प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ही 200 से अधिक रैलियां हो चुकी हैं। क्या मोदी फिर से सत्ता में लौटेंगे ?
दिल्ली। सवा सौ करोड़ की आबादी वाले दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में एक करोड़ मतदान केंद्रों पर नब्बे करोड़ मतदाताओं के बल पर 542लोकसभा सीट्स के लिए चुनाव लड़ने वाली 464 राजनीतिक पार्टियां और महीने भर से भी ज्यादा लम्बा चला चुनावी प्रचार यह सारी खास बातें हैं भारत में चल रहे 17वें लोकसभा चुनाव की किसकी होगी सरकार इबीएम में कैद जनता की मूड ही 23 मई को बताएगी। बताते चले कि विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक उत्सव का अंतिम चरण पूर्ण हो चूका है।
निर्वाचन आयोग द्वारा जारी सूचनाओं के अनुसार लोकसभा सामान्य निर्वाचन 2019 के चुनाव में देश सात चरणों में चला 2019 का चुनाव रविवार 19 मई को ख़त्म हो गया है।उसके बाद एबीएम से संबंधित भांति भांति के चर्चाओं के ध्यान में रखते हुये देश भर में यही चर्चा पूरे उफ़ान पर है कि कौन सी पार्टी सत्ता में आएगी?कौन सी पार्टी की वजूद खत्म नजर आयेगी और कौन सी राजनैतिक दल किसको समर्थन करेगा। न्यूज रुम में बैठे सफ़ेद बालों वाले वरिष्ठ पत्रकारों से लेकर नुक्कड़ पर चाय पी रहे कमोवेश मतदाता ,कॉलेज के छात्रों ,श्रम संगठनो ,बुद्धिजीवियों,समाज सेवी,व्यपारियो,एवं महिला नेत्रियों तक हर कोई देश के राजनीतिक भविष्य के बारे में बात कर रहा है। विभिन्न राजनीतिक दलों ने कुल मिलाकर 3000 से भी अधिक रैलियों के जरिए भारत के चप्पे-चप्पे तक पहुँचने की कोशिश की है। अकेले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ही 200 से अधिक रैलियां हो चुकी हैं। क्या मोदी फिर से सत्ता में लौटेंगे ? क्या 2014 में पूर्ण बहुमत से सत्ता में आई हुई भारतीय जनता पार्टी इस बार भी बहुमत हासिल करेगी ? हर कोई अपना-अपना अनुमान लगाने में लगा हुआ है। भारतीय जनता और मतदाता अब अधिक सजग एवं समझदार हो गए हैं। केवल सुने-सुनाए आंकड़ों पर विश्वास रखने की बजाय अब वे खुद अपने निजी अनुभव और तुलनात्मक राजनीतिक दृष्टी से चुनाव परिणामों के अनुमान लगा रहे हैं। ऐसे ही मतदाताओं के लिए हम लाए हैं चुनाव का “प्रेडिक्शन मैप” जिस में आप खुद अपना अनुमान लगाते हुए यह देख सकते हैं कि सत्रहवें लोकसभा चुनाव के परिणाम क्या हो सकते है?
भारत में हर राज्य और हर लोकसभा सीट के लिए अलग-अलग मुद्दों पर चुनाव लड़े जाते हैं। इसलिए देश के कुछ चुनिंदा लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों का अपवाद छोड़ें तो कई जगहों पर ‘वोट स्विंग’ होते हुए देखे जाते हैं। खास कर भारतीय जनता पार्टी के साथ यह कई बार देखा गया है। यदि 2009 और 2014 के चुनाव परिणामों पर नज़र डाली जाए तो मालूम होगा कि इन दो चुनावों में भारतीय जनता पार्टी के मतों में दस प्रतिशत (10%) का इजाफ़ा हुआ है। यह “स्विंग” या अस्थिरता 543 में से 209 सीट्स पर देखी जा रही है। इस में से ज्यादातर “वोट-स्विंग” ये उत्तर प्रदेश (64/70 सीट्स), महाराष्ट्र (20/47 सीट्स), राजस्थान (19/25 सीट्स), पश्चिम बंगाल (21/42), गुजरात (16/26) और मध्यप्रदेश (17/27 सीट्स) इन राज्यों में देखे गए हैं। 209 में से 157 सीट्स तो इन्हीं छह राज्यों में हैं। साथ ही उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और पश्चिम बंगाल की कुछ सीटों पर भाजपा को मिले हुए वोट्स में पंद्रह प्रतिशत (15 %) से भी अधिक इजाफ़ा देखा गया है।यदि 2019 के चुनाव परिणामों पर नज़र डाली जाए तो मालूम होगा कि इस बार के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के मतों में में 5 प्रतिशत की गिरावट आई है। वही कांग्रेस की बढ़ोत्तरी साफ नजर आ रही है।वही कुछ राज्यो में 10 से 15 प्रतिशत का इजाफा हुआ है।
चुनाव के परिणाम 23 मई तक आ ही जाएँगे, मगर इस विषय में कोई भी सटीक भविष्यवाणी करने से पहले कुछ मुद्दों पर विचार करना जरुरी है । जैसे मीडिया रिपोर्ट्स द्वारा बताया जा रहा है – क्या मोदी लहर अब भी इतनी मजबूत है जिसके चलते बीजेपी अपने वोट शेयर को बनाए रखेगी या बढ़ा पाएगी? क्या मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात में भाजपा फिर से अपनी मजबूत पकड़ बना पाएगी ? क्या ओड़िशा और पश्चिम बंगाल में मतदाताओं का झुकाव भाजपा की ओर बढेगा ?
“वोट-स्विंग” का अनुमान लगाते हुए इन सभी कारकों का ध्यान रखना जरुरी होगा। ठोस जबाब जल्द ही मिलने को हैं पर तब तक आप भी लगाइए अनुमान और देखिए क्या हो सकता है देश का राजनीतिक भविष्य।