धर्म डेस्क।अगर आपके जीवन में बार-बार बाधाएं या असफलता आ रही हो तो इस काम को एक बार जरूर कर लें। इसके बाद सात समंदर पार से भी कोई बाधा आपका कुछ नहीं बिगाड़ पायेगी, और जब सफलता भरपूर मिलने लगे तो ईश्वर से शांत और धैर्य के साथ स्थाई बनी रहे ऐसी प्रार्थना भी करते रहना चाहिए।आमतौर पर लोगों को जब भी सफलता मिलती है तो वे इसका शोर मचाते हैं, सभी बताते हैं कि वे सफल हो गए हैं। जबकि सफलता मिलने पर कुछ देर शांत हो जाना चाहिए। सुंदरकांड में हनुमानजी ने हमें बताया है कि सफल होने पर कुछ देर के लिए शांत हो जाना चाहिए। अगर हमारी सफलता की कहानी कोई दूसरा बयान करेगा तो कामयाबी और बढ़ी हो जाती है।
सुंदरकांड में उल्लेख आता है कि अनेक बाधाओं को चिरते हुए लंका पहुंचकर हनुमानजी ने माता सीता को भगवान श्रीराम का संदेश दिया, लंका दहन किया। ये दोनों काम करने के बाद हनुमानजी श्रीराम के पास लौट आए, ये उनकी सफलता की चरम सीमा थी। वे चाहते तो अपने इस काम को खुद ही श्रीरामजी के सामने बयान कर सकते थे, लेकिन हनुमानजी जो करके आए, उसकी गाथा श्रीराम जी को जामवंत जी ने सुनाई थी।
तुलसीदासजी ने लिखा है कि-
नाथ पवनसुत कीन्हि जो करनी। सहसहुं मुख न जाइ सो बरनी।।
पवनतनय के चरित्र सुहाए। जामवंत रघुपतिहि सुनाए।।
जामवंत श्रीराम से कहते हैं कि- हे नाथ, पवनपुत्र हनुमान ने जो काम किया है, उसका हजार मुखों से भी वर्णन नहीं किया जा सकता। तब जामवंत ने हनुमानजी के सुंदर चरित्र (कार्य) की गाथा श्री रघुनाथ जी को सुनाई।