हत्या आरोपी अभियुक्त सोनू यादव को दोषमुक्त किया गया-शेष नारायण दीक्षित


विवेक कुमार पाण्डेय
मो-9721349605
सोनभद्र। न्यायालय अपर सत्र न्यायाधीश, कोर्ट नम्बर-2, सोनभद्र पीठासीन: राहुल मिश्रा (उच्चतर न्यायिक सेवा), UP02726 सत्र परीक्षण संख्या 96 सन् 2015 राज्य बनाम अभियोगी सोनू यादव पुत्र गामा यादव निवासीगण चोपन गांव, थाना चोपन, जिला सोनभद्र अभियुक्तगण मुकदमा अपराध संख्या – 312 / 2015 धारा-302 / 34, 201 भा.द.सं. थाना- चोपन, जनपद- सोनभद्र प्रस्तुत सत्र परीक्षण से संबंधित अपराध में पुलिस थाना चोपन, जनपद सोनभद्र द्वारा अभियुक्तगण श्याम लाल यादव तथा सोनू यादव के विरूद्ध मु०अ०सं०- 312 / 2015 अन्तर्गत धारा 302, 201 मा०दं०सं० के अन्तर्गत आरोप पत्र मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट सोनभद्र के न्यायालय में दिनांकित 17.08.2015 को प्रेषित किया गया उक्त आरोप पत्र पर तत्कालीन मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, सोनभद्र द्वारा दिनांकित 04.09.2015 को अपराध का प्रसंज्ञान लिया गया तथा मामला सत्र परीक्षणीय होने के कारण दिनांक 08.09.2015 को प्रकरण को सत्र न्यायाधीश, सोनभद्र के न्यायालय में सुपुद्र किया गया, जहाँ से अन्तरित होकर निर्णय पत्रावली विचारण हेतु इस न्यायालय को प्राप्त हुई।
अभियुक्तगण श्यामलाल यादव तथा सोनू यादव को तलब किया गया, अभियुक्त हाजिर आया। अभियोजन पक्ष तथा अभियुक्तगण के विद्वान अधिवक्ता शेष नारायण दीक्षित ने आरोप के बिन्दु पर सुनकर दिनांक 15.10.2015 को अभियुक्तगण श्यामलाल यादव तथा सोनू यादव के विरूद्ध धारा 302/34, 201 भा०दं०सं० के अन्तर्गत आरोप विरचित किया गया। विरचित आरोप अभियुक्तगण को पढ़कर सुनाया व समझाया गया अभियुक्तगण ने आरोप से इन्कार किया तथा परीक्षण की मांग की। इससे स्पष्ट है कि एक ही दस्तावेज पर दो-दो बार वस्तु प्रदर्श अंकित कर दिया गया है। जिसका सुधार न्यायहित में किया जाना आवश्यक है। उभय पक्ष द्वारा उक्त लिपिकीय त्रुटि के सुधार पर कोई आपत्ति न होना व्यक्त किया गया है। अतः सुविधा एवं न्याय की दृष्टि से फोटोग्राफ कागज संख्या – 33 / 58 लगायत 3अ / 60 को कमशः वस्तु प्रदर्श- 14, वस्तु प्रदर्श-15 एवं वस्तु प्रदर्श-16 सम्पूर्ण कार्यवाही और इस निर्णय में पढ़ा जायेगा।
साक्षी संख्या – 04 के द्वारा दिये गये बयान के बारे में पुलिस दबाव डालकर फर्द पर दस्तखत करायी तथा कोई बरामदगी नहीं होने बताया है। अभियोजन साक्षी संख्या – 05 के बयान के बारे में कुछ नहीं कहना कहा। अभियोजन साक्षी संख्या – 06 एवं साक्षी संख्या – 7 के द्वारा दिये गये बयान के बारे में कथन किया है कि फर्जी तरीके से फंसाया गया तथा कोई बरामदगी नहीं करायी गयी है। अभियोजन साक्षी संख्या-08 के द्वारा दिये गये बयान को गलत बताया है। अभियोजन पक्ष की ओर से साबित कराये गये दस्तावेजी साक्ष्य को गलत साबित कराया जाना बताया है। मुकदमा गलत चलना बताया। जिसमें अभियुक्त सोनू यादव ने कहा है कि, “मेरे द्वारा कोई बरामदगी नहीं करायी गयी थी साजिशन फर्द तैयार किया गया था। मुकदमा गलत चलना बताया। सफाई साक्ष्य देने कहा और साथ ही अपने कथन में कहा कि, “मुझे गलत फंसाकर वास्तविक मुल्जिमों को बचाया गया है, पुलिस ने ज्यादती की है”।
