरहम पट्टी करवाकर डॉक्टर की राह देखते लेटे रहे।प्रशासन ने तो संवेदनशीलता की सारी हदें पार कर दीं।समाचार लिखे जाने तक चिकित्सकों की कोई टीम मौके पर नही पहुच सकी थी।
आज उभ्भा गांव में जाने से सपाईयों व कांग्रेसियों को सड़क पर रोक दिया गया।सुरक्षा व्यवस्था व ऊपर के आदेश का हवाला देते हुए मौके मौजूद पुलिस प्रशासन ने रोक दिया था।जिसके बाद रमेश चंद्र दुबे पूर्व विधायक,अविनाश कुशवाहा के नेतृत्व में सपा कार्यकर्ता सड़क पर बैठ योगी सरकार से त्याग पत्र देने के नारे लगाए।किसी तरह से करीब आधे घण्टे चली बहस में सपाई वापस हो गए।हालांकि पुलिस काफी सख्त दिखी।नेताओं ने आरोप लगाया कि सरकार मनमानी कर रही है।ग्रामीणों से मिलने नही दिया जा रहा है।यहाँ की जनता के साथ किये गए वादे भी पूरे नही किये गए।
प्रियंका गांधी के गांव में आने से रोकने के बाद मामले की जानकारी के बाद ग्रामीण महिलाओं में आक्रोश व्याप्त हो गया।उनका कहना था कि सरकार उनकी नही सुन रही है।क्षेत्र के घुआस गांव में सन 1980 के समय तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी आयी थी।आज उनकी नतिनी को क्यों पुलिस ने रोक दिया।शायद वे आती तो समस्याओं का समाधान हो सक
ता था।उनका आरोप था कि उनकी आवाज को दबा दिया जा रहा है।
सिटी बजाने के भड़के ग्रामीण,
उभ्भा गांव में जहाँ हजारों की भीड़ में एक इंस्पेक्टर के सिटी बजाकर गांव के बाहर के व्यक्तियों को गांव के बाहर जाने की बात पर ग्रामीण भड़क उठे।गुस्साए ग्रामीणों ने पुलिस मुर्दाबाद के नारे लगाने लगे।आक्रोशित भीड़ आधे घण्टे के लिए पूरी तरह से अशांत हो गयी।महिलाये खुलकर सामने आकर सरकार को कोसने लगीं।वहीं ग्रामीण पीड़ितों के आवाज को दबाने की बात कहने लगे।
सामूहिक नरसंहार में मृतक परिजनों को राहत की घोषणा तो हुई लेकिन राहत राशि बाटने को गांव में कोई तीसरे दिन भी नही पहुचा।यहां तक कि सत्ता पक्ष का कोई नेता नही पहुचा जिसकी वजह से ग्रामीणों में भारी आक्रोश व्याप्त रहा।उन्हें लगा जो लोग उनका दुख दर्द बाटने गांव में जाना चाहता है उसे पुलिस के लोग कड़ाई से रोक दे रही है।ग्रामीणों का कहना था कि उनको मृतक परिजनों को जमीन और मुआवजा के अलावा पीड़ित परिवार से एक लोग की नौकरी का ठोस कार्यवाही चाहिए,केवल शब्दों के खेल वाले कोरे अस्वासन से काम नही चलेगा।
पूरा गांव पुलिस छावनी में तब्दील रहा।गांव के चप्पे चप्पे पर पुलिस व पीएसी के जवान तैनात थे।जो बाहरी आने जाने वाले लोगों को रोकते रहे।ग्रामीणों का आरोप था कि गांव में उनके रिश्तेदारों को भी नही आने दिया जा रहा।जबकि ऐसे समय में स्वभाविक रूप से रिस्तेदारों का आना जाना लगा रहता है।