श्रीमद्भागवत गीता स्वाधीनता आंदोलन की सूत्रधार
वर्तमान समय में स्वामी अड़गड़ानंद द्वारा रचित गीता भाष्य यथार्थ गीता पठनीय
सोनभद्र(सर्वेश श्रीवास्तव)- आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष के अंतर्गत विंध्य संस्कृति शोध समिति उत्तर प्रदेश ट्रस्ट द्वारा भगवान श्री कृष्ण के मुखारविंद से प्रकट हुई श्रीमद् भागवत गीता का भाष्य परमहंस आश्रम के स्वामी अड़गड़ानंद द्वारा लिखित “यथार्थ गीता” का निशुल्क वितरण किया जा रहा है।
इस पुण्य कार्य में आश्रम से जुड़े डॉ बी सिंह, डॉक्टर कुसुमाकर श्रीवास्तव, गीतकार जगदीश पंथी, पत्रकार पीयूष त्रिपाठी, अरुण चौबे सहित अन्य गीता प्रेमी सहयोग कर रहे हैं। शोधकर्ता दीपक कुमार केसरवानी के अनुसार-“भारत की स्वाधीनता आंदोलन की अगुवाई करने वाले मोहनदास करमचंद गांधी को उनकी माता कस्तूरबा बाई द्वारा बचपन से ही गीता का ज्ञान दिया गया था जिससे गांधी जी प्रभावित हुए और उनमें नि:स्वार्थ सेवा की भावना जागृत हुई थी। वे गीता को ‘गीता मैया’ कहा करते थे। बापू एक स्थान पर लिखते हैं-मेरी मां तो बचपन में ही दिवंगत हो गईं थीं मां के न रहने पर प्यार-दुलार, संसार का ज्ञान और मार्गदर्शन मुझे मिला है गीता मैया से। गीता भाष्य गीता माता की रचना किया।
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक: न चैनं क्लेदयन्त्यापो ने शोषयति मारुत:।।
अर्थात-वह आत्मा जिसे शस्त्र काट नहीं सकता, अग्रि जला नहीं सकती, पानी गीला नहीं कर सकता और वायु सुखा नहीं सकती है।
इसी श्लोक को मूल मंत्र मानकर हमारे देश के क्रांतिकारियों, देशभक्तों, बलिदानयो ने फांसी के फंदे को चूम लिया और स्वतंत्रता के बलिवेदी पर शहीद हो गए। गीतारहस्य नामक पुस्तक की रचना लोकमान्य बालगंगाधर तिलक ने माण्डले जेल (बर्मा) में की थी। इसमें उन्होने श्रीमदभगवद्गीता के कर्मयोग की वृहद व्याख्या की। गीता रहस्य को महज पांच महीने में पेंसिल से ही उन्होंने लिख डाला था।
उनका मानना था कि-“जब देश गुलाम हो, तब आप अपने लोगों से मोक्ष की बात नहीं कर सकते। उन्हें तो कर्म में लगाना होता है। वही तिलक ने किया। उन्होंने थके हुए गुलाम समाज को जगाने के लिए वह गीता को संजीवनी बनाया।गीता अनुपम आत्मविश्वास जाग्रत करके मनुष्य को निर्भय बनाने वाला ग्रंथ है सर्वाधिक लेखन गीता के ज्ञान पर ही हुआ है। गीता पर विश्वभर में अनेकों व्याख्यान, भाष्य, टिकाएं लिखी गई। शंकराचार्य द्वारा गीता का सबसे पहला ज्ञात भाष्य आद्य शंकराचार्य ने जिसे शंकर भाष्य कहा जाता है।
अन्तर्राष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ (इस्कान) के संस्थापक तथा हरे राम हरे कृष्ण आन्दोलन के प्रवर्तक श्रील प्रभुपाद के विश्वप्रसिद्ध गीता-भाष्य- ‘श्रीमद्भागवत गीता यथा रूप’की रचना की है। ओशो रजनीश दिए गए गीता के प्रवचन का संकलन ‘गीता दर्शन’ में संकलित है।विदेशी लेखक गीता का अंग्रेजी में अनुवाद कराया। एडविन अर्नाल्ड नामक अंग्रेज विद्वान ने भी पूर्व ‘द सांग सेलेस्टियस’ शीर्षक से अंग्रेजी भाष्य लिखा, वैज्ञानिक राबर्ट ओपन हीमर तक सभी गीता ज्ञान से इमर्सन पादरी ने गीता को ‘यूनिवर्सल बाइबिल’ कहा और गीता का अनुवाद भी किया था। भारतीय संत, महात्माओं, विद्वानों ने रामानुजाचार्य, मध्वाचार्य, निम्बार्काचार्य, भास्कराचार्य, वल्लभाचार्य, श्रीधर स्वामी, आनन्द गिरि, संत ज्ञानेश्वर, बलदेव विद्याभूषण, आदि अनेक मध्यकालीन आचार्यों ने भी तत्कालीन युगानुकूल आवश्यकतानुसार भगवद्गीता के भाष्य प्रस्तुत किया।