विद्वान अभियोजन अधिकारी तथा अभियुक्त के विद्वान अधिवक्ता शेष नारायण दीक्षित एडवोकेट के तर्को को धैर्यपूर्वक सुना गया तथा पत्रावली पर उपलब्ध मौखिक एवं प्रलेखीय साक्ष्यों का सम्यक परिशीलन किया गया।
प्रस्तुत मामले में यह विनिश्चय किया जाना है कि क्या अभियुक्त सोनू यादव ने दिनांक 25.06.2015 को रात्रि में समय लगभग 09:30 बजे सामान्य आशय के अग्रसर में वादी मुकदमा के लड़के रमेन्द्र कुमार चौधरी की हत्या कर दी गयी और साक्ष्य मिटाने के उद्देश्य से उसके शव को कुएँ में डाल दिया। अभियुक्त सोनू यादव के विरूद्ध धारा 302 / 34, 201 भा०दं०सं० के अंतर्गत आरोप विरचित किया गया है। न्यायालय सम्पूर्ण साक्ष्य का विवेचन एवं विश्लेषण करेगा कि क्या अभियुक्त के विरूद्ध विरचित आरोप अभियोजन पक्ष द्वारा युक्ति युक्त संदेह से परे साबित किया गया है? अभियोजन की ओर से प्रस्तुत साक्ष्य: अभियोजन की ओर से परीक्षित साक्षी पी0डब्लू०-1 कुलदीप चौधरी (वादी मुकदमा) ने अपने सशपथ मुख्य परीक्षा में कहा है कि मृतक रमेन्द्र कुमार चौधरी इसका लड़का था, जो संविदा पर विद्युत विभाग, चोपन में कार्य करता था जो दिन में नगर पालिका में और सायंकाल रात्रि में विद्युत विभाग में काम करता था और रात में 08-9 बजे घर आ जाता था दिनांक 25.06.2015 को दिन में व रात में बिजली विभाग में ड्यूटी करने गया था। रात लगभग 09:30 बजे उसने इस साक्षी को फोन पर बताया था कि वह खाना खाने घर पर आ रहा है, लेकिन 10:30 बजे तक वह घर पर नहीं आया इसने समय 10:30 बजे रात रमेन्द्र के मोबाइल पर फोन किया तो मोबाइल स्विच आफ बता रहा था। दूसरे दिन भी उन लोगों ने अपने लड़के का इन्तजार किया, लेकिन जब नहीं आया तो अपने रिश्तेनाते व बाजार में सब जगह खोजा लेकिन उसका कोई पता नहीं चला। तब दिनांक 27.06.2015 को इस साक्षी ने थाना चोपन में अपने लड़के की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखवायी उसके बाद भी अपने लड़के की तलाश करते रहे। दिनांक 30.06.2015 को सुबह लगभग 07:30 बजे गांव वालों से सूचना मिली की एक व्यक्ति की लाश चोपन गांव के वशीर अहमद के खेत में स्थित कुएँ में पड़ी है। सूचना पाकर वह और इसका लड़का पंकज चौधरी व गॉव घर व परिवार के लोग मौके पर पहुॅचे लाश को देखा तो लाश इसके लड़के रमेन्द्र कुमार चौधरी की थी। उसके बाद इसने शक के आधार पर घटना की तहरीर अनिल कुमार चौधरी से लिखवाकर दिनांक 30.06.2015 को ही थाना चोपन पर जाकर दिया और मुकदमा भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा-106 के अनुसार यह बताने का दायित्व अभियुक्त का था कि उनसे मोबाइल पर बातचीत करने के पश्चात् अभियुक्तगण लापता कैसे हुआ और उसकी मृत्यु कैसे हुई।
