हिंदी का सूर्य कभी अस्त नहीं होगा: प्रो.सरन घई
विशेष संवाददाता की कलम से
सोनभद्र(सर्वेश श्रीवास्तव)- हिंदी का सूर्य कभी अस्त नहीं होगा। जब हिन्दुस्तान सो जाता है तब विदेश हिंदी बोलता है। विश्व हिन्दी साहित्य सेवा संस्थान भी अब हिन्दी के लिए कभी न सोने वाला संस्थान बन गया है।’ उक्त उदगार प्रो0 सरन घई, एशिया आब्जर्बर के पूर्व संपादक ने विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान प्रयागराज के आभासीय रजत समारोह के त्रि-दिवसीय समापन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में अपने वक्तव्य में कही। विशिष्ट अतिथि के रुप में उपस्थित केलीफोर्निया, अमेरिका से डा. अनीता कपूर ने कहा कि वास्तव में प्रवासी लेखन ही हिंदी को ऊंचाई पर ले गया है। मीडिया ने भी हिंदी को आगे बढाने मे और हमें एक दूसरे से जोड़ने के लिये अहम भूमिका निभायी है। ‘विश्व भाषा के रूप मे हिन्दी की संभावनाएं’ विषयक परिचर्चा के अति विशिष्ट वक्ता
डा.विनय कुमार पाठक पूर्व अध्यक्ष, राजभाषा आयोग, छत्तीसगढ़ ने कहा कि हिंदी राजाश्रय के बदले लोकाश्रय के बल पर आगे बढ़ी है। संस्कृत की संस्कृति, पालि-प्राकृत की प्रकृति हिंदी भाषा मे पायी जाती है। हिंदी हमारे आंदोलनों की भाषा रही है। विश्व में सर्वाधिक सरल, मधुर, बोधगम्य व वैज्ञानिक भाषा होने के कारण विश्व के डेढ़ सौ देशों में हिंदी पढ़ाई जाती हैं। वही विशिष्ट वक्ता डाॅ0 शंभू पवार झुंझुनु, राजस्थान नें कहा कि विश्व स्तर पर हिंदी बोलने वालों की संख्या निरंतर बढ़ रही है। मनोरंजन व तकनीकी क्षेत्र में भी हिंदी का बोलबाला है। 11 राज्यों व 3 केंद्र शासित प्रदेशों की हिंदी राजभाषा है। संस्थान के सचिव डाॅ0 गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी प्रयागराज ने संस्थान की विगत 25 वर्षों की गतिविधियों पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने आगे बताया कि संस्थान शीघ्र ही अपने निज पुस्तकालय एवं वाचनालय का लोकार्पण कराएगा जिसमें वृद्ध एवं असहाय लोगों के लिए आश्रय स्थल भी रहेगा।
समारोह की अध्यक्षता करते हुए संस्थान के अध्यक्ष डा. शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख ने कहा कि हिंदी विश्व की भाषा बन चुकी है। विश्व भाषा के रूप में हिंदी में अपार संभावनाएं हैं। जो हिंदी 1950 में पांचवें क्रमांक पर थी, आज वह प्रथम क्रमांक पर है। अंग्रेजी मात्र साढे़ चार देशों की भाषा हैं। ब्रिटेन, अमेरिका, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड। यह कनाडा की भी भाषा है, परंतु आधा कनाडा फ्रांसीसी बोलता है। अमेरिकन सरकार ने हिंदी के अध्ययन अध्यापन हेतु अलग कोष की निर्मिती की है। ज्योति तिवारी इंदौर की सरस्वती वंदना से कार्यक्रम की शुरुआत हुई। आख्या सिंह, नई दिल्ली ने गणेश वंदना की और डाॅ0 रजिया शहनाज शेख महाराष्ट्र ने स्वागत उद्बोधन दिया। डाॅ0.