महर्षि अरविंद, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, स्वामी,स्वामी दयानंदन सरस्वती, प्रो. सत्यव्रत सिद्धांतालन्कार, गुरुदत्त ने प्रवचन और गीता पर भाष्य लिखा। विख्यात वैष्णवाचार्य जगद्गुरु वेदान्ताचार्य वेंकटनाथ ने रामानुज गीता भाष्य पर ‘तात्पर्य-चन्द्रिका’ नामक उप-भाष्य लिखा। रामानुजाचार्य ने अपने परमगुरु श्रीयामुनमुनि द्वारा लिखित संक्षिप्त ‘गीतार्थ-संग्रह’ का अनुसरण किया। आनन्दतीर्थ ने गीता भाष्य लिखा, जिस पर जयतीर्थ ने ‘प्रमेय-दीपिका’, आचार्य जयतीर्थ ने ‘भगवद्गीता-तात्पर्यनिर्णय’, मध्वाचार्य के शिष्य कृष्णभट्ट विद्याधिराज ने ‘गीता-टीका’, सुधीन्द्र यति के शिष्य राघवेन्द्र स्वामी ने ‘गीता-विवृति, गीतार्थसंग्रह और गीतार्थ विवरण’,
वल्लभाचार्य, विज्ञानभिक्षु तथा निम्बार्काचार्य मत के केशवभट्ट ने ‘गीता-तत्व-प्रकाशिका’, आंजनेय ने हनुमद्भाष्य, कल्याणभट्ट ने रसिकमंजरी, जगद्धर ने भगवद्गीता-प्रदीप, जयराम ने गीतासारार्थ-संग्रह, मधुसूदन सरस्वती ने गूढार्थदीपिका, बलदेव विद्याभूषण ने गीताभूषण-भाष्य, सूर्य पंडित ने परमार्थप्रपा, नीलकण्ठ ने भाव-दीपिका, ब्रह्मानन्दगिरि, मथुरानाथ ने भगवद्गीता-प्रकाश, दत्तात्रेय ने प्रबोधचन्द्रिका, रामकृष्ण, मुकुन्ददास, रामनारायण, विश्वेश्वर, शंकरानन्द, शिवदयालु श्रीधर स्वामी ने सुबोधिनी, सदानन्द व्यास ने भावप्रकाश और राजानक एवं रामकण्ठ ने सर्वतोभद्र,आचार्य अभिनव गुप्त और नृसिंह ठाकुर द्वारा भगवद्गीतार्थ-संग्रह, गोकुलचन्द्र का भगवद्गीतार्थ-सार, वादिराज का भगवद्गीता-लक्षाभरण, कैवल्यानन्द सरस्वती का भगवद्गीता-सार-संग्रह, नरहरि द्वारा भगवद्गीता-सार-संग्रह, विठ्ठल दीक्षित का भगवद्गीता-हेतु-निर्णय, आधुनिक काल में मिथिला के प्रख्यात विद्वान् पंडित धर्मदत्त झा ने ‘गूढार्थ-दीपिका’ नामक व्याख्या लिखी। विशिष्टाद्वैत सिद्धान्त के महान् आचार्य श्रीयामुन मुनि ने गीता के एक-एक अध्याय का वर्णन किया है, जो उनके ‘गीतार्थ-संग्रह’ ग्रंथ में है। गीता के श्लोक को मूल मंत्र मानकर स्वाधीनता आंदोलन में भाग लेने वाले देशभक्तों, बलिदानियों, क्रांतिकारियों के बलिदान के बल पर हमें 15 अगस्त 1947 को आजादी प्राप्त हुई। आजादी के पश्चात देश ने राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, तकनीकी, सांस्कृतिक, साहित्यिक विकास करते हुए 75 वर्ष का सफरनामा तय किया। आज हम आजादी के सूत्रधार श्रीमद्भागवत गीता के श्लोक को आजादी का मूल मंत्र मानने वाले बलिदानों के त्याग, तपस्या, के बल पर आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं।