अपने समय को उठाने वाला रचनाकार लोक चर्चा में रहता है- पवन प्रजापति

मातृ दिवस पर काव्य गोष्ठी व डॉ मिथिलेश कुमार श्रीवास्तव की पुस्तक ‘न्याय की रात’ और ‘आखिरी मंजिल’ पर चर्चा।

मिर्ज़ापुर(सर्वेश श्रीवास्तव)। मातृ दिवस के उपलक्ष्य में मिलन निवास, अनगढ़ में एक काव्य गोष्ठी व पुस्तक चर्चा का आयोजन हुआ। मुख्य अतिथि जिला कृषि अधिकारी पवन प्रजापति ने कहा कि साहित्य ने समाज की हमेशा सेवा की है और उसने समाज को ठीक-ठाक रखने के लिए दिशा निर्देश भी दिया है। आज का रचनाकार इस बात को अच्छी तरह जानता है। इसलिए वही रचनाकार लोक में चर्चित होता है जो अपने समय की बात को उठता है। अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ कवि भोलानाथ कुशवाहा ने कहा कि रचनाकार में मौलिकता

से नई जमीन उभर कर लोगों के बीच आती है और वही रचनाकार मान्य होता है जो बाकी लोगों से अलग अपनी बात कहने में सफल होता है। मिथिलेश जी में ऐसा ही कुछ देखने को मिलता है। विशिष्ट अतिथि डॉ मिथिलेश कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि उन्होंने अपने लेखन में समाज के उसी आम आदमी की चर्चा की है जो समय के साथ टकरा रहा है और उन्होंने उसे आज की आवश्यकताओं के अनुरूप अपने को गढ़ने को प्रेरित किया है। विशिष्ट अतिथि राजपति ओझा ने कहा कि बड़े रचनाकारों तुलसी, कबीर, रहीम ने हमेशा समाज और आदमी को सुव्यवस्थित ढंग से जीने का रास्ता दिखाया है। उन्होंने कहा कि मिथिलेश जी का साहित्य लेखन हमारे लिए प्रेरणादायक है। संचालन करते हुए आनंद अमित ने कहा कि मिथिलेश जी न केवल अच्छे रचनाकार है बल्कि सुहृदय भी हैं जो कि किसी साहित्यकार के लिए बहुत आवश्यक है। क्योंकि जबतक साहित्यकार का अंतर्मन सरल नहीं होगा तब तक वह समाज को नई दिशा नहीं दे पाएगा। मातृ दिवस पर आयोजित इस कार्यक्रम में काव्यपाठ भी हुआ। प्रारम्भ में सृष्टि राज ने मातृ वंदना से जुड़े दोहे प्रस्तुत किये। डॉ सुधा सिंह ने सुनाया- माँ तो माँ होती है, हिन्दू न मुसलमान होती है। देखे हैं बहुतेरे काबा काशी, पर माँ तो चारों धाम होती है। भोलानाथ कुशवाहा ने माँ पर हाइकू सुनाया- माँ आओगी न/बाँस बेर केला हैं/ तुम नहीं हो। डॉ मिथिलेश कुमार श्रीवास्तव ने सुनाया- आँखों में जन्नत बसाती थी/ माँ इस तरह पेश आती थी/मेरी गलतियों पर हर बार/ रब से माफी मांग लेती थी। आनंद अमित ने सुनाया- माँ पर लिखने की मंशा से जब भी कलम उठाता हूँ, एक गीत लिखने बैठूँ तो कई कई लिख जाता हूँ। मिलन कुमार ने माँ पर कविता सुनाई। अंत में हिंदी श्री की संस्थापिका सावित्री कुमारी ने सभी का आभार व्यक्त किया।

Translate »