धर्म डेक्स । जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से गंगास्नान करने पर भी क्यों नहीं मिटते पाप ?
गंगास्नान करने पर भी क्यों नहीं मिटते पाप ?
कभी-कभी हमारे मन में शंका होती है कि लोग अनेक बार गंगाजी में स्नान कर लेते हैं और वर्षों से गंगाजल का सेवन भी कर रहे हैं, फिर भी उनके दु:ख, चिन्ता, तनाव, भय और क्लेश क्यों नहीं मिटे ? जीवन में शान्ति क्यों नहीं है, क्या गंगा की पाप धोने की शक्ति समाप्त हो गई है या हम ही कोई भूल कर रहे हैं ? जानें, इस प्रश्न का उत्तर एक भक्ति कथा के द्वारा ।
पुराणों में गंगाजी की अपार महिमा बतलायी गयी है । जैसे-गंगा वह है जो सीढ़ी बनकर मनुष्य को स्वर्ग पहुंचा देती है, जो भगवद्-पद को प्राप्त करा देती है, मोक्ष देती है, बड़े-बड़े पाप हर लेती है, और कठिनाइयां दूर कर देती है । मनुष्य के दु:ख सदैव के लिए मिट जाने से उसे परम शान्ति मिल जाती है और वह जीते-जी जीवन्मुक्ति का अनुभव करने लगता है ।
गंग सकल मुद मंगल मूला ।
सब सुख करनि हरनि सब सूला ।। (तुलसीदासजी)
गंगास्नान करने पर भी क्यों नहीं मिटते पाप ?
कभी-कभी हमारे मन में यह शंका होती है कि हमने अनेक बार गंगाजी में स्नान कर लिया और वर्षों से गंगाजल का सेवन भी कर रहे हैं फिर भी हमारे दु:ख, चिन्ता, तनाव, भय, क्लेश और मन के संताप क्यों नहीं मिटे ?
हमारे जीवन में शान्ति क्यों नहीं है ?
इसका बहुत सीधा सा उत्तर है-मनुष्य का भगवान और उनके वचनों पर विश्वास न करना । शास्त्रों और पुराणों में जो कुछ लिखा है वह भगवान के ही वचन हैं । यदि हम तर्क न करके पुराणों की वाणी पर अक्षरश: विश्वास करेगें तो उसका फल भी हमें अवश्य मिलेगा ।
ध्यान रहे-‘देवता, वेद, गुरु, मन्त्र, तीर्थ, औषधि और संत-ये सब श्रद्धा-विश्वास से ही फल देते हैं, तर्क से नहीं ।’
इस बात को एक सुन्दर कथा के द्वारा अच्छे से समझा जा सकता है।
एक बार भगवान शंकर व पार्वतीजी घूमते हुए हरिद्वार पहुंचे । पार्वतीजी ने शंकरजी से पूछा-‘हजारों लोग गंगा में स्नान कर रहे हैं फिर भी इनके पापों का नाश क्यों नहीं हो रहा है ?’
शंकरजी ने उत्तर दिया-‘इन लोगों ने गंगास्नान किया ही नहीं है । ये तो केवल जल में स्नान कर रहे हैं । अब मैं तुम्हें दिखाऊंगा कि वास्तव में गंगा में स्नान किसने किया ।’
भगवान शंकर ने गंगाजी के रास्ते में एक गड्ढा बनाकर उसे जल से भर दिया और साधारण मानव के वेष में उस गड्ढे में खड़े हो गए । शंकरजी कंधों तक जल में डूबे हुए थे । उन्होंने पार्वतीजी से कहा कि तुम गंगास्नान करके आने वालों से निवेदन करना कि-‘मेरे पति को इस गड्ढे से बाहर निकाल दो लेकिन शर्त यह है कि यदि तुमने अपने जीवन में कोई पाप नहीं किया हो तभी इन्हें बाहर निकालने की कोशिश करना अन्यथा इन्हें छूते ही तुम भस्म हो जाओगे ।’
कई दिन बीत गये । हजारों लोग गंगास्नान कर उस रास्ते से निकले लेकिन शर्त सुनते ही शंकरजी को छूने की हिम्मत नहीं करते और यह कहते हुए चले जाते कि हमने इस जन्म में तो कोई पाप नहीं किया है पर पूर्वजन्मों का क्या पता, पता नहीं हमसे कोई पाप हो गया हो ?
एक दिन एक व्यक्ति ने आकर पार्वतीजी से कहा-‘मैं आपके पति को इस गड्ढे से बाहर निकालूंगा ।’
पार्वतीजी ने पूछा-‘क्या आपने कभी कोई पाप नहीं किया है ?’
उस व्यक्ति ने उत्तर दिया-‘मैंने बहुत पाप किये हैं किन्तु अभी-अभी मैंने गंगाजी में स्नान किया है इसलिए मेरे सारे पाप नष्ट हो गए और मैं निष्पाप हो गया हूँ ।’
उस व्यक्ति ने जैसे ही भगवान शंकर को गड्ढे से बाहर निकालने के लिए अपना हाथ बढ़ाया, शंकरजी स्वत: ही गड्ढे से बाहर आ गये ।
भगवान शंकर ने पार्वतीजी से कहा-‘इसने वास्तव में गंगास्नान किया है क्योंकि इसको विश्वास है कि गंगाजी में स्नान करने से सारे पापों का नाश हो जाता है ।’
ऐसे प्राप्त करें गंगास्नान का पूरा पुण्यफल
गंगाजी की कृपा प्राप्ति के लिए उनमें अखण्ड विश्वास होना चाहिए इसलिए उनसे सांसारिक वस्तुएं न मांगकर सदैव यही मांगना चाहिए कि ‘आप अपनी कृपा से मुझे अपना अखण्ड विश्वास दीजिये ।’
गंगा में डुबकी लगाते समय यही भावना रखनी चाहिए कि ‘हम साक्षात् नारायण के चरण-कमलों से निकले अमृतरूप ब्रह्मद्रव में डुबकी लगा रहे हैं । मैंने जन्म-जन्मान्तर में जो थोड़े या बहुत पाप किये हैं, वे गंगाजी के स्नान से निश्चित रूप से नष्ट हो जायेंगे । त्रिपथगामनी गंगा मेरे पापों का हरण करने की कृपा करें ।’
शास्त्रों में कहा गया है कि ‘देवता बनकर ही देवता की पूजा करनी चाहिए ।’ शास्त्रों में तो यहां तक लिखा है कि गंगास्नान के लिए जाते समय झूठ बोलना, लड़ाई-झगड़ा, निन्दा-चुगली, क्रोध, लोभ, लालच आदि आसुरी वृत्तियों का त्याग कर देना चाहिए और दान, दया, करुणा, सत्य, परोपकार आदि दैवीय गुणों का जीवन में पालन करना चाहिए, तभी गंगास्नान सफल होता है ।
बहुत से लोग गंगास्नान करने तो जाते हैं किन्तु शास्त्रों में बतायी गयी विधि के अनुसार गंगास्नान नहीं करते हैं । तीर्थस्थान में ताश खेलना, सिगरेट पीना आदि कार्य करते हैं, इससे भी उन्हें गंगास्नान का पुण्यफल नहीं मिलता है ।
लोगों के पापों को धोती रहने वाली गंगाजी को अब ऐसी पुण्यात्माओं की प्रतीक्षा है जो गंगा में अपने पाप धोने नहीं वरन् पुण्य समर्पित करने आएं।