पत्रावली के अवलोकन से स्पष्ट है कि वस्तु प्रदर्श-01 लगायत 13 की कॉल डिटेल रिकार्ड को अभियोजन अधिकारी रवीन्द्र भूषण मौर्या साक्षी संख्या-8 से प्रदर्शित कराया गया है। उक्त वस्तु प्रदर्श-01 लगायत 13 की स्थिति स्पष्ट कराने के लिए सेवा प्रदाता कम्पनी के किसी भी साक्षी को विवेचना के दौरान परीक्षित नहीं किया गया है। कोई भी मोबाइल नम्बर किस सिम से किस व्यक्ति विशेष को आवंटित किया गया इसका सर्वोत्तम साक्ष्य कस्टमर एप्लीकेशन फॉर्म होता है जो सिम जारी करते वक्त आवेदक से भरवाया जाता है। जिस पर आवेदक के फोटो एवं आई.डी. का प्रमाण पत्र भी संलग्न होता है और उक्त कस्टमर एप्लीकेशन फॉर्म या तो मूल या इलेक्ट्रानिक फॉर्म में सेवा प्रदाता कम्पनियाँ संधारित करती है और इस प्रकरण में विवेचक द्वारा इस अत्यन्त महत्वपूर्ण साक्ष्य को एकत्रित नहीं किया गया है। जिसके कारण यह साबित होना सम्भव नहीं है कि मोबाइल नम्बर- 8542927566 मृतक का ही है। यद्यपि विवेचक ने अपने मुख्य परीक्षण में यह कथन किया है कि मोबाइल नम्बर- 8542927566 मृतक का है लेकिन विवेचक के अतिरिक्त किसी अन्य अभियोजन साक्षी ने यह कथन नहीं किया है कि मोबाइल नम्बर- 8542927566 मृतक रमेन्द्र कुमार चौधरी का ही था। अतः ऐसी स्थिति में विवेचक द्वारा किया गया यह कथन की मोबाइल नम्बर – 8542927566 मृतक रमेन्द्र कुमार चौधरी का था किस आधार पर विवेचक को ज्ञात हुआ। यह बताने में विवेचक असफल रहा है। अतः ऐसी स्थिति में अभियोजन युक्तियुक्त संदेह से परे यह प्रमाणित करने में सफल नहीं रहा है कि मोबाइल नम्बर- 8542927566 मृतक रमेन्द्र कुमार चौधरी का था और इस मोबाइल नम्बर – 8542927566 पर घटना के समय और उसके पूर्व अभियुक्त सोनू यादव द्वारा मृतक से बातचीत की गयी थी।
विद्वान लोक अभियोजन का तर्क है कि मृतक की साइकिल और दोनों मोबाइल अभियुक्तगण की निशानदेही पर बरामद हुये हैं। जिसके सम्बन्ध में फर्द कमशः प्रदर्श क-03 एवं प्रदर्श क-04 तैयार की गयी थी। जिसे अभियोजन साक्षी ने युक्तियुक्त संदेह से परे प्रमाणित किया है। यहाँ यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि न तो साइकिल और न ही दोनों मोबाइल न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किये गये हैं तथा अभियोजन साक्षी संख्या-01 एवं अभियोजन साक्षी संख्या – 02 के द्वारा मोबाइल झाड़ियों से बरामद होने का कथन करते हैं जबकि साक्षी संख्या-06 यह कथन करता है कि मोबाइल कुएं में डालने के कारण उस समय बरामद नहीं हुआ था। साक्षी संख्या – 04 सूर्य बहादुर अपने प्रतिपरीक्षण दिनांक 13.10.2021 में युक्तियुक्त कथन करता है कि फोटोग्राफ 33/58, फोटोग्राफ में मेरी फोटो नहीं है। फोटोग्राफ्स कागज संख्या – 3अ / 58 3अ / 59 3अ / 60 मेरे सामने नहीं खींचा गया, कब खींचा गया मुझे मालूम नहीं है। मुकदमें से सम्बन्धित साइकिल किसी कम्पनी की है, मुझे याद नहीं है। कुएं से साइकिल किसने और कब निकाला मुझे नहीं मालूम, क्योकि मैं वहाँ पर नहीं था, वहाँ से दूर था। उक्त साक्षी के कथन से स्पष्ट है कि अभियोजन द्वारा यद्यपि फर्द पर प्रदर्श क-03 एवं प्रदर्श क-04 अंकित करा दिया गया है लेकिन उसके तथ्य