पूर्णिमा उमेश झेंडे, नासिक ने स्वागत नृत्य प्रस्तुत किया। संस्थान की आजीवन सदस्य डा.सीमा वर्मा लखनऊ ने संस्था के बारे में अपने अनुभवों पर प्रकाश डाला। सोनभद्र, उ0प्र0 से मीडिया फोरम आफ इंडिया न्यास के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष मिथिलेश प्रसाद द्विवेदी ने कहा कि संपूर्ण भारत के विभिन्न प्रांतों तथा विदेशों में हिंदी का प्रचार-प्रसार का अभिनव कार्य संस्थान ने किया है, जो अत्यंत प्रशंसनीय व अनुकरणीय है। इस अवसर पर संस्थान के विगत 25 वर्षों की साहित्यिक व सांस्कृतिक गतिविधियों की झलक एक स्क्रीन द्वारा दिखाई गयी। संस्थान के कुलगीत का विमोचन भी किया गया। जिसको मूल रुप में वंदना श्रीवास्तव ‘वान्या’ लखनऊ, नेे लिखा है तथा संशोधन डाॅ0 सुनीता यादव ने किया। संकल्पना एवं निर्मिति आदि रामचंद्र, संगीत संयोजन शौनक जपे, प्रोग्रामिंग व साउण्ड इंजीनियर सार्थक पांडव ने किया तथा डाॅ0 सुनीता यादव, शौनक जपे एवं सार्थक पांडव महाराष्ट्र ने इसे गाया। आयोजन में स्वरा त्रिपाठी, लखनऊ ने लोक नृत्य प्रस्तुत किया तथा बांसुरी एवं तबला वादन में वेदांत कुलकर्णी व सुधांशु परलीकर महाराष्ट्र ने सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया।
डा. अनुसूया अग्रवाल, महासमुंद, छत्तीसगढ़ ने धन्यवाद ज्ञापन किया तथा समारोह का संयोजन एवं संचालन दिवस प्रमुख डाॅ0 मुक्ता कान्हा कौशिक रायपुर ने बखूबी निभाया। रमाकांत प्रसाद ने तकनीकी सहायता प्रदान की। समारोह की सफलता हेतु डा. सुनीता यादव महाराष्ट्र, डा. रश्मि चौबे उ0प्र0, डाॅ0 पूर्णिमा उमेश झेडे महाराष्ट्र, डाॅ0 जेबा रसीद राजस्थान ने विशेष प्रयत्न किए। इस समारोह को ऊंचाइयों पर पहुंचाने वाले विक्रम सिंह, पूर्व डीजीपी, डा.मीरा सिंह, , प्रो.ललिता पी.जोगड , हरेराम बाजपेयी डा.रामनिवास साहू, डा.प्रभु चैधरी, डा.मेदिनी अंजनीकर, डा.संगीता पाल, ओम प्रकाश त्रिपाठी, राकेश शरण मिश्र, राम अनुज धर द्विवेदी, संजय पांडेय, डा.संगीता कालरा, डा.शबाना हबीब, डा.सुषमा कोंडे, डाॅ0 ज्योति जैन, प्रतिभा पराशर, डा. वंदना अग्निहोत्री, इंदौर, सदाशिव विश्वकर्मा, डा.मधुशंखधर, डाॅ. प्रंभाशु कुमार, राजेश तिवारी, डा. पूर्णिमा मालवीय, डा. वंदना श्रीवास्तव , नरेंद्र भूषण, पुष्पा शैली श्रीवास्तव, डा0 सुमन अग्रवाल, डा0 राजश्री, डा.समीर सैयद, प्रोफेसर महबूब पटेल, प्रोफेसर नाना साहेब गोफणे, डा. बेबी कोलते, डा0 भरत शेणकर, रोहिणी डावरे, पूर्णिमा कौशिक, सहित 500 से अधिक प्रतिभागी साक्षी बने। सामूहिक राष्ट्रगान के साथ समारोह का समापन हुआ।