@भीमकुमार
दुद्धी- रेनुकूट वन परिक्षेत्र के अंतर्गत 8 रेन्ज आते है जिसमे आदिवासियों के लघुवनोपज खरीदने के लिए वन विभाग द्वारा वन निगम को जिम्मेदारी दी जाती हैं लेकिन वन निगम इस पर ध्यान नहीं दे रहा है जिसके कारण आदिवासियों का लघुवनोपज क्रय नही हो पा रहा है ।ज्ञातव्य हो कि दुद्धी तहसील क्षेत्र में बहुतायत मात्रा में लघुवनोपज पैदा होता है लेकिन उसकी खरीददारी न होने से 75 प्रतिशत लघुवनोपज जंगलो में ही नष्ट हो जाते है और कोई भी आदिवासी इसमें रुचि नहीं लेता है। लघुवनोपज इस क्षेत्र के लिए आजीविका का साधन रहा है लेकिन बीच के कालखण्डों में सरकारों द्वारा आदिवासियों के रोजगार के प्रति ध्यान न देने के कारण वन विभाग व वन निगम की भी उदासीनता रही और कागजो तक ही सिमट कर रह गई जिससे आदिवासियों के रोजगार को धक्का लगा और लग भी रहा है।रेनुकूट वन रेंज के अंतर्गत 20 जगहों पर क्रय केन्द्र खोले जाने का विवरण कागज पर दिखाया गया है लेकिन एक भी जगह पर क्रय केन्द्र नही खुले हैं । लघुवनोपज में नागरमोथा, मरोड़फली,वनतुलसी, पलास फूल,पियार, हर्रा,जोगी हर्रा, बेलगूदा, निषोध, आँवला फूल, शंखपुष्पी, बहेड़ा,लासा, इन्द्र जौ, शतावर, निषोध सफेद, चिरौंजी,अश्वगंधा, घुमची आदि क्रय करने हेतु वन निगम को जिम्मेदारी दी गई हैं लेकिन वन निगम केवल कागजो तक ही सीमित है।किसी भी रेन्ज के रेंजर को नही पता है कि मेरे रेन्ज में किस स्थान पर क्रय केन्द्र खोला गया है।
उत्तरप्रदेश में क्यों होता है ,जंगलो की कटाई
वन विभाग व वन निगम की निष्क्रियता के कारण उत्तर प्रदेश में ज्यादा होती हैं जंगलों की कटाई ,इसका मुख्य कारण यह है कि यहाँ पर आदिवासी समाज के पास रोजगार के साधन नहीं है जिससे वे अपनी क्षुधा को शान्त करने के लिए वनों की कटाई कर उसे बेच कर अपने पेट की क्षुधा शान्त करते है और इस कारण जंगलों की कटाई ज्यादा होती हैं।यदि मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की तरह यहाँ पर भी लघुवनोपज की खरीदारी होती तो निश्चित रूप से यहाँ के आदिवासियों को रोजगार भी मिलता और जंगलो की कटाई भी नही होती। जंगलो की कटाई होने में वनविभाग व वन निगम दोनों ही जिम्मेदार हैं।भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता डीसीएफ चेयरमैन सुरेन्द्र अग्रहरि ने कहा कि लघुवनोपज इस क्षेत्र के आदिवासियों के लिए रोजगार के साधन थे लेकिन धीरे धीरे वनविभाग द्वारा इस पर ध्यान नहीं देने के कारण लघुवनोपज पैदा होने के बावजूद क्रय नही करने के कारण उनका रोजगार छीन सा गया और उनकी आजीविका के साधन भी उसी तरह पड़े रहे।यदि इस पर ध्यान दिया जाए तो आदिवासियों को उनका रोजगार के साधन भी मिल जाएंगे और जंगलो की कटाई भी नही होगी और वातावरण भी शुद्व रहेगा। डीसीएफ चेयरमैन ने जिलाधिकारी सोनभद्र से माँग किया है कि वन निगम द्वाराखोले गए क्रय केन्द्रों का सत्यापन कराये और अब तक कितने लोगों का लघुवनोपज क्रय किया गया है उसका भी जाँच किया जाए तब जाकर वास्तविकता का पता चलेगा।