को साबित करने में साक्षियों के कथन में भिन्नता रही है तथा न तो दोनों मोबाइल और न ही साइकिल न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किये गये हैं। अतः ऐसी स्थिति में अभियोजन दोनों मोबाइल एवं साइकिल की बरामदगी को युक्तियुक्त संदेह से परे साबित करने में असफल रहा है। विद्वान लोक अभियोजन का कथन है कि अभियुक्त द्वारा विवेचना के दौरान अपने अपराध की संस्वीकृति की गयी है और जिसे अभियोजन साक्षी ने न्यायालय के समक्ष प्रमाणित किया है। यहाँ यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि अभियोजन पक्ष जिस संस्वीकृति पर बल दे रहा है वह पुलिस की अभिरक्षा में रहते हुए अभियुक्त द्वारा किये गये हैं। अतः ऐसी स्थिति में भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा-26 के प्रावधानों के अनुसार उक्त कथन साक्ष्य में ग्राहय नहीं है।
बचाव पक्ष के विद्वान अधिवक्ता शेष नारायण दीक्षित द्वारा नवनीथाकृष्णन बनाम स्टेट बाय इंस्पेक्टर ऑफ पुलिस 2018 (104) ए.सी.सी. 686 एस.सी की निर्णयज विधि पर बल दिया गया है जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने यह विधि प्रतिपादित की है कि केवल बरामदगी के आधार पर अभियुक्त को दोषसिद्ध किया जाना न्यायिक दृष्टि से उचित नहीं है। परिस्थितिजन्य साक्ष्य के प्रकरणों में अभियोजन को युक्तियुक्त संदेह से परे घटना की सभी कड़ियों को साबित करने होता है तथा यह भी साबित करना होता है कि उक्त कड़ियों को जोड़ने से एक मात्र निष्कर्ष यह निकलता है कि अपराध अभियुक्त द्वारा किया गया है। यदि कड़ियों की श्रृंखला पूर्णतः साबित नहीं है या साबित कड़ियों को जोड़ने पर भी अभियुक्त की दोषसिद्धि को लेकर युक्तियुक्त संदेह उत्पन्न होता है तो ऐसी स्थिति में अभियुक्त को परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर दोषसिद्ध किया जाना उचित नहीं होगा।
इस प्रकरण में अभियोजन घटना के पीछे के हेतुक को और घटना की कड़ियों को और बरामदगी को युक्तियुक्त संदेह से परे साबित करने में सफल नहीं रहा है। अतः ऐसी स्थिति में यह न्यायालय अभियुक्त सोनू यादव को दोषसिद्ध करने का कोई उचित आधार नहीं पाता है।
आदेश सत्र परीक्षण संख्या – 96 / 2015 से सम्बन्धित अभियुक्त सोनू यादव को मुकदमा अपराध संख्या – 312/ 2015 धारा 302 / 34, 201 भा०दं०स० के अपराध में दोषमुक्त किया जाता है।
अभियुक्त सोनू यादव प्रस्तुत मामले में जमानत पर है, उसके जमानतनामे व बन्ध पत्र निरस्त किए जाते हैं तथा प्रतिभू को उसके दायित्व से उन्मोचित किया जाता है। अभियुक्त द्वारा धारा 437ए दं०प्र०सं० के अनुपालन में व्यक्तिगत बन्ध पत्र एवं प्रतिभू दाखिल किया गया है। यह व्यक्तिगत बन्ध पत्र एवं प्रतिभू छः माह के लिए प्रभावी रहेंगे तथा छः माह की अवधि बीत जाने के उपरान्त स्वतः निरस्त समझे जायेंगे। दिनांक: 18.01.2022 सुनाया गया। न्यायालय अपर सत्र न्यायाधीश, कोर्ट नम्बर/2, सोनभद्र। पीठासीन (राहुल मिश्रा) ने सुनाई।

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