अपने पुरोहितों पर हमें गर्व है : अम्बरीष जी

कहा सनातन संस्कृति को बचाए रखने वालों की उपेक्षा क्यो!

भोलानाथ मिश्र

सोनभद्र । विश्व हिन्दू परिषद के राष्ट्रीय सह मंत्री और अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख अम्बरीष सिंह ने मंगलवार को हमारे विशेष संवाददाता से बातचीत करते हुए कहा कि हमे अपने पुरोहितों पर गर्व है जिन्होंने हमें सनातन मूल्यों से जोड़े रखा है। श्री सिंह ने आगे यह भी कहा कि पराधीनता के लम्बे कालखंड में जब मंदिर टूट रहे थे, यज्ञशालाएं अपवित्र की जा रहीं थीं, हिन्दू बने रहने के लिए पुरखे जजिया कर दे रहे थे, माताओं का सतीत्व हरण हो रहा था, शीश कट रहे थे तो भी उस विषम परिस्थिति में अपने प्राणों के बचाने का उपक्रम पुरोहितों ने नहीं किया वे कर्तव्य पथ पर डटे रहे ।

पुरोहितों ने प्रदोष, एकादशी व्रत ,त्योहार, मुंडन, पाणिग्रहण
अंतिम संस्कार जैसे कर्मकांडों से जोड़े रखा इतना ही नहीं देव आराधना से हमें वंचित नहीं होने दिया । आगे कहा पुरोहित न होते तो हम कैसे हिन्दू होते! उन्होंने आक्रोश व्यक्त करते
हुए कहा हम लज्जित हैं अपने उन बंधुओं के कृत्य और व्यवहार पर जो विवाह आदि संस्कारों में अपनी झूठी शान के लिए अंधाधुंध धन का अपव्यय करते हैं। अन्न देवता को नाली में बहाते हैं, लाइटिंग ,म्यूजिक सिस्टम अन्य व्यर्थ के व्यय , आतिशबाजी के नाम पर दिया गया पैसा भी उनके लिए धन का सदुपयोग दिखता है और पुरोहितों को दी गई दक्षिणा उन्हे धन का अपव्यय दिखती है । कभी – कभी तो नाचने गाने वालों से भी पुरोहित की औकात कम आंकी जाती है। श्री सिंह ने यह भी कहा कि शराब पीकर नाचना, जयमाल पर वैभव प्रदर्शन ,
भोजन जलपान, आभूषण और वस्त्रों की प्रतियोगिता यही विवाह बन गए । द्वारपूजा पर मंत्रोच्चारण, आंगन में शास्त्रार्थ धीरे- धीरे नेपथ्य में जा रहे हैं। लेकिन हम कृतज्ञ है पुरोहितों के जो अपमान के दंश को सहकर आज भी वे अभाव में भी अपने कर्तव्य पथ पर डटे हैं । अपने पुरखों की गौरवशाली परम्परा को निभा रहे है । विवाह गीत गाने वाली महिलाएं धीरे- धीरे समाप्त हो गईं । शारदा सिन्हा और रामायण के गीत मोर्चा
सम्हाले हुए हैं । विवाह कराने वाले हमारे पुरोहित यदि हमारे इस दुर्व्यवहार की प्रतिक्रिया में पीछे हट गये तो क्या होगा ?
उन्होंने कहा कि गौरैया और गिद्ध के गायब होने की चिंता है लेकिन अपमान और कष्ट सहकर जिन पूज्य पुरोहितों ने हमें अपने सनातन से जोड़े रखा है उनके बारे में हमने नहीं विचार किया तो हमारे जैसा कृतघ्न कौन होगा! अंबरीश जी ने विशेष संवाददाता से वार्ता के अंत में कहा कि पुरोहित हैं तभी हमारी सनातन संस्कृति , संस्कार और परम्पराएं हैं। उन्होंने पुरोहिती कर्म करने वाले आचार्यो के चरणों में नमन करते हुए उनके सनातनी हौसले को प्रणाम किया।

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