लखनऊ।भारतीय नागरिक परिषद् के तत्वावधान में आज 1857 की महान क्रान्ति पर आयोजित विचार गोष्ठी में अमर शहीदों का स्मरण कर उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित किये गये। उल्लेखनीय है कि 10 मई 1857 को ब्रिटिश हुकूमत के विरोध में स्वातंत्र्य समर प्रारम्भ हुआ था।
विचार गोष्ठी के मुख्य वक्ता ऑल इण्डिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन के चेयरमैन शैलेन्द्र दुबे ने कहा कि 1857 की क्रान्ति किसी उत्तेजना से उत्पन्न आन्दोलन नहीं अपितु विश्व की एक महान आश्चर्यजनक, अत्यन्त प्रभावी तथा परिवर्तनकारी घटना थी। इसने न केवल ब्रिटिश साम्राज्यवाद तथा उपनिवेशवाद की चूलों को हिलाकर रख दिया बल्कि यूरोप के प्रमुख राष्ट्रों में एक नवीन चेतना जागृत की। यह क्रान्ति ध्वन्सात्मक तथा सृजनात्मक दोनो थी। इसके दूरगामी प्रभाव व परिणाम हुए। उन्होंने कहा कि निश्चय ही यह क्रान्ति कोई सिपाही विद्रोह नहीं था, न कोई धर्मान्धों द्वारा इसाईयों के विरूद्ध संघर्ष, न श्वेतों तथा कालों के बीच टकराव। यह कोई आकस्मिक घटना नहीं थी बल्कि एक पूर्व नियोजित महान प्रयास तथा विशाल अभियान था जिसे स्वतंत्रता संग्राम का शंखनाद माना जाता है। इस युद्ध के कई आयाम थे जिसके राजनीतिक और आर्थिक आयामों का तो मूल्यांकन होता रहा है किन्तु सांस्कृतिक आयाम प्रायः उपेक्षित रहा है जिस पर विचार मन्थन की जरूरत है।
वरिष्ठ अधिवक्ता रमाकान्त दुबे ने नाना साहब पेशवा, रानी लक्ष्मी बाई, तात्या टोपे, बेगम हजरतमहल और बहादुरशाह जफर के बलिदानों का स्मरण करते हुए महान क्रान्तिकारियों की चर्चा की।
भारतीय नागरिक परिषद के अध्यक्ष चन्द्र प्रकाश अग्निहोत्री व महामंत्री रीना त्रिपाठी ने क्रान्तिवीरों का स्मरण करते हुए कहा कि भला हो क्रान्तिवीर सावरकर का जिन्होंने 1857 के संग्राम को भारत का स्वतंत्रता संग्राम बताते हुए वार ऑफ इन्डिपेन्डेन्स – 1857 नामक पुस्तक लिख कर सम्पूर्ण विश्व को वास्तविकता से अवगत कराया।
विचार गोष्ठी में बड़ी संख्या में कर्मचारी, अधिकारी, शिक्षक, अधिवक्ता, बुद्धिजीवी व आम लोग सम्मिलित हुए