भ्रूण प्रत्यारोपण योजनान्तर्गत कार्यशाला

वाराणसी से सुरभी चतुर्वेदी की रिपोर्ट

मुख्य अतिथि के रूप में मंडलायुक्त कौशल राज शर्मा मौजूद रहे

जिलाधिकारी एस राजलिंगम तथा मुख्य विकास अधिकारी हिमांशु नागपाल भी कार्यशाला में मौजूद रहे

वाराणसी। आयुक्त सभागार में भ्रूण प्रत्यारोपण पर आयोजित कार्यशाला में बोलते हुए मंडलायुक्त कौशल राज शर्मा ने पशुपालन को कृषि से संबद्ध सेक्टर बताते हुए किसानों की आय दोगुनी करने में उपयोगी बताया। मंडलायुक्त ने कहा कि भ्रूण प्रत्यारोपण के माध्यम से गंगातीरी, लालसिंधी व साहीवाल गायों की नस्ल सुधार में मदद मिलेगी जिससे की दुग्ध उत्पादन को बढ़ावा दिया जा सकेगा। प्रधानमंत्री का क्षेत्र होने के नाते इस योजना का सर्वप्रथम लाभ बनारस के पशुपालकों को दिया जा रहा जिसके तहत पशुपालकों से केवल एक हजार रुपये ही लिये जायेंगे बाकि पैसा सरकार द्वारा सब्सिडी के रूप में दिया जा रहा। प्रति पशु इसकी लागत 21000 रुपये है। योजना के तहत प्रथम चरण में 100 पशुपालकों को इसका लाभ दिया जायेगा जिसको की बाद में प्रति ब्लॉक में लागू करते हुए 2000 पशुओं तक पहुंचाया जायेगा।

मंडलायुक्त द्वारा कहा कि पूरी दुनिया को खेती व पशुपालन भारत ने सिखाया। पूरे यूरोप में कहीं पशुपालन नहीं था पर वर्तमान में हम स्वतः अपनी विधा छोड़कर उनकी विधा अपना रहे जो सही नहीं है। मंडलायुक्त ने कार्यक्रम में जीरो बजट खेती पर बात रखते हुए पशुओं की महत्ता को भी रेखांकित किया जिसमें उनके अपशिष्ट गोबर, गोमूत्र आदि को खेती में उपयोग करते हुए खेतों की उर्वरा शक्ति तथा उपज बढ़ाने में मदद मिलेगी। एक गाय से एक एकड़ खेती की जा सकती। मंडलायुक्त ने किसानों से कीटनाशकों, उर्वरकों के प्रयोग कम करने को कहा ताकि वर्तमान समय में होने वाली कैंसर जैसी बीमारियों से बचा जा सके।

मंडलायुक्त ने कार्यशाला में प्रधानमंत्री के मोटे अनाजों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए 2023 को बाजरा वर्ष के रूप में मनाए जाने पर भी अपनी बात रखी तथा किसानों को प्रेरित करते हुए कहा कि गेहूं यूरोप की खरपतवार थी जिसको की भारत पर थोप दिया गया जो कि वर्तमान समय में ब्लड प्रेशर व शुगर जैसी बीमारियों का कारण है। हमें इन सभी से बचने हेतु अपनी प्राचीन खेती पद्धति व पशुपालन को अपनाना होगा तभी हमारी आने वाली पीढ़ी में सुधार हो सकता। हमें विदेशी कंपनियों के चुंगल से बाहर निकलकर अपनी पुरानी खान-पान व्यवस्था को अपनाना ही होगा।

मंडलायुक्त ने छाछ को अमृत बताते हुए इसमें मौजूद प्रीबायोटिक तथा प्रोबायोटिक गुणों को बताया तथा कहा कि वर्तमान समय में हम अपनी छाछ विधा को भी छोड़कर कोल्डड्रिंक के चक्कर में पड़ गये हैं जो कि वर्तमान बीमारियों, कुपोषण आदि का प्रमुख कारण है। मंडलायुक्त ने कहा कि उत्तर प्रदेश पूरे देश में दुग्ध उत्पादन में प्रथम स्थान रखता परंतु हम उसका उचित फायदा नहीं ले पा रहे। गुजरात जैसे प्रदेश जो कि उत्तर प्रदेश से दुग्ध उत्पादन में काफी पीछे हैं फिर भी अमूल जैसी सहकारी समितियों के कारण वहाँ के किसानों को उसका उचित लाभ मिल रहा।

अंत में उन्होंने सभी से अपनी पुरानी पद्धति पर लौटने की अपील करते हुए भ्रूण प्रत्यारोपण विधा का फायदा लेने को कहा ताकि टेक्नोलॉजी को अपनाकर आप भी प्रगतिशील किसान बन सकें।

