लाइफस्टाइल डेस्क. आईआईटी रुड़की के वैज्ञानिक ने ऐसी डिवाइस बनाई है जो पानी की धारा पर तैरकर बिजली पैदा कर सकता है। इस उपकरण को दिल्ली स्थित मैकलेक टेक्नीकल प्रोजेक्ट लैबोरेटरी के सहयोग से तैयार किया गया है। परीक्षण के लिए इसे रुड़की में ऊपरी गंगा नहर में लगाया गया है। इसे बनाने में दो साल का समय लगा है। नहर में छोड़ने के बाद यह डिवाइस किनारे पर बने सीमेंट ब्लॉक से टकराकर उसकी सतह पर तैरने लगती है।
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ऐसा नहीं है कि पहले पानी से बिजली नहीं बनती थी। पहले पारंपरिक तरीके से जल विद्युत तैयार की जाती थी लेकिन इस विधि से बिजली पैदा करने के लिए बड़े-बड़े बांध बनाने होते थे। बांधों की वजह से उनके आस-पास की पारिस्थितिकी के साथ-साथ लोग भी प्रभावित होतेहैं। इसी को ध्यान में रख कर संस्थान के शोधकर्ताओं की टीम ने एक प्रोटोटाइप तैयार किया है। यह बहते हुए पानी की सतह की उर्जा का इस्तेमाल करके बिजली का उत्पादन करती है।
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आईआईटी रुड़की के प्रोफेसर आरपी सैनी कहते हैं कि पारंपरिक बांधों में टरबाइन को चालू करने के लिए ऊंचाई से गिरने वाले पानी का इस्तेमाल किया जाता है। इस मशीन में हम टरबाइन को चालू करने के लिए नदी के बहाव का इस्तेमाल कर बिजली पैदा कर रहे हैं। प्रो. सैनी कहते हैं कि बराबर गति से बहने वाली हवा की तुलना में पानी के बहाव का इस्तेमाल करके 100 गुगा ज्यादा बिजली पैदा की जा सकती है।
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आईआईटी में स्थित वैकल्पिक जल ऊर्जा केंद्र (AHEC) के प्रमुख सुनील कुमार सिंघल कहते हैं कि सरकार पिछले 3-4 सालों से सौर ऊर्जा पर अधिक जोर दे रही है। ऐसा इसलिए क्योंकि यह एक मॉड्यूलर प्रणाली है और इसे चार महीनों में ही स्थापित किया जा सकता है और सूर्य का प्रकाश हर जगह उपलब्ध होता है। बादल होने और रात के समय यह उपलब्ध नहीं होती और हमारे यहां उर्जा भंडारण की कुशल प्रणाली भी नहीं है। ऐसे में हमें वैकल्पिक स्रोत की जरूरत लगती है।
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इस उपकरण की तुलना पारंपरिक जलविद्युत संयत्रों से नहीं की जा सकती है। इसके बावजूद इसमेंबड़े पैमाने पर पनबिजली बांधों से जुड़ी कई पर्यावरणीय चुनौतियों को दूर करने की क्षमता है। सैनी बताते हैं कि इस नहर में पूरे साल पानी का बहाव लगभग स्थिर रहता है। इस तरह के उपकरण की टेस्टिंग के लिए यह आदर्श स्थिति है।