–जब इतिहास के साथ ही इंदिरा गांधी ने रच दिया था भूगोल
सोनभद्र- इतिहास का वह अविस्मरणीय दिन कभी नहीं भुलाया जा सकता जब 13 दिन के बाद पाकिस्तान के लेफ्टिनेंट जनरल एके नियाजी ने भारतीय जवानों के समक्ष घुटने टेक दिए थे । उनकी रिवाल्वर फिल्ड मार्शल जनरल मानेक शाह ने ले लिया था । नियाजी का बिल्ला कंधे से उतार लिया गया था । तकरीबन 93 हजार पाक सैनिकों को गिरफ्तार कर लिया गया था । याहिया खां का गुरूर चकना चूर हो गया था। पूर्वी पाकिस्तान को जीतकर प्रियदर्शनी इंदिरा गांधी ने बंग बंधु शेख मुजीब को उसकी बाग डोर सौंप दी थी ।तब बांग्लादेश के रूप में एक नए राष्ट्र का विश्व मानचित्र पर सृजन हुआ था । 16 दिसंबर को हमारे जवानों के योगदान के फल स्वरूप तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने इतिहास तो बनाया ही साथ ही एक नए भूगोल का भी सृजन कर दिया था।
प्रख्यात महाकवि पंडित चन्द्र शेखर मिश्र ने सोनभद्र की साहित्यिक संस्था मधुरिमा साहित्य गोष्ठी के अखिल भारतीय कवि सम्मेलन के मंच पर कविता पाठ करते हुए
पढ़ा था कि ,………
“विश्व छोटा पड़ रहा था ,
इंदिरा इतनी बड़ी थीं ।
इतिहास को मुठ्ठी में लें
भूगोल को दाबे खड़ी थी”।
तीन दिसंबर की रात हमारे
मर्फी रेडियो से आठ बजे रात जब यह आवाज़ गूंजी थी ,
” ये आकाशवाणी हैं … अब आप देवकी नंदन पांडेय से समाचार सुनिए । इसी समाचार में रात में घर के बाहर बत्ती जलाने के लिए मनाही की गई थी ब्लैक आउट घोषित कर दिया गया था। हम लोगों को युद्ध का समाचार समझाते थे ।
अपने जमाने के हाईस्कूल तक पढ़े और पेशे से लेखपाल रहे मेरे चाचा जी बड़े उत्साह से सैनिकों की बहादुरी का समाचार सुनाते थे । वे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यकर्ता भी थे ।
18 दिसंबर 1971 का वाराणसी से प्रकाशित आज अख़बार लेकर घर आए तो पाक के आत्म समर्पण की पूरी कहानी जानने के लिए लोगों की होड़ लगी थी । बताया गया था कि कैसे हमारे जवान हुगली नदी पर अस्थाई पीपे का पुल बनाकर पाक सैनिकों को घेरने में कामयाब हुए थे । 40 किमी अस्थाई सड़कों का निर्माण भी सैनिकों ने करके आक्रमण को सफल बनाया था । तीन दिसंबर को थोपा गया युद्ध तेरह दिन में 16 दिसंबर को समाप्त हो गया था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के जिला कार्यवाह ब्रजेश सिंह ने गुरुवार को बताया कि जनपद के सभी पांच खण्डों की शाखाओं पर 16 दिसंबर को दंड प्रहार का कार्यक्रम पराक्रम को महिमा मंडित करने के लिए होताbआ रहा है। अपने सैनिकों के शौर्य व बलिदान को हम इसी बहाने नमन करते हैं। वरिष्ठ पत्रकार मिथिलेश प्रसाद द्विवेदी 1971 की उस तिथि को याद कर कहते है पाकिस्तान के अत्याचार से बंगला देश के नागरिकों को बचाने के लिए मुक्त वाहिनी सेना का अदभुत पराक्रम आज भी आंखों के सामने है। कवयित्री डॉ रचना तिवारी और राकेश शरण मिश्र एडवोकेट ने भी गर्व से 1971 के शौर्य दिवस को याद कर वीर सैनिकों के पराक्रम को नमन किया है।