बनारस की एक पहचान उसकी अपनी कला और दस्तकारी में भी है

पुरुषोत्तम चतुर्वेदी की रिपोर्ट

वाराणसी।बनारस की पहचान सिर्फ उसके घाट, मंदिर और गंगा ही नहीं है बल्कि बनारस की एक पहचान उसकी अपनी कला और दस्तकारी में भी है।  इसी कला में एक कला लकड़ी के खिलौनों की कला है जो इतने जीवंत होते हैं कि अगर वह बोल सकते तो अपने गढने वाले की कारीगरी और हुनर को तो बयां करते ही । लेकिन आज के दौर में वह उस बेबसी को भी बयां करते जिसकी वजह से दुनिया में राज करने वाला लकड़ी का खिलौना धीरे धीरे दम तोड़ने लगा । इसके पीछे कई बातें हैं जिस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया लेकिन कुछ ऐसे भी लोग इसी बनारस में थे कि उस संकट से निकलने के लिए और उसके पुनर्स्थापना के लिए प्रयोग में भी जुटे हुए थे । 

इसी में एक था जोगाई परिवार । जोगाई परिवार लकड़ी के खिलौने के हुनरमंदी में माहिर थे उसके साथ साथ कुछ और भी प्रयोग करते थे । 

 लेकिन जब लकड़ी के खिलौने बनाने के लिए कोइरईया की लकड़ी पर बैन लगने से नहीं मिल पा रही थी तो और लोग यूकेलिप्टस पर चले गए । तब जोगाई परिवार ने कुछ और ही करने की ठानी उन्होंने एमडीएफ की तरफ रुख किया और एमडीएफ से अलग-अलग तरह की डिजाइन बनाना शुरू किया इसमें खिलौना ही नहीं बल्कि मेटल से बनने वाले मंदिर या किसी दूसरे तरह के मॉडल हो या फिर अलग-अलग धातु से बनने वाले ट्रॉफी, मेडल मोमेंटो जैसी तमाम चीजें इस परिवार के हुनरमंद हाथों से शक्ल लेने लगी । यहां तक की फोटो खींचकर जो पोट्रेट और फोटो फ्रेमिंग की जाती थी । उस फोटो को भी इन लोगों ने एमडीएफ पर किसी भी व्यक्ति की शक्ल को उकेर कर उसे फोटो फ्रेम में लोगों के घरों के दीवार की शोभा बनाना या फिर अलग-अलग तरह के डिब्बों पर उसे बनाकर  उपहार दी जाने वाली चीज को जीवंत बनाने लगे इन तस्वीरों में जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे से लेकर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक के चेहरे थे जो इनकी कला को देखकर मंत्रमुग्ध हो गए यही वजह है कि  देखते-देखते इनकी कला लोगों के बीच में इतनी पसंद की जाने लगी कि विश्वनाथ कॉरिडोर ,राम मंदिर, रुद्राक्ष, खाटू श्याम जी का गेट जैसे अनेकों मॉडल इनके हाथों से बनकर तैयार होने लगे और लोगों के घरों में पहुंचने लगे । 

इस कला की समृद्धि को ऊंचाइयों तक पहुंचाने के बाद भी जोगाई परिवार का मन नहीं भरा लिहाजा उनके मन में एक तड़प थी कि आम जीवन में इस्तेमाल होने वाली जो चीजें लकड़ी की कमी की वजह से प्लास्टिक ने ले लिया था । उसे कैसे फिर से जीवित किया जा सके एमडीएफ के जरिए , लिहाजा इस पर शोध शुरू हुआ और इस शोध के नतीजे के बाद बच्चों के खेलने वाला लकड़ी का घोड़ा,  बच्चों के लकड़ी के छोटे-छोटे स्टडी टेबल,  घरो में बड़ी रिवाल्विंग चेयर , खत्म होते जा रहे हैं घरों से पीठे , अलग-अलग तरह की पूजा की चौकी जैसी तमाम चीजें एमडीएफ के जरिए शक्ल अख्तियार करने लगी और यह इतनी खूबसूरत और मजबूत बनकर तैयार हुई है कि इसे देखकर आप अंदाजा नहीं लगा सकते हैं कि यह एमडीएफ से बना होगा । 

जोगाई बनारस वो आर्ट गैलरी है जहां आपको आप की परिकल्पनाओ के, आपके सपनों का ,आपकी सोच की हर वह चीज मिल जाएगी । जिसे आपने प्लास्टिक या महंगी लकड़ी जो अब खत्म हो रही है को देखा या सुना होगा । इनके इस शोरूम में अब वह सारी चीजें हकीकत के रूप में आपके अपने बजट में उपलब्ध हो रही है ।  जोगाई परिवार की इस उपलब्धि की वजह से दर्जनों उन कारीगरों को रोजगार उपलब्ध हो गया है जो लकड़ी के खिलौने को तराशने का काम करते थे,  उनमें रंग भर कर के उसमें जीवन डालने का काम करते थे । बेजान एमडीएफ को अलग-अलग शक्ल में गढ़ने  का काम करते थे । आज इस परिवार की एक कला बनारस की एक अलग पहचान बना रही है और बनारस के कला के उस रस को जीवित कर रही है जिससे मिलकर ही बनारस , बनारस बना है

Translate »