रेनुसागर सोनभद्र।श्रीमदभागवत सेवा समिति रेनुसागर के तत्वाधान में श्रीश्याम सेवा मंडल रेनुसागर में आयोजित संगीतमय श्रीमदभागवत कथा सुनने उमड़ रही श्रद्धालुओं की भीड़।श्रीमदभागवत कथा के दूसरे दिन कथावाचक आचार्य पंडित राजकिशोर शास्त्री ने सृष्टि वर्णन, सती प्रसंग और शिव-पार्वती विवाह का बहुत ही सुंदर ढंग से वर्णन किया।उन्होंने कहा कि जीवन में चार पुरुषार्थ- धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष की प्राप्ति के लिए विवाह संस्कार करवाया जाता है। जहां दो आत्माएं एक-दूसरे के लिए अपना समर्पण करतीं हैं। नारी की महानता बताते हुए उन्होंने कहा कि सभी सफल पुरुषों के पीछे नारियों का हाथ रहा है।
कथावाचक आचार्य पंडित राजकिशोर शास्त्री ने बताया कि माता सती ने भगवान शिव से अपने पिता दक्ष प्रजापति द्वारा कराए जा रहे यज्ञ में शामिल होने के लिए कहा। इस पर शिव ने पार्वती से कहा कि बिना निमंत्रण कहीं नहीं जाना चाहिए। मगर सती ने जाने की जिद की और अपने पिता के यहां यज्ञ में शामिल होने चली गईं। वहां पर शिव का अपमान देख वह क्रोधित हो गईं और यज्ञ में कूदकर अपनी आहूति दे दी। भगवान शिव को इस बात का जब पता चला तो क्रोध में तांडव कर यज्ञ को नष्ट कर दिया।सती ने मरते समय शिव से यह वर मांगा कि हर जन्म में आप ही मेरे पति हों। इसी कारण उन्होंने हिमाचल के घर जाकर पार्वती का जन्म लिया। जब से पार्वती हिमाचल के घर में जन्म तब से उनके घर में सुख और सम्पतियां छा गई। पार्वती जी के आने से पर्वत शोभायमान हो गया। जब नारद जी ने ये सब समाचार सुने तो वे हिमाचल पहुंचे। वहां पहुंचकर वे हिमाचल से मिले और हंसकर बोले तुम्हारी कन्या गुणों की खान है। यह स्वभाव से ही सुन्दर, सुशील और शांत है। यह कन्या सुलक्षणों से सम्पन्न है। यह अपने पति को प्यारी होगी। अब इसमें जो दो चार अवगुण है वे भी सुन लो। गुणहीन, मानहीन, माता-पिता विहीन, उदासीन, लापरवाह। इसका पति नंगा, योगी, जटाधारी और सांपों को गले में धारण करने वाला होगा।
यह बात सुनकर पार्वती के माता-पिता चिंतित हो गए। उन्होंने देवर्षि से इसका उपाय पूछा। तब नारद जी बोले जो दोष मैंने बताए मेरे अनुमान से वे सभी शिव में है। अगर शिवजी के साथ विवाह हो जाए तो ये दोष गुण के समान ही हो जाएंगे। यदि तुम्हारी कन्या तप करे तो शिवजी ही इसकी किस्मत बदल सकते हैं। तब यह सुनकर पार्वतीजी की मां विचलित हो गई। उन्होंने पार्वती के पिता से कहा आप अनुकूल घर में ही अपनी पुत्री का विवाह किजिएगा क्योंकि पार्वती मुझे प्राणों से अधिक प्रिय है। पार्वती को देखकर मैंना का गला भर आया। पार्वती ने अपनी मां से कहा मां मुझे एक ब्राहा्रण ने सपने में कहा है कि जो नारदजी ने कहा है तु उसे सत्य समझकर जाकर तप कर। यह तप तेरे लिए दुखों का नाश करने वाला है। उसके बाद माता-पिता को बड़ी खुशी से समझाकर पार्वती तप करने गई।
पार्वतीजी ने शिव को पति रूप में पाने के लिए तपस्या आरंभ की। लेकिन शिव को सांसारिक बंधनों में कदापि रुचि नहीं थी, इसलिए पार्वतीजी ने अत्यंत कठोर तपस्या की ताकि शिव प्रसन्न होकर उनसे विवाह कर लें।तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह किया।कथावाचक ने कहा कि भगवान शिव की महिमा अपरंपार है। कथा को सुनने व सुनाने दोनों का लाभ मनुष्य को मिलता है। शिव-पार्वती विवाह के प्रसंग को सुन सभी भक्त खूब झूमे। इस दौरान शिव पार्वती की सुंदर-सुंदर झांकी निकाली गईं। अंत में आरती हुई। इसके बाद सभी को प्रसाद वितरित किया गया। इस मौके पर श्रीश्याम सेवा मंडल के प्रधान पुजारी पंडित राम यश पांडेय,आचार्य संतोष चतुर्वेदी, अनिल सिंघानिया , विकाश अग्रवाल,डॉक्टर आर एस शर्मा,नरेश शर्मा,अरविन्द सिंह,अजय कुमार शर्मा सहित हजारो श्रद्धालु मौजूद रहे। इस दौरान भजनों पर उपस्थित श्रद्धालु झूम उठे।