धर्म डेक्स । जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से क्यों झपकती हैं पलकें पौराणिक कथा
क्यों झपकती हैं पलकें पौराणिक कथा
पलकों को आप चाहकर भी अब झपकने से रोक नहीं सकते। लेकिन पौराणिक ग्रंथों की मानें तो राजा निमि के शासन काल से पहले मनुष्य और पशु पक्षियों की पलकें नहीं झपकती थीं। देवी भाग्वत् पुराण के छठे स्कंध में एक बहुत ही रोचक कथा है जिसमें बताया गया है कि क्यों मनुष्य और पशु पक्षियों की पलकें झपकती हैं।
कथा के अनुसार एक समय इच्छवाकु वंश के राजा निमि को उनके गुरु वशिष्ठ ने शाप दे दिया कि तुम विदेह यानी शरीर से रहित हो जाओ। क्रोध में आकर राजा निमि ने भी अपने गुरु वशिष्ठ को शाप दे दिया कि उनका शरीर भी नष्ट हो जाए। शाप से दुःखी ऋषि वशिष्ठ अपने पिता ब्रह्मा जी के पास पहुंचे।
ब्रह्मा जी ने कहा कि आप ऋषि मित्र और वरुण के शरीर में सूक्ष्म रूप से समा जाइए। इन्हीं के द्वारा आपको नया शरीर प्राप्त होगा और आप अपने धर्म ज्ञान को उस नए शरीर में भी याद रख पाएंगे। ऋषि वशिष्ठ जी ने ऐसा ही किया, वह सूक्ष्म रूप से मित्र वरुण के शरीर में समा गए।
एक समय उर्वशी उप्सरा ऋषि मित्र वरुण के आश्रम में आईं। अप्सरा को देखकर ऋषि मित्रवरुणा कामशक्त हो गए। इनके वीर्य से दो बालकों का जन्म हुआ एक अगस्त और दूसरे वशिष्ठ मुनि कहलाए। जबकि राजा निमि के तप से प्रसन्न होकर मां दुर्गा प्रकट हुईं और राजा नीमि ने उनसे यह वरदान मांगा कि वह जीवन मृत्यु के चक्र से मुक्ति पाकर जीवों के नेत्रों में रहें।
मां दुर्गा ने राजा नीमि को वरदान दिया कि वह वायु रूप में मनुष्य और पशु पक्षियों के नेत्रों में विराजमान रहेंगे जिससे उनकी पलकें झपकेंगी। देवताओं की पलकें नहीं झपकेंगी जिससे वह अनिमिष कहलाएंगे। जब देवी राजा को वरदान देकर चली गईं तो ऋषियों ने राज के शरीर को मंत्रों से मथकर एक बालक को उत्पन्न किया जो मिथि और जनक कहलाया। इनके वंशज आगे चलकर जनक और विदेह कहलाए। देवी सीता के पिता राजा जनक भी इन्हीं के वंशज हुए।