तमन्ना फरीदी
लखनऊ।राजनीतिक नशा जब चढ़ जाता है तो उससे मुक्त होना बहुत मुश्किल हो जाता हैनशा की लत पड़ जाए तो उससे मुक्त होना बहुत कठिन होता है चिकित्सकों ने विभिन्न नशों से मुक्ति का उपाय तो खोज लिया लेकिन राजनीतिक नशा जब चढ़ जाता है तो उससे मुक्त होना बहुत मुश्किल हो जाता है। भारत और पाकिस्तान के बीच जब तना-तनी चरम पर दिख रही है। कश्मीर में पुलवामा का बदला लेने के लिए भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के बालाकोट और पीओके में मुजफ्फराबाद व चिकोटी में मिराज विमानों से बम बरसाए, साढ़े तीन सौ आतंकियांे को मार गिराया।
इतना ही नहीं पाकिस्तान ने जब जवाबी हमले में एफ-16 विमानों को भारत की मिलेट्री बेस की तरफ रवाना किया तो उनका एक एफ-16 विमान भी मार गिराया। इस प्रयास में भारत का मिग विमान भी क्रैश हुआ, पायलट लापता था जिसको पाकिस्तान ने गिरफ्तार करने का दावा किया है। विंग कमांडर अभिनंदन को अंतरराष्ट्रीय दबाव मंे पाकिस्तान ने 1 मार्च को भारत को सौंपा। इसके बावजूद देश के जाने माने नेता राजनीति करने से बाज नहीं आ रहे थे। किसी एक दल की बात क्यों करें, सभी दलों का यही रवैया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राजस्थान के चुरू में वायुसेना के शौर्य प्रदर्शन के साथ राजस्थान की कांग्रेस सरकार पर जमकर तीर छोड़े तो गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में राजनीतिक कार्यक्रम में हिस्सा लिया। कांग्रेस अध्यक्ष राहुलगांधी असम में नागरिकता रजिस्टर का मुद्दा उठा रहे थे तो पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तो पुलवामा हमले के बहाने केन्द्र सरकार की मंशा पर ही सवाल उठाया। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मन से) के प्रमुख राजठाकरे सीआरपीएफ जवानों की शहादत को ‘राजनीतिक शिकार’ की संज्ञा दे चुके हैं। इस मामले में कांग्रेस की नव नियुक्त राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी की तारीफ जरूर करनी पड़ेगी कि पुलवामा हमले के बाद ही उनकी पहली प्रेस कांफ्रेंस होने वाली थी और भाजपा के कई नेता कांग्रेस में शामिल हो चुके थे। प्रियंका गांधी ने सक्रिय राजनीतिक जीवन की पहली प्रेस कांफ्रेंस को शहीदों को श्रद्धांजलि देने के बाद ही स्थगित कर दिया था।
सीआरपीएफ के जवानों-अफसरों की शहादत, सीमा पर जबर्दस्त गोलीबारी और इसके चलते तनाव के बावजूद हमारे देश के राजनेताओं पर सियासत का नशा उतरने का नाम नहीं ले रहा है।
विपक्ष के नेता जब कहते हैं कि केन्द्र सरकार पाकिस्तान के साथ तनाव का भी राजनीतिक इस्तेमाल कर रही हैं तो यह आरोप पूरी तरह झूठा भी नहीं कहा जा सकता। पुलवामा में हमले के बाद ही दिल्ली के इंडिया गेट के पास शौर्य स्मारक का लोकार्पण करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राहुल गांधी के परिवार को जमकर निशाने पर लिया था। यह उनकी राजनीतिक बाजीगरी ही कही जाएगी कि पाकिस्तान के खिलाफ तीन-तीन युद्ध जीतने वाली और पाकिस्तान के दो टुकड़े करने वाली सरकार को बिल्कुल निकम्मा साबित कर दिया। शौर्य स्मारक बनाने में 60 साल का समय लगने का दोषी केवल कांग्रेस सरकार को ठहराया जबकि कम से कम 15 वर्ष की सरकारें गैर कांग्रेसी रही थीं। इसके बाद जब पुलवामा हमले का बदला भारतीय वायु सेना ने लिया, उसी दिन राजस्थान के चुरू में श्री मोदी ने वहां की कांग्रेस सरकार को कठघरे में खड़ा किया और कहाकि पीएम किसान निधि और आयुष्मान जैसी योजनाओं को कांग्रेस की राज्य सरकार लागू नहीं कर रही है। इसी प्रकार विपक्ष का केन्द्रीय गृहमंत्री पर आरोप भी पूरी तरह निराधार नहीं है। वायुसेना की सर्जिकल स्ट्राइक के
बाद जिस वक्त देश के एक बड़े हिस्से में आकस्मिक सेवा के लिए हवाई सेवा रोक दी गयी थी और कई हवाई अड्डों को हाई अलर्ट कर दिया गया था, उसी समय गृहमंत्री राजनाथ सिंह का छत्तीसगढ़ के विलासपुर में एक राजनीतिक कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।
इस तरह के माहौल में प्रधानमंत्री
और गृहमंत्री का राजनीतिक मंचों पर सियासी भाषण देना उचित नहीं कहा जा सकता।
विपक्षीदलों ने 27 फरवरी को जब बैठक की तो एक साझा बयान में भाजपा पर इस तरह के आरोप भी लगाये गये। विपक्षी दलों ने सरकार को याद दिलाया कि इस समय जरूरत राजनीति की नहीं है बल्कि लापता भारतीय पायलट बिंग कमांडर अभिनंदन को सुरक्षित वापस लाने का तत्काल प्रयास किया जाना चाहिए। विपक्षी दलों की यह बैठक हालांकि न्यूनतम साझा कार्यक्रम तय करने के लिए बुलाई गयी थी। इसलिए विपक्ष को भी दूध का धुला नहीं कहा जा सकता कुछ विपक्षीदल और नेता तो ऐसी बातें करने लगे जो देशद्रोह जैसी लग रही थीं। जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने कहा कि कश्मीर में इसी तरह की कार्रवाई की गयी तो यहां कोई तिरंगा उठाने वाला भी नहीं मिलेगा। महबूबा मुफ्ती का आशय था कि कश्मीर में अलगाव वादी नेताओं की सुरक्षा और सुविधा क्यों वापस ली गयी, पत्थरबाजों पर सख्त कार्रवाई क्येां की जा रही है? पूर्व मुख्यमंत्री डा. फारूख अब्दुल्ला भी इसी तरह की भाषा बोलने लगे जबकि पुलवामा में सीआरपीएफ जवानों की बस से विस्फोटक भरी कार टकराने वाला दहशतगर्द पुलवामा का ही रहने वाला था। इसके बाद वहां अर्द्धसैन्य बलों ने तीन आतंकवादियों को मार गिराया। कई आतंकी बाद में भी मारे गये, पकड़े गये। उत्तर प्रदेश के सहारनपुर स्थित देवबंद से भी दो आतंकियों को गिरफ्तार किया गया। इस तरह देश के अंदर छिपे आतंकियों की धरपकड़ तेज हो गयी तो कश्मीर के कुछ नेता बौखला गये हैं। इसका कारण उनकी राजनीति है क्योंकि वे अराजक तत्वों के सहारे ही चुनाव जीतते हैं। महबूबा मुफ्ती के पिता स्वर्गीय सैयद मुफ्ती सईद ने तो मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते समय पाकिस्तान और आतंकवादियों को धन्यवाद दिया था। उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती से हम बेहतर अपेक्षा ही क्या कर सकते है।
तमन्ना फरीदी