दिल्ली विश्वविद्यालय में दाखिले के नए पात्रता मानदंडों को चुनौती देने वाली याचिका पर दिल्ली उच्च न्यायालय ने विश्वविद्यालय से जवाब मांगा। न्यायालय ने डीयू से प्रश्न किया कि क्यों विश्वविद्यालय ने रजिस्ट्रेशन को शुरू करने से महज एक दिन पहले प्रवेश के लिए अपने मानदंडों में संशोधन किया। न्यायाधीश अनु मल्होत्रा और न्यायाधीश तलवंत सिंह की खंडपीठ ने पाया कि प्रवेश के लिए पंजीकरण खोलने से एक दिन पहले मानदंड में संशोधन करने में मनमानी रही।
अदालत ने केंद्र सरकार, दिल्ली विश्वविद्यालय और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से कहा कि वह स्नातक पाठ्यक्रमों के लिए डीयू के नए प्रवेश मानदंडों को चुनौती देने वाले वकील चरणपाल सिंह बागड़ी की याचिका पर जवाब दाखिल करें। अदालत ने मामले को 14 जून को आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया। याचिकाकर्ता वकील ने कहा कि अंतिम समय में मानदंड में संशोधन करने का डीयू का निर्णय प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का उल्लंघन है।
उन्होंने संशोधित पात्रता मानदंड को रद्द करने की मांग की है। उन्होंने अदालत से अनुरोध किया कि डीयू में स्नातक कोर्स 2019-20 के लिए पुराने पात्रता मानदंड के अनुसार प्रवेश जारी रखा जाए। उन्होंने संशोधित पात्रता मानदंड को भेदभावपूर्ण और मनमाना करार देते हुए इसे रद्द करने की भी मांग की। डीयू में दाखिले के लिए पंजीकरण 30 मई को शुरू हुआ और यह 14 जून को बंद होगा।
अपनी याचिका में बागड़ी ने अदालत से यह भी निर्देश देने का अनुरोध किया कि यदि किसी भी स्नातक या अन्य पाठ्यक्रमों के लिए प्रचलित प्रवेश मानदंड में मामूली बदलाव से जुड़ा कोई भी प्रस्ताव हो, तो कम से कम एक साल पहले जनता को नोटिस के माध्यम से इस बाबत सूचित किया जाए।