सोनभद्र(सर्वेश श्रीवास्तव)- काव्य सुरों गीतों व गजलों के शानदार प्रस्तुति से शीत लहर का असर बेअसर मालूम हुआ, चुर्क स्थित रामलीला मैदान में राम कथा आयोजन समिति द्वारा आयोजित कवि सम्मेलन में उपस्थित कवियों व गीतकारों ने अपनी एक से बढ़कर एक प्रस्तुति से शमां बांध दिया।
वरिष्ठ साहित्यकार, कथाकार व असुविधा के सम्पादक रामनाथ शिवेन्द्र के अध्यक्षता व कवि दिलीप सिंह दीपक के संचालन में आयोजित कवि सम्मेलन का शुभारम्भ माँ सरस्वती व श्री राम दरबार के चित्र पर पुष्प अर्पण व दीप प्रज्ज्वलन के पश्चात आगन्तुक कवियों व गीतकारों का माल्यार्पण व अंगवस्त्रम भेंट कर सारस्वत सम्मान किया गया तत्पश्चात कार्यक्रम संयोजक सिद्धनाथ पाण्डेय द्वारा वाणी वंदना से हुआ।
देशभक्ति से सराबोर प्रस्तुति से कवि प्रभात सिंह चन्देल ने शमां बांध दिया और..
साथ रहीं हम सिंह के भांति।
रंग चोला बसन्ती अ तानि के छाती।।
रहीं बाधा विपत्ति में ठाढ़ सदा।
हम सींची लहू से ई पावन माटी।।
सुनाकर खूब तालियां बटोरी तो कवि सरोज सिंह ने अपनी रचना
मेरा अंगना हुआ परदेश।
बाबुल मैं तो चली अपने देश।।
सुनाकर लोगों को भाव विभोर कर दिया। हास्य कवि सुनील चउचक ने बासी भात पर बेना मत हंउक।
बनल बाप क बिगड़ल बेटवा एतना मत फउक सुनाकर लोगों को गुदगुदाया। गीतकार ईश्वर विरागी ने
अक्षरों में घुली प्रीत रागिनी।
गीत की बांसुरी को बजा लीजिये।।
सुनाकर सम्मेलन को ऊंचाई प्रदान की। गजलकार व शायर अशोक तिवारी ने
जंगे आजादी के दीवानों का एक दौर था।
उनकी जमीं कुछ और थी आशमा कुछ और था।।
सुनाकर श्रोताओं को तालियां बजाने पर मजबूर कर दिया।
तो ओज के कवि प्रदुम्न त्रिपाठी पद्म ने अपनी प्रस्तुति..
कस लो कमर जवानों
देना है शीश फिर से
अब सरहदें वतन की
बलिदान मांगती हैं
सुनाकर श्रोताओं में देशभक्ति का जोश भरा तो कवि दिवाकर द्विवेदी ‘मेघ’ ने
इस गली से अब कोई आता न जाता है तो फिर।
खामखाँ यह अपने घर की खिड़कियां क्यों बन्द हैं।।
ठीक है बाहर है हवाएं शरारत से भरी।
तो घर के अन्दर ही कहां अब जाफरानी गन्ध है।।
सुनाकर लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया।
चंदौली से चलकर आये गीतकार मनोज द्विवेदी मधुर ने अपनी रचना
सबसे सब काम हो नही सकता।
सबका वो नाम हो नही सकता।।
त्याग ऐश्वर्य महल के वैभव।
हर कोई राम हो नही सकता।।
सुनाकर सबको भाव विभोर कर दिया तो हास्य कवि जयराम सोनी ने..
बने न जो बात मतलब का काम हूँ।
रहता हूं सोनभद्र में सोनी जयराम हूँ।।
सुनाया और कार्यक्रम का संचालन कर रहे कवि दिलीप सिंह ‘दीपक’ ने
तुम सब कुछ बांट दो।
लेकिन हिन्दुस्तान मत बांटो।।
सुनकर व्यवस्था पर प्रहार किया। लोक भाषा के सशक्त हस्ताक्षर गीतकार जगदीश पंथी ने..
मोर गंउवां बरनी नही जाइ
सोनवा के बलिया सिवनवा में लटकल
देखी के चननिया सिहाई सुनाकर आयोजन को शिखर पर पहुंचा दिया।
अपने अध्यक्षीय काव्य पाठ में वरिष्ठ साहित्यकार व कथाकार रामनाथ शिवेन्द्र ने अपनी रचना..
मजहबों में जकड़े हैं इंसान किस लिए।
वीरान बस्तियों में हैं मकान किस लिए।।
हमें रोटियां ही दीजिये बहुत भूख लगी है।
दे रहे हैं गीता और कुरान किस लिए सुनाकर व्यवस्था को आइना दिखाते हुए कार्यक्रम को शीर्ष पर पहुंचा दिया।
इस अवसर पर पूर्व विधायक राजेंद्र सिंह, भाजपा नेता ओम प्रकाश यादव, दिवाकर तिवारी,अंशु खत्री, विवेक पाण्डेय समेत सैकड़ो सुधि श्रोता मौजूद रहे।