स्त्री विमर्श की पुस्तक ‘कन्या यात्रा’

भोलेनाथ मिश्र की कलम से✍️

सोनभद्र(सर्वेश कुमार)। एक ऐसे समय में जब हमारे साहित्य सरोकारों के दायरे में पिछले एक दशक से स्त्री विमर्श का स्वर कुछ अधिक ही तुमुल कोलाहल के साथ अपनी नई भूमिका तलाश रहा है, ऐसे में साहित्यकार डा. मूल शंकर शर्मा की याद आती है। 2013 में प्रकाशित उनकी कृति ‘कन्या यात्रा’ प्रासंगिकता 2024 में पहले से ज्यादा समझ में आती है। 05 जुलाई, 1942 को तियरा मड़ई गांव में जन्में मूल शंकर के पिता स्वतंत्रता संग्राम सेनानी प्रभा शंकर शर्मा संस्कृत के विद्वान थे। मूल शंकर शर्मा आज हमारे बीच नहीं हैं, मगर उनके साहित्य की कीर्ति पताका सूर्य की तरह चमक रही है। अपने पितामह स्वाधीनता संग्राम के महानायक पंडित महादेव चौबे से मिली शिक्षा, संस्कार, जीवन की साधना, उपासना और अनुभवों को लेखनी में ढालकर डॉक्टर मूल शंकर ने हिंदी जगत को समृद्धि किया। भाषा विज्ञान, गीतांतर, पालि दर्पण, सोन भद्रायते नमः विंध्याचल मंडल की भाषा आदि पुस्तकें प्रतिष्ठित है। डॉक्टर मूल शंकर की ‘कन्या यात्रा’ का 

द्वितीय संस्करण विंध्य न्यूज नेटवर्क प्रा. लि. ने 2015 में प्रकाशित किया। मिर्जापुर में के. बी. पीजी कालेज में प्राचार्य व रीडर तथा अध्यक्ष हिंदी विभाग, निदेशक पत्रकारिता विभाग में सेवा दे चुके डॉक्टर मूल शंकर 9अक्टूबर 2008 को सकेतधाम प्रस्थान करने के पूर्व हिंदी जगत को बहुत कुछ देकर गए हैं। करुणा की कलमकार रही महादेवी वर्मा के सानिध्य में साहित्य सृजन का अनुभव प्राप्त करने वाले डॉक्टर साहब एक अच्छे इंसान थे। ‘कन्या यात्रा’ पुस्तक में पुराण गाथाओं, दार्शनिक चिंतन, वैदिक परंपरा से लेकर अद्यतन समाज में कन्या की स्थिति पर विचार किया गया है। कन्या जहां एक तरफ आदि शक्ति के रूप में पूजी जाती रही है, वहीं दूसरी ओर प्रताड़ना

का शिकार होती हुई अबला भी है। शारीरिक संरचना उसे आकर्षण और कमनीय बनाती है तो उसकी कोमलता उसे कमजोर भी बनाती है। सौंदर्य वरदान है तो अभिशाप भी है। पुराणों में वह देवी का रूप लेकर मूर्त हुई। कन्या सृष्टि का आधार है किन्तु उसके आगमन को अस्वीकार करने की मानसिकता भी है। इन सभी पक्षों पर पुस्तक में विस्तार से विचार किया गया है। डॉक्टर मूल शंकर शर्मा एक मूर्धन्य साहित्यकार, भाषाविद, पत्रकार और एक योग्य सफल शिक्षक और प्रभावी वक्ता थे। लावणी छंद के संरक्षण के लिए कहा करते थे। एक बार उन्होंने एक सवाल के ज़बाब में कहा था। “मेरा ध्येय हिंदी की सेवा करना है। मेरा आजन्म प्रयास होगा कि हिंदी को कोई नई चीज भेंट करूं जो मेरे ही घर की (सोनभद्र) बनी हो, बिलायत या जापान से बन कर नहीं आई हो।

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