कार्यक्रम में बोलते हुए जिलाधिकारी एस राजलिंगम ने कहा कि किसानों की आय तथा दुग्ध उत्पादन को बढ़ाने के लिए भारत में श्वेत क्रांति लायी गयी थी। प्रधानमंत्री द्वारा किसानों की आय दोगुनी करने के लिए यह महत्वाकांक्षी योजना लायी गयी है जिससे क्रित्रिम विधि से अच्छी नस्ल की गाय व भैंसों के स्पर्म को फीमेल से लिये गये अंडे के साथ लेबोरेट्री में निशेचित कराया जाता है। फिर तैयार भ्रूण को कम दूध देने वाली फीमेल के गर्भ में प्रवेश करा कर अच्छी नस्ल की ज्यादा दूध‌ देने वाली गाय या भैंस तैयार की जाती है। इस विधि में 99% फीमेल और 1%मेल पैदा होते हैं। उन्होंने कहा कि गाय की गंगातीरी प्रजाति की ब्रीडिंग करा कर अच्छी नस्ल के अधिक दूध देने वाले पशु बढ़ाये जा सकते हैं। भ्रूण तैयार करने में कुल खर्चा 21 हजार आता है लेकिन इस योजना को बढ़ावा देने के लिए गर्भ ठहर जाने पर केवल एक हजार रूपये ही लिये जाते हैं।
   
कार्यक्रम में मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ अशोक कुमार तिवारी, अपर निदेशक पशुपालन डॉ आर के सिंह, अपर निदेशक (गोधन) डॉ राजेश कुमार सैनी सहित कार्यशाला में आये अनेक डाक्टर और वैज्ञानिकों ने गुजरात में इस योजना की प्रगति की जानकारी दी।

भ्रूण प्रजनन तकनीक

श्रेष्ठ दुधारू गौवंश की संख्या में शीघ्र वृद्धि करने के लिए आधुनिक प्रजनन तकनीकों जिसमें अधिक प्रभावी एवं कम लागत के कारण ओवम पिक-अप एवं इन विट्रो भ्रूण उत्पादन तकनीक परिकल्पना की जा रही है। इस तकनीक के उपयोग से भारतीय डेरी परिदृश्य में बदलाव आएगा। भ्रूण उत्पादन इस प्रकार की एक आधुनिक प्रजनन तकनीक है। इस तकनीक से श्रेष्ठ सांड़ों के वीर्य का उपयोग करके श्रेष्ठ मादा से उनके जीवन काल में अनेक संतानें पैदा की जाती हैं। आम तौर पर, एक मादा पशु से एक वर्ष में केवल एक बछड़ा पैदा होता है। परंतु इस तकनीक से एक मादा पशु से एक वर्ष में औसतन 20-25 बछड़े / बछड़ियां पैदा किए जा सकते हैं। किसी भी आनुवंशिक सुधार कार्यक्रमों के अंर्तगत प्रतिवर्ष आनुवांशिक लाभ, चयन की तीव्रता पर निर्भर करता है। इस तकनीक के उपयोग से चयन की तीव्रता में वृद्धि से आनुवांशिक लाभ में वृद्धि की जा सकती है। जीनोमिक चयन के माध्यम से चयनित श्रेष्ठ बछड़ियों से भी भ्रूण उत्पादन किया जा सकता है। इससे दो पीढ़ीओं के बीच के अंतर में कमी लाकर प्रतिवर्ष आनुवंशिक लाभ में वृद्धि की जा सकती है। निष्क्रिय थनों वाली श्रेष्ठ गायों का उपयोग भी भ्रूण उत्पादन के लिए किया जा सकता है जिन्हें आमतौर पर निष्कासित कर दिया जाता है। एक ही ओपीयू-आईवीईपी सेशन में कई श्रेष्ठ सांड़ों के वीर्य का उपयोग करके विभिन्न नर एवं मादा जोडी के बछड़े/बछड़ियां पैदा किया जा सकता है। लिंग निर्धारित वीर्य के उपयोग से अधिक संख्या में वांच्छित लिंग की संतानों का उत्पादन किया जा सकता है। इससे भविष्य में पशुपालन व्यवसाय को कई लाभ प्राप्त होंगे जैसे कि भ्रूणों के प्रत्यारोपण पूर्व लिंग का चयन, जीनोमिक प्रजनक मूल्य आंकलन तथा प्रत्यारोपण से पूर्व आनुवंशिक रोगों की पहचान इत्यादि। इन सभी से भविष्य में इस तकनीक का महत्व और बढ़ने की संभावना है।

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