मां ज्वालामुखी देवी मंदिर के भूमि की नीलामी अवैध- माननीय उच्च न्यायालय

शक्तिनगर।मां ज्वालामुखी देवी मंदिर की भूमि पर ग्रामसभा चिल्का डाड का कोई अधिकार नहीं।

नीलाम किए गए धनराशि को सरकारी खाते से निकाल नहीं खाते में जमा कराने का आदेश।

माननीय उच्च न्यायालय के अग्रिम आदेश के बाद ही अब नीलाम की गई धनराशि को ग्राम सभा निकाल सकेगी।

शक्तिपीठ मां ज्वालामुखी मंदिर के भूमि की नीलामी राजस्व विभाग एवं ग्राम सभा की चिल्का डॉड द्वारा अवैध रूप से कराया जाता रहा है इस संबंध में मंदिर के प्राधिकृत पुजारी हेमंत मिश्र द्वारा अवैध नीलामी को रोके जाने के संबंध में जिलाधिकारी सोनभद्र एवं उपजिलाधिकारी दुद्धी को आपत्ति दाखिल किया गया था पर आपत्तियों को दरकिनार कर राजस्व विभाग एवं ग्राम सभा द्वारा मंदिर के भूमि को 1200000 ₹52000 में नीलाम कर दिया गया जिस पर मंदिर प्राधिकृत पुजारी द्वारा माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद में याचिका दायर की गई थी माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद में दायर की गई याचिका की सुनवाई दो जजों की न्याय पीठ( माननीय प्रदीप कुमार सिंह बघेल एवं माननीय पंकज भाटिया) नीतियों को संज्ञान में लिया और अपने आदेश दिनांक 1 अप्रैल 2019 में आदेशित किया कि प्लॉट नंबर 536 जो कि मां ज्वालामुखी देवी विराजमान के नाम राजस्व अभिलेख में दर्ज है मुकदमा संख्या 72 02 उत्तर प्रदेश राजस्व धारा 54 के तहत पारित आदेश में मां ज्वालामुखी देवी विराजमान दर्ज है उक्त भूमि पर ग्राम सभा का कोई अधिकार नहीं है और नीलामी की प्रक्रिया ही अवैध करार देते हुए एवं प्रतिवादी ग्राम सभा के विद्वान अधिवक्ता के तर्कों को खारिज करते हुए याचिकाकर्ता प्राधिकृत पुजारी के विद्वान अधिवक्ता देवर्षि कुमार राय तथ्यों से संतुष्ट होकर प्रथम दृष्टया यह माना है कि उक्त भूमि के नीलाम करने का अधिकार ग्राम सभा को नहीं है और तहसीलदार एवं राजस्व विभाग को आदेशित किया गया है कि नीलाम से प्राप्त की गई धनराशि को एक अलग खाता खोलकर उस में जमा कराया जाए माननीय उच्च न्यायालय के अग्रिम आदेश तक उक्त धनराशि की निकासी नहीं किया जा सकता है प्राधिकृत पुजारी याचिकाकर्ता द्वारा यह भी आरोप लगाया गया है कि राजस्व विभाग एवं ग्राम सभा द्वारा मंदिर की भूमि के साथ-साथ एनटीपीसी सिंगरौली परियोजना की अधिग्रहित भूमि की भी नीलामी कर अवैध वसूली कराई जाती है जिस पर रोक लगाई जानी चाहिए उन्होंने बताया कि ग्राम सभा द्वारा एवं राजस्व विभाग द्वारा मंदिर पर कोई भी व्यवस्था पूर्व में दर्शनार्थियों तीर्थ यात्रियों की सुविधा अर्थ नहीं कराई जाती है और नीलम की गई धनराशि की बंदरबांट होती है पूर्व में नीलाम किए गए धनराशि की भी वसूली माननीय न्यायालय के आदेश से कराया जाएगा उक्त धनराशि को मंदिर प्रांगण के विकास कार्यों में एवं धर्मार्थ खर्च किया जाएगा।

माननीय न्यायालय के आदेश के बाद मेला ठेका लेने वाले ठेकेदार अब वसूली करेंगे कि नहीं यह राजस्व विभाग एवं प्रतिवादी जिला प्रशासन क्या निर्देश देता है या देखने योग्य होगा ।

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