हेल्थ डेस्क।इन दिनों ब्राउन राइस की बड़ी चर्चा है। हर कोई ब्राउन राइस खाने की ही सलाह देता दिख रहा है। कई स्टडीज में भी यह साबित हुआ है कि व्हाइट राइस की तुलना मेंब्राउन राइस सेहत के लिए बेहतर है।
आखिर यह ब्राउन राइस है क्या?
दरअसल, हम आमतौर पर जो चावल खाते हैं यानी व्हाइट राइस, उसी का बगैर रिफाइन्ड रूप है ब्राउन राइस।
ब्राउन राइस को हेल्दी क्यों माना जाता है?
इसकी सबसे बड़ी वजह है इसमें पाई जाने वाली परतें। चावल में मूलत: तीन परतें होती हैं – ब्रान, जर्म और एंडोस्पर्म। ब्रान और जर्म में प्रोटीन, फाइबर्स और आयरन भरपूर होता है। एंडोस्पर्म में ज्यादातर कार्बोहाइड्रेट होते हैं। लेकिन जब चावल को रिफाइन्ड किया जाता है तोउसकी ब्रान और जर्म दोनों परतें हट जाती हैं। इस तरह व्हाइट राइस में केवल कार्बोहाइड्रेट ही रह जाते हैं और इसलिए यह चावल सेहत के लिए नुकसानदायक बन जाता है। चूंकि ब्राउन राइस में ये तीनों परतें मौजूद होती हैं। इसलिए इसमें कार्बोहाइड्रेट के साथ-साथ प्रोटीन, फाइबर्स और अन्य पोषक तत्व भी होते हैं जिस वजह से ब्राउन राइस, सफेद चावल की तुलना में फायदेमंद बन जाता है।
डाइट एंड वेलनेस एक्सपर्ट डॉ. शिखा शर्मा बता रहीं हैं कि ब्राउन राइस में कौन-से तत्व ऐसे होते हैं जो व्हाइट राइस की तुलना में हमारे लिए ज्यादा फायदेमंद हैं।
अपेक्षाकृत ज्यादा फाइबर – यानी मोटे लोग खाएं तो चिंता की बात नहीं
व्हाइट राइस की तुलना में ब्राउन राइस में फाइबर्स ज्यादा होते हैं। प्रति 100 ग्राम ब्राउन राइस में फाइबर्स की मात्रा करीब 2 ग्राम होती है, जबकि व्हाइट राइस में एक ग्राम से भी कम। ब्राउन राइस में फाइबर्स ज्यादा होने से इन्हें खाने पर सेटिस्फैक्शन ज्यादा मिलता है और पेट भी ज्यादा देर तक भरा रहता है। इसलिए मोटापे से ग्रस्त लोग भी बगैर किसी ज्यादा जिंता के ब्राउन राइस खा सकते हैं।
कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स – यानी डायबिटीज के मरीजों के लिए भी खाने योग्य
जिन फूड का ग्लाइसेमिक इंडेक्स और ग्लाइसेमिक लोड कम होता है, वे ब्लड में ग्लूकोज़ के लेवल को बैलेंस रखते हैं और इस तरह इन्हें डायबिटीज के मरीज भी खाएं तो कोई हर्ज नहीं होता। व्हाइट राइस की तुलना में ब्राउन राइस का भी ग्लाइसेमिक इंडेक्स काफी कम होता है। इसलिए यह डायबिटीज के मरीजों के लिए भी उपयुक्त है।
आयरन से भरपूर – यानी एनिमिक लोगों के लिए ज्यादा फायदेमंद
हमें रोजाना आयरन की जितनी मात्रा चाहिए, प्रति 100 ग्राम ब्राउन राइस खाने पर उससे करीब 5 फीसदी आयरन मिल जाएगा। अगर इतना ही केवल व्हाइट राइस यानी पारंपरिक चावल खाएंगे तो हमें आयरन मिलेगा केवल 1 फीसदी। इस तथ्य से अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह आयरन के मामले में व्हाइट राइस से कितना ज्यादा बेहतर है। इस वजह से एनिमिक लोगों को अक्सर ब्राउन राइस खाने की सलाह दी जाती है।
सूक्ष्म पोषक तत्वों से भरपूर यानी रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में मददगार
व्हाइट राइस की तुलना में ब्राउन राइस में कई तरह के सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे जिंक और सेलेनियम भी भरपूर मात्रा में होते हैं। ये सूक्ष्म पोषक तत्व हमारी रोग-प्रतिरोधक प्रणाली (इम्युन सिस्टम) को स्वस्थ रखने के लिए जरूरी होते हैं। यह इम्युन सिस्टम हमें कई तरह की बीमारियों से बचाता है। जिंक और सेलेनियम दोनों में ही एंटीऑक्सीडेट एम्जाइम्स भी होते हैं जो मानव शरीर की सामान्य फंक्शनिंग के लिए बहुत आवश्यक हैं।
नकारात्मक पहलू
व्हाइट राइस की तुलना में ब्राउन राइस के दो नकारात्मक पहलू भी हैं। एक, स्वाद में कमजोर रहना और दूसरा, इसकी उपलब्धता कम होना व अपेक्षाकृत महंगा मिलना। व्हाइट राइस जहां खिला-खिला बनता है, वहीं ब्राउन राइस थोड़ा चिपचिपेदार बनता है। यही वजह है कि पुलाव या बिरयानी में ब्राउन राइस का इस्तेमाल करने में दिक्कत होती है और स्वाद में भी फर्क आ जाता है। जहां तक महंगाई का सवाल है, ब्राउन राइस पर ज्यादा खर्च करना बेहतर है या दवाओं पर? और फिर यह अच्छा नहीं होगा कि कम खाएं, लेकिन बेहतर खाएं।