धर्म डेक्स । जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से भारतीय वैदिक ज्योतिष मे कृतिका नक्षत्र के जातक

भारतीय वैदिक ज्योतिष मे कृतिका नक्षत्र के जातक
कृत्तिका नक्षत्र राशि फल में 26.40 से 40.00 अंशों के मध्य स्थित है। कृत्तिका के पर्यायवाची नाम हैं- हुताशन, अग्नि, बहुला अरबी में इसे अथ थुरेया’ कहते हैं। इस नक्षत्र में छह तारों की स्थिति मानी गयी है। देवता अग्नि एवं स्वामी गुरु सूर्य है। कृत्तिका प्रथम चरण मेष राशि (स्वामी : मंगल) एवं शेष तीन चरण वृष राशि (स्वामी: शुक्र) में आते हैं।
गणः राक्षस, योनिः मेष एवं नाड़ी: अंत है। चरणाक्षर हैं: अ, इ, उ, ए ।
कृत्तिका नक्षत्र में जन्मे जातक मध्यम कद, चौड़े कंधे तथा सुगठित मांसपेशियों वाले होते हैं। ऐसे जातक अत्यंत बुद्धिमान, अच्छे सलाहकार, आशावादी कठिन परिश्रमी तथा एक तरह हठी भी होते हैं। वे वचन के पक्के तथा समाज की सेवा भी करना चाहते हैं। वे येन-केन-प्रकारेण अर्थ, यश नहीं प्राप्त करना चाहते, न तो अवैध मागों का अवलंबन करते हैं, न किसी की दया’ पर आश्रित रहना चाहते हैं। उनमें अहं कुछ अधिक होता हैं, फलतः वे अपने किसी भी कार्य में कोई त्रुटि नहीं देख पाते। वे परिस्थितियों के अनुसार ढलना नहीं जानते। तथापि ऐसे जातक का • सार्वजनिक जीवन यशस्वी होता है। लेकिन अत्यधिक ईमानदारी भरा व्यवहार उनके पतन का कारण बन जाता है।
ऐसे जातकों को सत्तापक्ष से लाभ मिलता है। वे चिकित्सा या इंजीनियरिंग के अलावा ट्रेजरी विभाग में भी सफल हो सकते हैं, विशेषकर सूत निर्यात, औषध या अलंकरण वस्तुओं के व्यापार में सामान्यतः जन्मभूमि से दूर ही उनका उत्कर्ष होता है।
ऐसे जातकों का वैवाहिक जीवन सुखी बीतता है। पत्नी गुणवती, गृह कार्य में दक्ष तथा सुशील होती है। प्रायः उनकी पत्नी उनके परिवार की पूर्व परिचित ही होती है। प्रेम विवाह के भी सकेत मिलते हैं।
ऐसे जातकों का स्वास्थ्य भी सामान्यतः ठीक ही रहता है तथापि उन्हें दंत-पीडा, नेत्र-विकार, क्षय, बवासीर आदि रोग जल्दी ही पकड़ सकते हैं।
कृतिका नक्षत्र में जन्मी जातिकाएं मध्यम कद की बहुत रूपवती तथा साफ-सफाई पसंद होती हैं। वे अनावश्यक रूप से किसी से दबना’ पसंद नहीं करतीं, फलतः जाने-अनजाने उनका स्वभाव कलह पैदा करने वाला बन जाता है। उनमें संगीत, कला के प्रति रुचि होती है तथा वे शिक्षिका का कार्य बखूबी कर सकती हैं। कृत्तिका के प्रथम चरण में जन्मी जातिकाएं उच्च अध्ययन में सफल होती हैं तथा प्रशासक, चिकित्सक, इंजीनियर आदि भी बन सकती हैं। कृत्तिका नक्षत्र में जन्मी जातिकाओं का वैवाहिक जीवन पूर्णतः सुखी नहीं रह पाता। पति से विलगाव या कभी-कभी प्रजनन क्षमता की हीनता भी इसका एक कारण हो सकती है। कृत्तिका के विभिन्न चरणों के स्वामी इस प्रकार हैं: प्रथम एवं चतुर्थ चरण- गुरु, द्वितीय एवं तृतीय चरण-शनि।
क्रमशः… आगे के लेख मे रोहिणी नक्षत्र के विषय मे विस्तार से वर्णन किया जाएगा।
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