जयपुर/नई दिल्ली (सुरेन्द्र स्वामी).देशभर में क्लिनिकल ट्रायल के दौरान होने वाले साइड इफेक्ट से चार साल में 1 हजार 443 लोगों की जानें जा चुकी हैं। यानी हर साल 350 लोगों की ट्रायल की वजह से मौत। यह आंकड़ा खुद केंद्र सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय की रिपोर्ट में सामने आया है।
चौंकाने वाली बात ये है कि किसी भी राज्य सरकार के पास अस्पतालों में चल रही क्लिनिकल ट्रायल की जानकारी तक नहीं है। ऐसे में कौन-सा अस्पताल और कौन-सी दवा कंपनी किन-किन मरीजों पर ट्रायल कर रही है, इसे जांचने का कोई सिस्टम नहीं है। गौरतलब है कि अस्पताल स्तर पर जगह-जगह एथिक्स कमेटी का गठन किए जाने का प्रावधान हैं, ताकि ये कमेटी क्लिनिकल ट्रायल पर निगाह रखे। लेकिन अधिकांश अस्पतालों में इसका गठन नहीं किया गया है। जबकि इस कमेटी को ट्रायल के दौरान साइड इफेक्ट या मौत की जानकारी राज्य सरकार को उपलब्ध कराना चाहिए। जहां ये कमेटियां बनी हुई हैं पर तीन साल के बाद सदस्यों का रोटेशन ठीक से नहीं होता है।
पूर्व ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया डॉ.जीएन सिंह बताते हैं कि मौजूदा स्थिति में अस्पतालों में चल रही क्लिनिकल ट्रायल की जानकारी पाने का राज्य सरकार के पास किसी तरह का सिस्टम नहीं है। अस्पतालों में मॉनीटरिंग की जिम्मेदारी एथिक्स कमेटी की है। जिन्हें दवाओं से होने वाले साइड इफेक्ट, मरीजों की जानकारी व मौत की सूचना रहती है। उन्हें निर्धारित समय में केन्द्र सरकार को सूचना देना अनिवार्य है। ऐसा नहीं होने से देशभर में लगातार क्लिनिकल ट्रायल भी बढ़ रहा है और इससे हाेने वाली मौतों पर भी कोई सुध लेने वाला नहीं है।
सबसे ज्यादा ट्रायल महाराष्ट्र में
क्लिनिकल ट्रायल के मामले में महाराष्ट्र सबसे ऊपर है। पिछले चार वर्षों में यहां 2582 ट्रायल हुए हैं। इसके बाद दूसरा नंबर 2468 ट्रायल के साथ कर्नाटक और तीसरा नंबर 1750 ट्रायल के साथ दिल्ली का है।
हर साल क्लिनिकल ट्रायल का बढ़ रहा ग्राफ

किस साल कितनी मौतें
| वर्ष | मौते | गंभीर | राशि (रुपए में) |
| 2015 | 381 | 18 | 2,05,94,866 |
| 2016 | 378 | 27 | 1,62,14,668 |
| 2017 | 345 | 30 | 1,19,59,933 |
| 2018 | 339 | 13 | 4,87,270 |
(देश भर के वर्ष 2015 से लेकर 2018 तक के आंकड़े)
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