लाइफस्टाइल डेस्क. यूं तो बसंत पंचमी को उत्तर भारत का त्योहार कहा जाता है लेकिन ये खुशियां सिर्फ भारत तक ही सीमित नहीं हैं। सरहद पार भी इसे उतनी शिद्दत के साथ मनाया जाता है। बांग्लादेश के शैक्षणिक संस्थानों में इसे भारत से ज्यादा धूमधाम से मनाते हैं। जानिए बसंत पंचमी को कहां-कहां पर अलग अंदाज में मनाने की परंपरा है…
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- बहुत कम लोग जानते हैं कि बसंत पंचमी पाकिस्तान में कई जगहों पर धूमधाम से मनाया जाता है। यहां रहने वाले पंजाबियों के लिए भी यह खास आयोजन होता है। यहां इस त्योहार की खास बात पतंगबाजी होती है। कई जगह पतंगोत्सव के आयोजन होते हैं और लोग इकट्ठा होते हैं।
- पाकिस्तान में कई जगहों पर मांझे से पतंग उड़ाना मना है, इसकी वजह आतंकी गतिविधियां बताई जाती हैं। इसके अलावा यहां पीले फूलों की बारिश की जाती है जिसमें लोग खुशी से सराबोर नजर आते हैं।
- पाकिस्तानी प्रशासन का मानना है कि पतंग उड़ाने के लिए जिन तारों का इस्तेमाल करते हैं उनमें कई बार लोग ऐसी चीजें मिला देते हैं जो लोगों के लिए जानलेवा बन जाती है। इसीलिए पाकिस्तान की कुछ जगहों पर इस त्योहार को गैर-इस्लामिक मानते है और इसे बैन किया हुआ था। लेकिन पाकिस्तान में इमरान सरकार ने प्रतिबंधित बसंत पंचमी उत्सव को लेकर बड़ा फैसला लिया है। सरकार ने बसंत पंचमी उत्सव फिर से शुरू करने की इजाजत दी है।
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- राजधानी ढाका के शिक्षा संस्थानों में बसंती पंचमी का आयोजन बड़े स्तर पर किया जाता है।
- ढाका यूनिवर्सिटी और रामकृष्ण मिशन की ओर से कई जगह सरस्वती पूजा के आयोजन किए जाते हैं। ढाकेश्वरी मंदिर और पुराने ढाका में लोगों में इस त्योहार का खास उत्साह देखा जाता है।
- बसंत पंचमी के मौके पर यहां रिवाज है कि बच्चे को पहली बार लिखता और पढ़ना सिखाया जाता है। यहां के लोगों के लिए यह दिन शिक्षा की शुरुआत के लिए बेहद शुभ माना जाता है।
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- दक्षिणी दिल्ली स्थित चिश्ती घराने के चौथे संत हजरत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह पर बसंत पंचमी पर अलग ही नजारा देखने को मिलता है। बसंत पंचमी के दिन यहां हरे रंग की चादर की जगह पीले फूलों की चादर चढ़ा दी जाती है, लोग बैठकर बसंत के गाने गाते हैं।
- दरअसल हजरत निजामुद्दीन औलिया के सबसे प्रसिद्ध शिष्य थे अमीर खुसरो, जिन्हें पहले उर्दू शायर की उपाधि प्राप्त है। दिल्ली में इन दोनों शिष्य और गुरु की दरगाह और मकबरा आमने-सामने ही बने हुए हैं।
- कहते हैं एक दिन खुसरों ने कई औरतों को पीले रंग की साड़ी पहनें और हाथ में गेंदे के फूल लेकर गाना गाते हुए देखा। सभी औरतें बेहद खुश थी। वह मौसम बसंत का था और हर तरफ खुशहाली थी। तभी अमीर खुसरों के दिमाग में विचार आया कि क्यों न ये सब अपने गुरु के लिए करें। खुसरो ने पीले रंग का घाघरा और दुपट्टा पहनकर गाना गाने लगे। उन्हें औरत के भेष में देखकर हजरत निजामुद्दीन औलिया अपनी हंसी रोक नहीं पाए। इसी दिन को याद करके आज भी दरगाह पर हर बसंत पंचमी मनाई जाती है।
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- इस दिन पंजाब जमीं से लेकर आसमान तक पीली चादर ओढ़े नजर आता है। बसंत पंचमी को यहां काइट फेस्टिवल के तौर पर भी मनाया जाता है। स्कूलों से लेकर घर तक खासकर महिलाएं पीले रंग के कपड़े पहनती हैं।
- दिन की शुरुआत पीले रंग के पकवानों से होती है। इसके अलावा मक्के की रोटी, सरसों का साग और मीठे केसर वाले चावल खास तौरपर हर घर में बनाए जाते हैं।
- स्कूल और संस्थानों में संगीत, तकनीक, विज्ञान और कला से जुड़ी चीजों की पूजा की जाती है।